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सर्वोदय प्रेस सर्विस – छह दशक की अनवरत यात्रा

ऐसे समय में जब लोकतंत्र के प्रमुख अंगों का लगातार क्षरण हो रहा होउन्‍हें कमजोर किया जा रहा होएक जरूरी समीक्षक के रूप में मीडिया की भूमिका महत्‍वपूर्ण हो जाती हैलेकिन यदि खुद मीडियाखासकर मुख्‍यधारा का मीडिया अपनी लोकतांत्रिक जिम्‍मेदारी उठाने में आनाकानी करने लगे तो क्‍या किया जाएऐसे में पूंजी और बाजार के दायरे से बाहर सक्रिय वैकल्पिक मीडिया जरूरी हो जाता है। ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ (सप्रेस) अपने छह दशक लंबे जीवन और करीब डेढ हजार (ऑन-लाइन और प्रिंट संस्‍करणों के) मौजूदा उपयोगकर्ताओं के साथ ठीक इसी तरह की भूमिका निभाता रहा है।

वर्ष 1960 में इंदौर आए आचार्य विनोबा भावे की चुनौती और एक रूपए के सांकेतिक अनुदान से महेन्‍द्रकुमार द्वारा शुरु की गई ‘सप्रेस’ असल में मीडिया और गांधीवादी सामाजिक उपक्रमों का मिला-जुला रूप है। विनोबा तत्‍कालीन मध्‍यभारत के एक महत्‍वपूर्ण शहर और वर्तमान मध्‍यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को ‘सर्वोदय नगर’ में तब्‍दील करने की सद्इच्‍छा से महीनेभर के इंदौर प्रवास पर थे। एक दिन उन्‍होंने सर्वोदय विचार को प्रसारित करने की जरूरत पर बल देते हुए चुनौती रखी कि ‘सर्वोदय का मंच तो बना है लेकिन कोई प्रेस नहीं है। इसे कौन करेगा ?’  

जयप्रकाश नारायण (जेपी) के आव्‍हान पर अपनी स्‍नातकोत्‍तर कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़कर भूदान-ग्रामदान के काम में लग गए युवा महेन्द्रकुमार को यह चुनौती उत्साहित कर गई। उन्होंने तत्‍काल विनोबा से गांधी विचार पर आधारित एक सशक्त प्रेस खड़ी करने का वादा कर दिया। विनोबा से तत्‍काल, वहीं मिले एक रुपए के सांकेतिक सहयोग तथा लिखने-पढने और संवाद की अपनी बेहतरीन क्षमताओं के बल पर महेन्‍द्रभाई ने जीवन भर यह वादा निभाया।

‘सप्रेस’ के संस्थापक-संपादक स्व. महेन्द्रकुमार गांधी विचार की शीर्षस्थ संस्थाओं – ‘अखिल भारतीय सर्व सेवा संघ,’ ‘राष्‍ट्रीय गांधी स्मारक निधि,’ ‘गांधी शांति प्रतिष्ठान’ आदि से जीवनपर्यन्‍त सम्बद्ध रहे। ‘सप्रेस’ को अपनी प्राथमिक गतिविधि मानते हुए चार दशक से अधिक, जनवरी, 2003 में अपनी मृत्युपर्यन्त वे इस जिम्मेदारी को निभाते रहे। उनके जाने के बाद, तीन साल तक ‘सप्रेस’ के संपादन की जिम्‍मेदारी पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता राकेश दीवान ने उठाई। जून 2006 से फरवरी 2017 तक इंदौर के रंगकर्मी और लेखक चिन्मंय मिश्र  ‘सप्रेस’  के संपादक रहे। इस बीच करीब डेढ साल (फरवरी 2017 से अगस्‍त 2018 तक) प्रबंध-संपादक कुमार सिद्धार्थ द्वारा जिम्मा उठाने के बाद सितम्‍बर 2018 से एक बार फिर राकेश दीवान ने ‘सप्रेस’ के संपादन का दायित्व संभाला है।  

