डॉ॰खुशालसिंह पुरोहित

हिंदी साहित्य की प्रगतिशील विचारधारा के शीर्षस्थ कवि डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन के अवसान को दो दशक हो रहे हैं। महाकाल के महिमामय उद्यान के प्रमुख सुमन की सुरभि से कभी उज्जैनी का कण-कण सुवासित होता था। शहर का कोई भी सांस्कृतिक सामाजिक और साहित्यिक आयोजन उनकी सारस्वत उपस्थिति के बिना पूरा नहीं होता था।

पुण्यतिथि 27 नवम्बर पर विशेष

हिंदी साहित्य की प्रगतिशील विचारधारा के शीर्षस्थ कवि डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन के अवसान को दो दशक हो रहे हैं। महाकाल के महिमामय उद्यान के प्रमुख सुमन की सुरभि से कभी उज्जैनी का कण-कण सुवासित होता था।  शहर का कोई भी सांस्कृतिक सामाजिक और साहित्यिक आयोजन उनकी सारस्वत उपस्थिति के बिना पूरा नहीं होता था। अपने युवा काल से ही सुमन का रिश्ता महाकाल की नगरी से जुड़ा जो उनके अंतिम सांस तक बना रहा, महाकाल की नगरी उन्हे प्राणों से प्यारी थी। उत्तर प्रदेश से अपनी जीवन यात्रा शुरू करने वाले सुमन जी के जीवन में मालवा का केंद्र उज्जैन एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुआ। सुमन जी की लोकप्रियता देश और विदेश में रही लेकिन उज्जैन को लेकर उनके मन में विशेष प्रेम था।

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गांव में परिहार वंशीय ठाकुर घराने में 5 अगस्त 1915 को सुमन जी का जन्म हुआ था, उस दिन भारतीय पंचांग की तिथि नाग पंचमी थी। डॉ सुमन अपना जन्मदिन नाग पंचमी तिथि को ही मनाते थे, यह भारतीय परंपरा में उनकी आस्था का प्रतीक था।  डॉ सुमन की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में हुई बाद में रीवा, ग्वालियर और बनारस शहर आपकी शैक्षणिक यात्रा के महत्वपूर्ण केंद्र रहे। हिंदी के वरिष्ठ  साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्यामसुंदर दास और आचार्य केशव प्रसाद मिश्र जैसे मनीषियों का मार्गदर्शन आपको प्राप्त हुआ। ग्वालियर, बनारस और उज्जैन ऐसे नगर हैं जहां सुमन जी को युवा जगत के साथ ही सम्पूर्ण समाज का भरपूर प्यार मिला। उज्जैन में तो उनकी लोकप्रियता उस शिखर तक पहुंची थी जहां व्यक्ति लोकनायक हो जाता है।

ग्वालियर नगर में सुमन जी को सुमन उपनाम मिला, “ग्वालियर के कवि राम किशोर शर्मा किशोर ने सन 1934 में शिवमंगल सिंह नाम में शिव से सु मंगल से म और सिंह के अनुस्वार से न लेकर सुमन उपनाम बनाया था॰” सुमन जी शुरू में पत्रकार रहे, क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे लेकिन जब उन्हें अध्यापन का अवसर मिला तो अपनी रूचि के कारण उसी में रम गए, उनका पूरा जीवन लोकशिक्षण के लिए समर्पित रहा। ग्वालियर और उज्जैन में आप के शिष्यों में अटलबिहारी वाजपेयी, रामकुमार चतुर्वेदी चंचल, वीरेंद्र मिश्र, प्रकाशचंद्र सेठी, श्याम शर्मा, शरद जोशी, और चिंतामणि उपाध्याय का नाम प्रमुख है।

डॉ सुमन की कविता बीसवीं शताब्दी के साहित्य की सुदीर्घ परंपरा और समसामयिक इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। युवाओं को सुमन जी को सांसो के हिसाब के कवि के रूप में जानने का अवसर मिला, लेकिन उनकी कविता में अपने समय की धड़कन हर युग में सुनी जाती रहेगी। सुमन जी की कविता और उनका विलक्षण व्यक्तित्व उनको कालजयी साहित्यकारों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करता है। हिंदी की प्रगतिशील विचारधारा के प्रमुख कवि होने के साथ ही सुमन जी के काव्य में मानवतावाद और जन सामान्य की पीड़ा का मुखरता से वर्णन हुआ है।  जन-जन में सुमन जी की लोकप्रियता में उनका मानवतावादी दृष्टिकोण भी प्रमुख कारण था।  डा ॰ सुमन का पहला कविता-संग्रह ‘हिल्लोल’ 1939 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद ‘जीवन के गान’, ‘युग का मोल’, ‘प्रलय-सृजन’, ‘विश्वास बढ़ता ही गया’, ‘पर आँखें नहीं भरीं’, ‘विंध्य-हिमालय’, ‘मिट्टी की बारात’, ‘वाणी की व्यथा’, ‘कटे अँगूठों की बंदनवारें’ संग्रह आए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ‘प्रकृति पुरुष कालिदास’ नाटक, ‘महादेवी की काव्य साधना’ और ‘गीति काव्य: उद्गम और विकास’ समीक्षा ग्रंथ भी लिखे हैं। ‘सुमन समग्र’ में उनकी सभी कृतियों को संकलित किया गया है।  

