अशीष कोठारी

आम चुनाव की इस बेला में कमोबेश हरेक रंगों-झंडों वाली राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी किए हैं, ताकि सभी खास-ओ-आम को पता चल जाए कि वे अगले पांच साल में क्या-क्या करने और क्या नहीं करने वाली हैं। ऐसे में ठेठ ग्रामीण, मैदानी इलाकों में सक्रिय करीब 85 संगठनों, संस्थाओं के ‘विकल्प संगम’ ने अपनी बात रखने की खातिर अपना घोषणापत्र भी जारी किया है। क्या है, इस घोषणापत्र में?

भारत अपनी बढ़ती युवा आबादी के साथ, एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। ‘मानव विकास संस्थान’ (आईएचडी) और ‘अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट – 2024’ युवाओं में रोज़गार के बहुआयामी परिदृश्य पर प्रकाश डालती है। भारत की युवा आबादी विश्व में सबसे अधिक है। भारत का यह जनसांख्यिकीय लाभ हमारे लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है।

‘भारत रोज़गार रिपोर्ट – 2024’ से पता चलता है कि राष्ट्र में युवा बेरोज़गारी की समस्या चिन्ताजनक स्तर तक पहुँच गई है, खासकर शिक्षित युवाओं के बीच उच्च बेरोज़गारी चिन्ता का विषय है। भारत के युवाओं में कुल बेरोज़गारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो संकट को और भी बढ़ा देती है। इसके अलावा, महिला श्रमबल की भागीदारी में चिन्ताजनक गिरावट दर्ज की गई है, जो इस जटिल मुद्दे में एक और परत जोड़ती है।

वर्तमान में, भारत की कुल बेरोज़गार श्रमशक्ति में युवाओं की हिस्सेदारी आश्चर्यजनक रूप से 83 प्रतिशत है। इसके अलावा, कुल बेरोज़गारों में शिक्षित युवाओं का हिस्सा दो वर्षों के दौरान दोगुना हो गया है, वर्ष 2000 में यह 35.2 प्रतिशत था जो बढ़कर वर्ष 2022 में 65.7 प्रतिशत हो गया है। ये आँकड़े स्थिति की गम्भीरता को रेखांकित करते हैं और शिक्षित युवाओं द्वारा लाभप्रद रोज़गार के अवसर हासिल करने में आने वाली चुनौतियों को उजागर करते हैं।

इन चिन्ताजनक आँकड़ों के अलावा, महिला श्रमबल की भागीदारी में एक उल्लेखनीय गिरावट हुई है, जो समस्या को और भी बढ़ाती है। राष्ट्र के कामगारों में महिलाओं की कमी सिर्फ उनके आर्थिक सशक्तिकरण को ही नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करती, बल्कि व्यापक सामाजिक चुनौतियों में भी इज़ाफा करती है।

भारत के श्रम परिदृश्य की एक प्रमुख विशेषता अनौपचारिक क्षेत्र का रोज़गार है। 82 प्रतिशत श्रमशक्ति अनौपचारिक क्षेत्र के रोज़गार में लगी हुई है, जिसमें लगभग 90 प्रतिशत अनौपचारिक रूप से कार्यरत है। कुरियर डिलवरी, घर-घर खाना पहुँचाना, टैक्सी और रैपिडो मोटरसाइकिल पर सवारियाँ ढोना जैसे नए किस्म के रोज़गार बढ़ते हुए नज़र आते हैं। इनका जुड़ाव बड़ी-बड़ी कम्पनियों से है, लेकिन इनमें काम करने वाले युवा उन बड़ी कम्पनियों के कर्मचारी ना होकर स्व-रोजगार और अनौपचारिक काम की श्रेणी में आते हैं। अनौपचारिक काम की यह व्यापकता अर्थव्यवस्था और युवाओं के भविष्य के लिए सुरक्षित विकल्प नहीं है।

भारत के युवाओं ने पिछले दो दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उच्च शिक्षा, जो गुणवत्तापूर्ण नौकरियों तक पहुँचने का एक प्रमुख कारक है, अनेक लोगों के लिए अब सुलभ है। हालाँकि, केवल शिक्षा ही रोज़गार की गारंटी नहीं है। कक्षाओं से निकलकर युवाओं का कार्यस्थलों तक पहुँच पाना एक बड़ी बाधा बनी हुई है। रिपोर्ट इस अन्तर को प्रभावी ढंग से पाटने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।