अंतरराष्‍ट्रीय मजदूर दिवस,’ एक मई 1960 से विधिवत शुरु हुई ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ की निष्‍ठावान पहल के तहत हर सप्ताह तीन या चार आलेख और कुछ ख़बरों के साथ साप्ताहिक बुलेटिन जारी किया जाता है। ‘सप्रेस’ एक समाचार-विचार सेवा हैजिसके माध्यम से समाज के हाशिए पर बैठे वंचितोंदलितोंआदिवासियोंमहिलाओंकिसानों आदि के बारे में लेख और समाचार प्रकाशित किए जाते हैं। मोटे-तौर पर जलजंगलजमीनविस्थापनपर्यावरणगरीबीश्रमसामाजिक परिवर्तनविकासस्‍वास्‍थ्‍यशिक्षाकृषि जैसे मुद्दों पर विषय विशेषज्ञोंवरिष्‍ठ लेखकों और मैदानी कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार की गई सामग्री देशभर के पत्र-पत्रिकाओं के माध्‍यम से पाठकों तक पहुंचाने का काम ‘सप्रेस’ ने किया है।

‘सप्रेस’  बुलेटिन देश के 17 राज्यों के 500 से अधिक अखबारों, पत्र- पत्रिकाओं, संस्थाओं, व्यक्तियों, संगठनों को प्रति सप्ताह भेजा जा रहा है। इन बुलेटिनों के माध्यम से वर्ष भर में भेजे जाने वाले लगभग 150 आलेखों को हिंदी अखबारों द्वारा प्रकाशित किया जाता है। हमारा प्रयास है कि देश के विभिन्न अंचलों में अखबारों/पत्रिकाओं में सामाजिक सरोकारों से संबंधित सामग्री नियमित रूप से पहुंचती रहे तथा मास मीडिया के जरिये इन मुद्दों को आम जनता के बीच लाया जाता रहे। अपनी इस नीति के चलते ‘सप्रेस’ बडे, नामधारी अखबारों के अलावा अपनी सामग्री छोटे पत्र-पत्रिकाओं को भी भेजता है। इन स्‍थानीय और आसपास के गांवों, कस्‍बों और शहरों में रुचि से पढे जाने वाले समाचार पत्रों, पत्रिकाओं से ‘सप्रेस’ को आमतौर पर कोई शुल्‍क नहीं मिल पाता, लेकिन उनके जरिए जन सामान्‍य तक विचार का व्‍यापक प्रसार-प्रचार हो जाता है।    

सप्रेस’ की खासियत है कि देश के कई प्रतिष्ठितख्यात लेखकोंसमाज सेवियों और पत्रकारों के लेख इससे जारी हुए हैं। इन लेखकों में विनोबा भावेजयप्रकाश नारायणदादा धर्माधिकारीबाबा आमटेसुंदरलाल बहुगुणाचंडीप्रसाद भट्टसिध्दराज ढड्ढा(पूर्व) न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारीअनुपम मिश्रप्रो. ठाकुरदास बंगअमरनाथभाईरामचंद्र राहीराधा भट्टएसएन सुब्बरावपी व्ही राजगोपालकुमार प्रशांतमेधा पाटकरराजेन्‍द्र सिंहभारत डोगरानारायण देसाईदेवेन्दर शर्माप्रो. रामप्रताप गुप्ता सहित अनेक पत्रकारचिंतकलेखकसामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।

सप्रेस’ का जुड़ाव राष्ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया और सामाजसेवी संस्थानों के साथ भी रहा है। इनमें ‘थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स (टीडब्‍ल्‍यूएन),’ ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई),’ ‘अर्थस्केन,’ ‘पेनोस इंस्टी‍ट्यूट,’ ‘सरवाइवल इंटरनेशनल,’ ‘एमनेस्टी‍ इंटरनेशनल,’ ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी),’ ‘इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क,’ ‘रेनफारेस्ट मूवमेंट,’ ‘गांधी शांति प्रतिष्ठान’ आदि प्रमुख हैं।

‘सप्रेस’ एक तरफ, अपनी सामग्री के जरिए नीति-निर्माताओं को मैदानी परिस्थितियों से दो-चार करवाना चाहता है तो दूसरी तरफ, समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज को उचित जगह स्‍थापित करना चाहता है।