वरिष्ठ साहित्यकार प्रसिद्धनारायण चौबे के अनुसार, ‘‘अदम्य साहस, ओज और तेजस्विता एक ओर, दूसरी ओर प्रेम, करुणा और रागमयता, तीसरी ओर प्रकृति का निर्मल दृश्यावलोकन, चौथी ओर दलित वर्ग की विकृति और व्यंग्यधर्मी स्वर यानी प्रगतिशीलता की प्रवृत्ति-शिवमंगल सिंह ‘सुमन की कविताओं की यही मुख्य विशेषताएँ हैं।’’ उनका प्रधान स्वर मानवतावादी था। शिल्प की दृष्टि से उनकी कविताओं में दुरुहता नहीं है, भाव अत्यंत सरल हैं। राजनीतिक कविताओं में व्यंग्य को लक्षित किया जा सकता है। वह अच्छे वक्ता और कवि-सम्मेलनों के सफल कवि रहे।  सुमन जी को बीसवीं शताब्दी के दो महान व्यक्तित्व महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को अकेले में अपनी कविता सुनाने का अवसर मिला था। नेहरू जी ने कविता सुनने के बाद अपने आशीर्वचन में लिखा था “अपने जीवन को एक सुंदर कविता बनाना चाहिए”, यह छोटा सा संदेश सुमन जी के जीवन का महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया था।

सुमन जी का डायरी लेखन प्रसंग भी उल्लेखनीय है। कई बार जब कोई उनसे मिलता था तो वह आश्चर्यचकित रह जाता था कि 10 मिनट पूर्व तक की डायरी वे लिख चुके हो होते थे।  डायरी लेखन में इतनी नियमितता और गतिशीलता बहुत कम लोगों में देखने को मिलती है। सुमन जी व्यक्तिगत डायरी के साथ ही एक दूसरी डायरी भी रखते थे जिसमे किसी द्वारा कही गई कोई बात, कविता, संस्मरण या अन्य महत्वपूर्ण सुभाषित उन्हें पसंद आने पर विशेष संदर्भ सहित नोट कर लेते थे।  इसी गुणग्राहकता और जिज्ञासा ने उन्हें विचारों में हमेशा युवा बनाए रखा। सामान्य पूजा पाठ से भिन्न एक विशिष्ठ पूजा वे नियमित करते थे, नियमित रूप से गीता रामायण या कोई पुस्तक पत्रिका रोजाना निश्चित समय पर पढ़ना ही उनकी पूजा थी। सुमन जी चाहे घर में होते या देश में कई हो या विदेश में प्रवास पर हो यह क्रम निरंतर रहता था। इसे से  साहित्य, समाज और युगीन समस्याओं पर सुमन जी की सजग दृष्टि बनी रहती थी।

सुमन जी को शब्दों का जादूगर कहा जाता था, उनके भाषणों में घंटों श्रोता बंधे रहते थे।  उनके काव्य पाठ में भी भाषण का पुट रहता था, भाषण कब कविता हो जाती थी और कविता कब भाषण बन जाता था शब्दों के निरंतर प्रवाह में पता ही नहीं चलता था। जिन लोगों को सुमन जी से मिलने का या उनका भाषण सुनने का अवसर मिला था वह जानते हैं कि सुमन जी का भाषण कभी समाप्त नहीं होता था, उसे बंद करना पड़ता था।  उनके ज्ञान के खजाने से शब्द दर शब्द का झरना बहता रहता था और श्रोता अभिभूत होकर समय को भूलकर सुनने में तल्लीन रहते थे।  सुमन जी के भाषण में न जाने कितने संस्मरण कितने ही महापुरुषों के जीवन की घटनाएं उनके विचार और उनकी जीवन यात्रा के शब्द चित्र होते थे।  उनका पूरा भाषण एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म की तरह चलता था जिसमें सबकुछ सजीव और जीवंत लगता था, उनके हर भाषण में अपने युग और उसके संदर्भ जीवंत हो उठते थे।

डॉ सुमन ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से युवाओं को भारतीय संस्कृति की विरासत, भारतीय जीवन मूल्य और राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति जागृति पैदा करने में सफलता प्राप्त की थी। युवा जगत में सुमन जी की लोकप्रियता सर्वोच्च शिखर पर थी, सुमन जी का आभा मंडल इतना विस्तृत था की उसने देश और काल की सीमा के बंधनों को तोड़कर युवाओं की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया था। युवाओं के लिए सुमन जी की सीख स्वयं उनके शब्दों में कहें तो “जीवन में कोई बड़ा सपना संजो कर अवश्य रखना चाहिए। इसी स्वप्न के सहारे व्यक्ति, समाज या राष्ट्र फिर उठ खड़ा हो सकता है, चल दौड़ सकता है और लक्ष्य तक पहुंच सकता है” यह सीख हर युग में प्रासंगिक बनी रहेगी। सुमन की सुरभि आनेवाली अनेक शताब्दियों तक वातावरण में व्याप्त रहेगी और सुमन जी के प्रेरणादायी विचार नयी पीड़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

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