शिक्षा प्रणाली को रटने के दायरे से बाहर निकलकर व्यावसायिक कौशलों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट कहती है कि व्यावसायिक प्रशिक्षण, इंटर्नशिप और अपरेंटिसशिप को पाठ्यक्रम में समाहित किया जाना चाहिए। साथ ही, उचित समय पर करियर परामर्श और मार्गदर्शन छात्रों को उनके शैक्षिक भविष्य के बारे में समझ-बूझकर निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। रिपोर्ट कहती है कि शिक्षा को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ मेल करके, हम रोज़गार क्षमता को बढ़ा सकते हैं और शिक्षा तथा कौशल की असंगतता को कम कर सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 70-80 लाख युवा श्रम बाज़ार में प्रवेश करते हैं। ये युवा विविध आकांक्षाएँ, कौशल और आशाएँ लेकर आते हैं। यद्यपि शैक्षिक उपलब्धियों में सुधार हुआ है, यानी नामांकन बढ़ा है, ड्रापआउट घटा है, स्नातक और उससे ज़्यादा शिक्षा प्राप्त करने की दर में इज़ाफा हुआ है, तथापि शिक्षा क्षेत्र की इन उपलब्धियों को सार्थक रोज़गार में बदलना एक चुनौती बनी हुई है।

श्रम बाज़ार की चुनौतियाँ शिक्षित युवाओं के बीच बढ़ती बेरोज़गारी दरों के कारण और भी बढ़ जाती हैं। वर्ष 2000 से 2019 तक युवा बेरोज़गारी में तिगुनी वृद्धि हुई, लेकिन वर्ष 2022 में 12.1 प्रतिशत तक गिरने का संकेत एक अस्थिर परिदृश्य को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, शिक्षित युवाओं की बेरोज़गारी दर वर्ष 2000 में 23.9 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019 में 30.8 प्रतिशत हो गई, लेकिन वर्ष 2022 में यह 18.4 प्रतिशत तक गिर गई, जो रोज़गार की सम्भावनाओं के अस्थिर स्वरूप को दर्शाती है।

भारतीय श्रम बल का कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में संक्रमण एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसके परिणामस्वरूप रोज़गार पैटर्न और अनौपचारिक काम की प्रवृत्ति में बदलाव हुआ है। यह परिवर्तन ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट – 2024’ के डेटा से स्पष्ट है, जो हाल के वर्षों के दौरान स्वयं रोज़गार, नियमित रोज़गार और आकस्मिक रोज़गार में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है। अनौपचारिक रूप से रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों की ज़्यादा तादाद ने इस वर्ग के लिए नौकरी की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और लाभों को प्राप्त करने से सम्बन्धित मुद्दों की विफलता को उजागर किया है।

रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि उभरती हुई प्रौद्योगिकियों, जैसे ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (एआई) का रोज़गार गतिविधियों पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ की प्रगति के कारण आउटसोर्सिंग उद्योग में आने वाले सम्भावित संकटों से निपटने के लिए त्वरित और ठोस उपायों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है। रिपोर्ट में इसके युवा रोज़गार पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने पर भी बल दिया गया है।

भारत के युवाओं के लिए एक समृद्ध भविष्य की ओर जाने का मार्ग सशक्तिकरण और अवसर निर्माण के लिए समन्वित और सहयोगी प्रयासों में निहित है। युवा सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने वाले माहौल को बढ़ावा देकर, भारत अपने जनसंख्या लाभ की क्षमता का फायदा उठा सकता है। इसके परिणामस्वरूप सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। सतत् रोज़गार के पर्याप्त अवसर बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि लक्षित नीतियों और पहलों के माध्यम से युवा राष्ट्रीय विकास में सक्रिय रूप से योगदान कर सकें।भारत के युवा उसकी सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं। इस जनसंख्या का फायदा उठाने के लिए नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और नियोक्ताओं को आपस में सहयोग करना होगा। शिक्षा, कौशल विकास और नौकरी निर्माण में निवेश आवश्यक है। ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट – 2024’ भविष्य की ओर मार्गदर्शन करती है जहाँ युवा आकांक्षाएँ श्रम बाज़ार की वास्तविकताओं के साथ सहजतापूर्वक मेल खा सकें। (सप्रेस)

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