प्रशांत दुबे

दुनियाभर में कमोबेश माना जाने लगा है कि या तो कोविड-19 लगभग समाप्त हो गया है या फिर हम उसके साथ जीने के लिए तैयार हो गए हैं, लेकिन हाल के कुछ शोध बता रहे हैं कि कोविड ने एक और बीमारी मधुमेह को उकसा दिया है। नतीजे में कोविड प्रभावित लोगों में मधुमेह बडे पैमाने पर बढ रहा है।

हम सभी जानते हैं कि संक्रमण काल के बाद से कोविड मरीजों में अलग-अलग तरह की बीमारियों के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में सामने आये आंकड़ों ने बताया है कि मध्यप्रदेश में विगत दो वर्षों में मधुमेह (Diabetes) के रोगी दुगुने से भी ज्यादा हो गये हैं, जबकि जानकार कहते हैं कि जमीनी हालत इससे भी ख़राब हैं। इसके पीछे मरीजों को स्टेरॉयड, रेमडेसिविर का बेजा उपयोग सामने आ रहा है। इसी से मधुमेह या डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है।

हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि उस समय मरीजों को स्टेरॉयड, रेमडेसिविर ही बचा सकते थे और ऐसे में मधुमेह (Diabetes) बढ़ने का कारण खाने-पीने की खराब आदतों और अस्वस्थ्य जीवनचर्या को भी मानना चाहिए। वे कहते हैं कि ‘टाइप–1’ डायबिटीज़ अनुवांशिक होती है और मां-बाप से बच्चों में आती है। जबकि ‘टाइप-2’ डायबिटीज़ खराब भोजन और जीवन-पद्धति के कारण होती है। इसका साफ मतलब है कि ‘टाइप–2’ डायबिटीज़ से बचाव जीवन-पद्धति में बदलाव कर किया जा सकता है। इससे बचाव के लिए इसकी पहले चरण में ही जानकारी होना उतना ही जरुरी है, जितना इसे रोकना।

स्वास्थ्य विभाग ने विगत दो सालों से ‘एनसीडी’ (असंचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम) के तहत ऐसे मरीजों की बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग शुरू की है। भोपाल में मार्च 2021 से अप्रैल 2022 के बीच 2117 लोगों की स्क्रीनिंग में मधुमेह पाई गई है, जबकि प्रदेश के सभी जिलों में 35,492 लोगों में  मधुमेह के लक्षण पाए गए हैं। भोपाल जिले में ही अप्रैल से अक्टूबर 2022  (यानी केवल सात माह में) में ही 3735 लोगों को मधुमेह के लक्षण पाए गए, जबकि प्रदेश भर की स्क्रीनिंग में यह आंकड़ा बढ़कर 1,51 लाख हो गया। ‘एनसीडी’ प्रोग्राम की प्रभारी डिप्टी डायरेक्टर डॉ. नमिता नीलकंठ ने बताया कि प्रदेश में अब स्क्रीनिंग की संख्या बढ़ाई जा रही है।  

ऐसा नहीं है कि यह बात केवल मध्यप्रदेश की है, बल्कि यह एक वैश्विक परिघटना के रूप में सामने आ रही है। महामारी के बीच विश्व भर के वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर डायबिटीज (Diabetes) के नए मामले अचानक इतने कैसे बढ़ गए हैं ! हाल ही में हुए शोध में पाया गया है कि कुछ लोगों में कोविड का संक्रमण होने के बाद डायबिटीज के लक्षण दिखने लगे हैं।

विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य पत्रिका ‘लैंसेट’ में प्रकाशित अध्ययन में लगभग 2,00000 लोगों का एक विशाल समूह शामिल था जो ‘कोविड – 19’ संक्रमण के बाद मधुमेह होने की संभावना में वृद्धि दिखाता था। अध्ययन के सह-लेखक और ‘वीए सेंट लुइस हेल्थकेयर सिस्टम,’ अमेरिका के मुख्य शोधकर्ता ज़ियाद अल. एली ने कहा कि जब महामारी कम हो जाती है तो हम इस महामारी की विरासत के साथ रह जाएंगे, एक ऐसी विरासत, जिसके लिए स्वास्थ्य देखभाल की प्रणालियाँ तैयार नहीं हैं।

