झूठे साबित हुए किसानों की आय दोगुना करने और खेती को लाभ का धंधा बनाने के दावे

हजारों किसानों द्वारा की जाएगी दिल्ली में गर्जना, सरकार के खिलाफ गहरा आक्रोश

डॉ. सन्तोष पाटीदार

भारतीय किसान संघ प्रदेश के बाद अब केंद्र सरकार की कृषि नीतियों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहा है। इस विरोध प्रदर्शन को लेकर विभिन्न प्रांतों के किसान 19 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटेंगे।

इंदौर, 18 दिसंबर। सत्ता, पूंजी और पूंजीपति आधारित मनचाहे विकास के शाइनिंग मध्‍यप्रदेश से लेकर कर्मपथ के शाइनिंग/वाइब्रेंट इंडिया तक की चकाचौंध में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। शाइनिंग इंडिया को आईना दिखाती  गांवों की 70 फ़ीसद आबादी वाले गांवों गरीब भारत की खेती किसानी इसकी हकीकत बयां कर रही है। चकाचौंध की इवेंट पॉलिटिक्स से लबरेज शिवराज सरकार का  ” खेती को लाभ का धंधा बनायेगे ” का घिसा पिटा हवाई सूत्र वाक्य हो या मोदी सरकार का “किसानों की आय को दोगुना करेंगे ” का जादूगरी  स्लोगन…. सब के सब औंधे मुंह पड़े हैं। यह न विरोधी दलों के आरोप हैं न ही वाम विचार…यह दास्तान इसी राष्ट्र के किसानों का वह संगठन सुना रहा है जो आरआरएस का मजबूत सहयोगी संगठन भारतीय किसान संघ  है। यही नहीं, यह इससे भी साबित हैं कि इस संगठन के देशभर के दूरस्थ गांवों में रहने वाले लाखों किसानों को सारे काम छोड़कर कड़कड़ाती ठंड  में यात्रा की तकलीफ उठाते दिल्ली कूच करना पड़ा।  गुस्सा इतना कि  सरकार और संसद को जगाने  दिल्ली में राष्ट्रव्यापी आंदोलन करना पड़ा। इसके लिए किसानों को अपनी गाढी कमाई की धनराशि खर्च करना पड़ी । सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए किसान 19 दिसंबर को रामलीला मैदान पर पहुंच रहे हैं। इस समय संसद सत्र चल रहा है और आम  बजट भी पेश होगा। इस लिहाज से किसानों की आवाज से सरकार और संसद की नींद  टूट जाए  इस लिहाज से आंदोलन की योजना बनाई गई।

दूसरी ओर बीते वर्ष केंद्र के  तीन नए कृषि कानूनों को रद्द कराने का किसान आंदोलन करने वाला संगठन भी  किसानों की लंबित मांगें लेकर फिर से मोर्चा लेने के मूढ़ में है। खेती के  तीन कानून रद्द करने के साथ एम एस पी कानून बनाने का वादा किया था।  संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाने का वादा किया पर किया कुछ भी नहीं, सरकार ने किसान संगठनों को धोखा दिया हे । यही स्थिति रही तो पुनः आंदोलन होगा और दिल्ली सील होगी।

स्पष्ट है कि देश भर में खेती किसानी का संकट दिनों दिन गहराता जा रहा हैं। आंदोलन के लिए एक के बाद एक  संगठन  कमर कस रहे है। खबर यह भी है कि हरियाणा और उप्र के गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया शक्कर मिलों द्वारा नहीं  दिया गया है। गत वर्ष का करोड़ों अरबों रुपए का भुगतान अब तक नहीं होने से हजारों किसान नाराज हैं और वे विरोध  प्रदर्शन कर रहे है। सबसे ज्यादा बकाया उप्र में है। हरियाणा की भी ऐसी ही स्थिति है।  मप्र के निमाड़ के धार खरगोन की शक्कर मिलों में भी गन्ने के भाव कम देने और बकाया भुगतान नहीं करने से किसानो में गुस्सा हैं। रेवा शुगर मिल में किसानों ने बीते दिनों बकाया पैसा नहीं मिलने पर प्रदर्शन किया था। इस सबसे जगह जगह सरकार के खिलाफ  किसानो में आक्रोश  हैं। 