हम सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में मीडिया की प्राथमिकताओं, सोच और कार्यशैली में बदलाव आया है। ऐसे में आर्थिक संसाधनों का अभाव ‘सप्रेस’ के सामने एक अहम चुनौती है। गांधी विचार पर आधारित संस्‍थाओं की प्रतिवर्ष मिलने वाली आर्थिक मदद भी अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। फिलहाल ‘सप्रेस’ (प्रिंट) देशभर में फैले छोटे-मोटे दान-दाताओं, पत्र-पत्रिकाओं से मिलने वाले थोडे-बहुत पारिश्रमिक और निजी आर्थिक सहयोग से संचालित हो रही है।

अपने प्रिंट मीडिया के अनुभवों के बाद हमने अब spsmedia.in स्वतंत्र हिंदी विचार-विश्‍लेषण पोर्टल के तौर पर एक डिजिटल पहल की शुरूआत की है। यह कुछ पत्रकारों, संस्‍थानों, व्‍यक्तियों और मित्रों की साझी पहल का परिणाम है । हम लंबे समय से सप्रेस वेब पोर्टल शुरु करने के बारे लगातार चिंतन-मनन की प्रक्रिया में थे। इसी की फलश्रुति है कि सप्रेस के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हमने खुद को और बेहतर पत्रकारिता के अपने संकल्प को एक और अवसर देने के लिए एक नया रास्ता बनाने का निश्‍चय किया। एक संस्थान के रूप में ‘सप्रेस’ का हिंदी वेब संस्करण जनहित और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है।

एक नये वेब पोर्टल के लिए संसाधन जुटाना हमारे लिए उतनी ही मुश्किल भरा काम है, जिस प्रकार सप्रेस फीचर्स को हर हफ्ते प्रसारित कर मीडिया व आमजन तक पहुंचाना। वैसे हमें सीमित संसाधनों और सादगी में काम करने का लंबा अनुभव रहा है। अपने प्रयास में  हमने कुछ अलग लोगों को जोड़ने की कोशिश की है, जिनमें पत्रकारों के अलावा सामाजिक कार्यकत्‍ताओं, लेखक, चिंतक और जमीनी स्‍तर पर जुडे व्‍यक्तियों का सहयोग मिल रहा है।

ऐसे में अपनी भूमिका को कुशलता और कर्मठता से निभाने और भविष्‍य की बेहतरी के लिए योजना बनाने में कामयाबी मिल सके इसके लिए आपका साथ और सहयोग अपेक्षित है। आपका छोटा सा छोटा सहयोग ही हमारे लिए बडी ताकत है। आशा है आप अपनी क्षमता-भर  ‘सप्रेस’ को आर्थिक और अन्‍य सहयोग देंगे।  

राकेश दीवान
संपादक

सप्रेस टीम से मिलें

राकेश दीवान

सप्रेस बुलेटिन और spsmedia.in वेब पेार्टल के संपादक हैं। देश के अनुभवी स्‍वतंत्र पत्रकारों में उनका नाम अग्रणी है। होशंगाबाद के ‘मिट्टी बचाओ अभियान’ में एक कार्यकर्त्‍ता के रूप में काम किया। प्रभाष जोशी,अनुपम मिश्र, श्रवण गर्ग, महेन्‍द्र भाई आदि के सान्निध्‍य में जल, जंगल, जमीन, विस्‍थापन, आदिवासियों आदि मुद्दों पर सक्रिय रहते हुए स्‍वतंत्र लेखन कार्य में संलग्‍न रहे। उन्‍होंने  ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन,’ ‘छत्‍तीसगढ मुक्ति मोर्चा,’ आदि जन-संगठनों के साथ लंबे समय तक काम किया। कुछ साल ‘दैनिक हिंदुस्‍तान’  के लिए रिपोर्टिंग करते रहने के बाद ‘तहलका’ साप्‍ताहिक से जुडे रहे। उन्‍होंने ‘दैनिक भास्‍कर’ में विशेष संवाददाता के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। उन्‍होंने विकास, बांध, राजनीति,  मानवाधिकार समेत अन्य विषयों पर उल्लेखनीय काम किया है। आपने देश के अनेक जन संगठनों के साथ संवाद-संपर्क रखते हुए कार्यों को आगे बढाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। आप  ‘सर्वोदय प्रेस समिति’ के संस्थापक-अध्यक्ष भी हैं। उनसे rakeshdewan@spsmedia.in पर संपर्क किया जा सकता है।