अल. एली और उनकी टीम ने संक्रमित होने के एक महीने से अधिक समय तक 1,80,000 से अधिक लोगों के मेडिकल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया और उनकी तुलना गैर-संक्रमित लोगों के दो समूहों के रिकॉर्ड से की जिनमें लगभग चालीस लाख लोग शामिल थे। विश्लेषणों से पता चला कि कोविड-19 वाले लोगों में एक वर्ष तक मधुमेह विकसित होने की आशंका, उन लोगों की तुलना में जो कभी संक्रमित नहीं थे, 40 प्रतिशत अधिक थी। विशेष रूप से, पाए गए लगभग सभी मामले ‘टाइप – 2’ मधुमेह के थे।

नवीनतम अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोविड-19 की गंभीरता के साथ मधुमेह के विकास में वृद्धि हुई है। अध्ययन के लेखकों के अनुसार, जिन रोगियों को अस्पताल या ‘आईसीयू’ में भर्ती किया गया था, उनमें मधुमेह विकसित होने का जोखिम उन लोगों की तुलना में तीन गुना अधिक था, जो कभी संक्रमित नहीं हुए थे। ‘उच्च बॉडी-मास इंडेक्स’ (मोटे) वाले लोगों में, जो ‘टाइप – 2’ मधुमेह के लिए भी एक जोखिम-कारक हैं, संक्रमण के बाद विकसित होने की संभावना दोगुनी होती है।

‘साइंटिफिक अमेरिकन’ की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कई मरीज, जिनमें डायबिटीज के कोई लक्षण नहीं थे, उनमें भी अचानक मधुमेह के लक्षण दिखने लगे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए इंग्लैंड के ‘किंग्स कॉलेज, लंदन’ और ऑस्ट्रेलिया की ‘मोनाश यूनिवर्सिटी’ ने एक ‘कोविड डाईब’ नाम से एक रजिस्ट्री बनाई जिसमें डॉक्टरों को ऐसे मरीजों की जानकारी देनी थी, जिनमें कोविड-19 होने के बाद डायबिटीज के लक्षण नजर आए।

शोध में डॉक्टर्स ने पाया कि तमाम लोगों में ‘टाइप – 1’ और ‘टाइप – 2’ दोनों तरह की डायबिटीज के लक्षण देखने मिले। ये शोध कोविड-19 से सुधर चुके 3700 मरीजों को लेकर किया गया था जिसमें यह बात सामने आयी कि करीब 14 प्रतिशत मरीज ऐसे थे जिन्हें पहले से शुगर की बीमारी नहीं थी, लेकिन बाद में डायबिटीज का शिकार हो गए। वहीं इंग्लेंड में 47 हजार मरीजों पर की गई स्टडी में देखने को मिला कि करीब 5 प्रतिशत मरीज मधुमेह से ग्रसित हो चुके हैं। कुछ जानकारों के अनुसार, कोरोना वायरस ‘शुगर मेटाबॉलिज्म’ में खराबी पैदा करने की क्षमता रखता है और इसीलिए संक्रमित लोग अब मधुमेह का शिकार हो रहे हैं।

हालाँकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि आलसी जीवन-पद्धति, दिन में ज़्यादातर समय आराम करते रहना या बिस्तर पर पड़े रहना, एक तरह से कई बीमारियों को न्यौता देने जैसा है। जो लोग पूरा दिन लेटे या बैठे रहते हैं, उनमें ‘टाइप – 2’ डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ जाता है। इसी प्रकार हाई कैलोरी भोजन भी आप में ‘टाइप – 2’ डायबिटीज़ और मोटापे का ख़तरा बढ़ाने का काम करता है।

अगर आप रोज़ाना कम सक्रिय रहते हैं तो आपका भोजन भी लो-कैलोरी होना चाहिए। साथ ही फैट जो लिवर सहित शरीर के दूसरे अंगों में जमा होती है, डायबिटीज़ से जुड़ी है। नतीजतन, व्यक्ति का वज़न बढ़ना शुरू हो जाता है, जिससे भविष्य में मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है। तनाव भी शारीरिक और मानसिक कामकाज को बाधित करता है, जिससे मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध और मधुमेह का ख़तरा बढ़ जाता है। ऐसे में कई शोधों में पता चला है कि व्यायाम शरीर की श्वसन प्रणाली को स्वस्थ रखता है, लेकिन अगर आपके परिवार में मधुमेह (Diabetes) का इतिहास है, तो व्यायाम रोग के विकास के जोखिम को भी कम कर सकता है।

यह एक नई तरह की स्थिति है, जिससे निबटने के लिए ना तो सरकारों की तैयारी दिखती है और न ही व्यक्तियों की। यह कोविड-19 की विरासत है जिसके साथ चलने की और इससे निबटने की हम सभी को तैयारी कर लेनी चाहिये। (सप्रेस)

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