कश्मीर उप्पल

हमारे देश के 97 करोड़ मतदाता इस वर्ष के चुनाव में अपना मतदान करेंगे। यह मतदान पूरे देश में स्थित 10 लाख पोलिंग बूथ पर होगा जिनके माध्यम से हमारी नई सरकार बनेगी। इस चुनाव को संपन्न कराने में लगभग डेढ़ करोड़ मतदान अधिकारी एवं कर्मचारी प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद देश के 97 करोड़ मतदाताओं से मतदान कराने के लिए तैयार हैं। वास्तव में किसी चुनाव के रिजल्ट और किसी स्कूल के बच्चों के रिजल्ट की पद्धति में कोई विशेष अंतर नहीं होता है।

बहुत अधिक पीछे न जाकर पिछले 11-12 वर्षों में घटी प्रमुख त्रासदियों (केदारनाथ, जोशीमठ एवं सिक्किम) त‍था मौसम की चरम घटनाओं को देखते हुए अब यह जरूरी हो गया है कि सभी राजनैतिक दल आगामी लोकसभा चुनाव (2024) में पर्यावरण को महत्व दें। पर्यावरण के मुददों को अपने घोषणा पत्रों या संकल्प-पत्रों में शामिल कर उनके समाधान हेतु प्रतिबद्धता दर्शायें। पर्यावरण से जुड़े कई लोगों एवं संगठनों की सलाह-सुझाव एवं मांगों के बावजूद राजनैतिक दलों ने पर्यावरण से दूरी ही बनाकर रखी है।

प्रसिद्ध वकील, पर्यावरणविद् एवं ‘मेगसेसे पुरस्कार’ प्राप्त एमसी मेहता ने बम्बई (अब मुम्बई) में आयोजित एक समारोह (1988) में कहा था कि पर्यावरण से जुड़े लोग चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों पर इस बात का दबाव बनायें कि वे अपने घोषणापत्रों में पर्यावरण से जुड़े मुद्‌दों को शामिल करें। इसके साथ ही यह भी कहा था कि पर्यावरण क्षरण के कारणों में राजनैतिक नेताओं तथा सरकारी अफसरों की जिम्मेदारी तय होना चाहिये, भले ही वे पद पर हों या नहीं।

दिल्ली स्थित ‘विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र’ (सीएसई) के संस्थापक स्व. श्री अनिल अग्रवाल ने दिल्ली दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में कहा था कि देश को ऐसे जिम्मेदार एवं संवेदनशील राजनेताओं को जरूरत है जो अन्य समस्याओं के साथ न केवल पर्यावरण की समस्याओं को समझें, अपितु उनके समाधान में भी अग्रणी रहें। मार्च 2005 में ‘आजादी बचाओ आंदोलन’ के एक कार्यक्रम में ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ के तत्कालीन अध्यक्ष एवं वैज्ञानिक स्व. प्रो. यशपाल ने कहा था कि राजनैतिक दलों ने चुनाव में हमेशा आम जनजीवन से जुड़े मुद्‌दों की अनदेखी की है, जिनमें पर्यावरण की समस्याएं प्रमुख हैं।

‘चिपको आंदोलन’ के प्रमुख, पद्मभूषण श्री चंडीप्रसाद भट्ट का कहना है कि मानव अस्तित्व की  रक्षा के लिए पर्यावरण के बारे में राजनैतिक दलों ने कभी गंभीरता से नहीं सोचा। विभिन्न दलों के नेता सामाजिक संगठनों के मंचों से तो पर्यावरण बचाने की बात करते हैं, परतु चुनाव के समय अपने घोषणा पत्रों में उसे जगह नहीं देते। ‘चिपको अंदोलन’ को वैश्विक ख्याति दिलवाने वाले स्व. सुंदरलाल बहुगुणा ने ‘नदी-जोड़ योजना’ की एक बैठक में मई 2009 में गुस्से से कहा था कि सभी राजनैतिक दलों द्वारा पर्यावरण को चुनावी मुद्दा नहीं बनाना एक अपराध है क्योंकि इस सदी की शुरुआत ही जल संकट एवं ‘ग्लोबल वार्मिंग’ जैसी वैश्विक समस्याओं से हुई है।

लगभग 50 वर्ष पूर्व ‘विश्‍व प्रकृति निधि’ (वर्ल्ड फंड फॉर नेचर, डब्ल्यूएफएन जिसका पूर्व नाम ‘विश्‍व वन्‍यजीव कोष’ था।) ने एक ‘ग्रीन-चार्टर’ बनाकर विभिन्न राजनैतिक दलों के पास इस अनुरोध के साथ भेजा था कि इसकी बातें वे अपने चुनावी घोषणापत्रों में शामिल करें। इसमें पांच प्रमुख बात कही गयीं थीं – ‘केन्द्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय’ का नाम ‘पर्यावरण संरक्षण मंत्रालय’ हो, पर्यावरण संरक्षण में जनता की भागीदारी की योजना बनायी आए, उद्योग, कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में पर्यावरण सरंक्षण पर ध्यान दें, शहरों की संतुलित एवं पर्यावरण अनुकूल विकास योजनाएं बने, शिक्षा व्यवस्था में पर्यावरण के महत्व को समझाया जाए।

इसी समय ‘जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय’ (एनएपीएम) में दस सूत्रीय जनता के मुद्दे सुझाये थे जिनमें एक जल, जंगल, जमीन, खनिज एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबंधन से जुड़ा था। प्रसिद्ध पत्रकार प्रफुल्ल बिडवई से जुड़े नागरिकों के संगठन ने भी एक एजेंडा बनाया था जिसमें देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं उनके प्रबंधन पर स्थानीय समुदाय के लोगों की भागीदारी पर ओर दिया गया था। वर्ष 1998 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान वहां के निवासियों को वायु प्रदूषण के गंभीर प्रभावों के बारे में ‘विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र’ द्वारा बताया गया था। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों से कहा जाना चाहिए कि वे वादा करें कि पर्यावरण के मामले में आम लोगों के साथ हैं। इस सिलसिले में प्रत्याशियों के प्रयासों की जानकारी घोषणा पत्रों के अलावा विज्ञापनों में भी दी जानी चाहिए।

हाल ही में मुम्बई से प्रकाशित एक समाचार पत्र से पता चला कि वहां के ‘नेट-कनेक्ट’ तथा ‘वाय डाग फाउंडेशन,’ ‘सागर शक्ति,’ ‘खबर,’ ‘वेटलैंड्स ऐंड हिल्स’ तथा ‘एलायंस फार रिवर्स इन इंडिया’ आदि संगठनों के प्रमुख एवं उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण के लिए राज – नेताओं की जवाबदेही हेतु एक अभियान शुरू किया है। इसका प्रमुख मुद्दा है कि पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने हेतु राजनैतिक दल अपने घोषणा पत्रों में इसका उल्लेख करें। इस संदर्भ में सभी दलों को पत्र भी लिया गया है। पर्यावरण के बिगडे और गातार बिगडते हालातों को देखते हुए अब यह जरूरी हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाग ले रहे प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्रों की पर्यावरण समस्याए एवं उनके समाधान के प्रयासों की जानकारी घोषणा पत्रों में दें। (सप्रेस)

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