रघुराजसिंह

वर्ष 1968 से 2005 की अवधि में पहले वे पत्रकारिता, अध्यापन और फिर 22 वर्षों तक मध्यप्रदेश शासन के जनसम्पर्क विभाग से सम्बद्ध रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक संस्‍थाओं एवं पत्रकारिता जगत से जुडे हुए है। वर्तमान में आप सर्वोदय प्रेस समिति के बोर्ड सदस्‍य है उनसे singh.raghuraj@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

डॉ. ओ. पी. जोशी

40 साल तक विज्ञान महाविद्यालय में प्राध्‍यापक एवं प्राचार्य के रूप में काम करने वाले डॉ. ओ. पी. जोशी पर्यावरण विषय के जानकार हैं। पिछले 4 दशक में उनके सैंकडों आलेखों का प्रकाशन देश के विभिन्‍न अखबारों व पत्रिकाओं में हुआ है। पर्यावरण विषय पर दो पुस्‍तकों का प्रकाशन भी हुआ है। वर्तमान में आप सर्वोदय प्रेस समिति के बोर्ड सदस्‍य है। उनसे opjoshi54@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है।

डॉ. खुशालसिंह पुरोहित  

पर्यावरण संरक्षण की लोक चेतना के पर्याय बन चुके वरिष्ठ पत्रकार डॉ. खुशालसिंह पुरोहित (सम्पादक, पर्यावरण डाइजेस्ट) को अध्ययन काल में ही युगमनीषी डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन का स्नेह आशीष मिला। डॉ. सुमन के निर्देशन में हिन्दी पत्रकारिता विषय पर लिखे शोध प्रबंध पर पीएच.डी. की उपाधि ली। इसके बाद पर्यावरण विषय में नीदरलैण्ड से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की। तरूणाई के दिनों में ही स्वदेश इन्दौर, दैनिक वीर अर्जुन और हिन्दुस्तान समाचार एजेंसी के रतलाम जिला संवाददाता के रूप में कार्य किया। बाद में आप इन्दौर में दैनिक स्वदेश में सह-संपादक भी रहे। आपके सम्पादन में अब तक 6 पुस्तकें प्रकाशित हुई है । पर्यावरणीय पत्रकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व एवं सफल योगदान के लिए अब तक आपको अनेक सम्मान/पुरस्कार मिले है। सप्रेस से आपका जुडाव लगभग  40 वर्षों से है। वर्तमान में आप सर्वोदय प्रेस समिति के बोर्ड सदस्‍य है। उनसे kspurohitrtm@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

कुमार सिद्धार्थ

पिछले तीन दशक से सामाजिक एवं शिक्षा कार्य से संबद्ध है। इंदौर शहर और प्रदेश की अनेक सामाजिक, रचनात्‍मक एवं गांधी विचार संस्‍थाओं से जुडे है। सर्वोदय प्रेस सर्विस के कार्य में जीवन के शुरूआती दौर से ही सहभागी/सहयोगी रहे है। सप्रेस के संस्‍थापक संपादक महेंद्रकुमार के सान्निध्‍य में समाज सेवा एवं पत्रकारिता की शिक्षा-दीक्षा प्राप्‍त कीं। आप सप्रेस के प्रबंधकीय एवं संपादकीय कार्यों से जुडकर अपनी स्‍वैच्छिक तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। शिक्षा, पर्यावरण और सामाजिक सरोकार से जुडे मुद्दों पर निरंतर स्‍वतंत्र लेखन करते है। देश के हिंदी अखबारों में अनेक आलेख प्रकाशित हुए है। वर्तमान में आप सर्वोदय प्रेस समिति के बोर्ड सदस्‍य है। उनसे kumarsiddharth@spsmedia.in पर संपर्क किया जा सकता है।