किसान संघ भी संघ के ही अनुशांगिक संगठन बीजेपी की सरकारों से लड़ने को विवश हैं। इससे पहले बीते महीनो में भारतीय किसान  संघ अपनी मांगों को लेकर राज्यो और जिला स्तर पर लगातार धरने प्रदर्शन कर सरकार को जगाने के लिए गर्जना कर  चुका है। दिल्ली में रामलीला मैदान पर  किसान,  खेती की उपज का लाभकारी मूल्य देने, भू अधिग्रहण, जंगल के जानवरों से फसलों के नुकसान, सम्मान निधि, कृषि उत्पादों से जीएसटी हटाने जैसी महत्वपूर्ण मांगों को लेकर गर्जना आंदोलन के लिए  किसान दिल्ली पहुंचे। इसकी एक ही वजह रही, सरकारों की नजर में किसान  खेती दोयम दर्जे की है।  सरकार के लिए देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ खेती किसानी ज्यादा मायने नहीं रखती।  जबकि कोरोना से तबाह अर्थव्यवस्था को बचाने और भूखे पेट घरों में दुबकी देश विदेश की जनता और सरकार का पेट  किसानों ने ही भरा। किसानों और उनके खेत खलिहानों ने ही सरकारों के खजाने को खाली नहीं होने दिया।

संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी मोहिनी मोहन  मिश्र भी यह दर्द बयां कर चुके हैं। वे भी मानते है कि देश की आजादी  के बाद से अब तक कोई भी केंद्र सरकार रही हो वह किसानों के हितों को लेकर संजीदा नहीं रही है और किसी ने भी किसानों की नहीं सुनी। चाहे कांग्रेस की सरकारें रही या भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार  या  फिर इस समय मोदी सरकार , सभी ने किसानों के हितों को नजरअंदाज किया। 

जाहिर है किसानो को पुनः अपनी ताकत दिखानी पड़ रही हैं। 

संगठन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की बजाए लाभकारी मूल्य दिलाने की मांग पर अडिग है। किसान संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी कहते हैं ‘किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता। न्यूनतम समर्थन मूल्य लाभकारी मूल्य कतई नहीं है। किसानों को लाभकारी मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए उनका संगठन आंदोलन करने के लिए विवश हुआ है।’  उन्होंने बताया कि संघ की मांगों पर कार्रवाई के लिए मोदी सरकार को 31 अगस्त फिर 8 सितंबर तक का समय दिया गया था। सरकार ने सकारात्मक रुख नहीं अपनाया । सितंबर मैं फिर देशभर से मांग उठाई गई । इसके बाद अक्टूबर में संघ ने दिल्ली में 19 दिसंबर 2022 को राष्ट्रीय  गर्जना रैली और प्रदर्शन करने का  निर्णय लिया गया। मोदी सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के सवाल पर आप कहते हैं इसका फार्मूला भी  उपज की लागत पर निर्भर है । सबसे पहले यह निर्धारण होना चाहिए कि किसानों का खेती में व्यय कितना हो रहा है । जब लागत का निर्धारण हो जायेगा  तब ही उपज बेचने के भाव पर लाभ का आंकलन होगा । इस तरह  लागत के आधार पर किसानों को  लाभदायक मूल्य मिल सकता है। समग्र कृषि खर्च के लिहाज से न्यूनतम समर्थन मूल्य  किसान के लिए फायदेमंद नहीं हैं।जबकि लाभकारी मूल्य में किसान द्वारा लगाई गई पूंजीगत लागत पर ब्याज, मशीनरी के मूल्यह्रास, किसान के परिश्रम अनुसार मेहनताना शामिल हैं।  इस तरह  फसल उत्पादन में होने वाले कुल खर्च की लागत  पर 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर कर लाभकारी मूल्य की गणना की गई  है।

किसान संघ इस मांग को लंबे समय से उठा रहा है।  माहेश्वरी और इंदौर महानगर किसान संघ के अध्यक्ष दिलीप मुकाती ने बताया कि हमारी यह भी मांग  हैं कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सुनियोजित ढंग से किए गए किसान विरोधी प्रावधानों को खत्म किया जाए।  इसी तरह  किसान को फसल उत्पादक होने के बावजूद किसानों को जीएसटी का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता है इसलिए किसान गर्जना रैली में कृषि आदानों पर से जीएसटी खत्म करने की मांग भी की हैं । खरगोन  क्षेत्र के किसान  संघ के जिला अध्यक्ष सदाशिव पाटीदार और श्याम सिंह पंवार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई व मुद्रा स्फीति के अनुसार किसान सम्मान निधि राशि में भी बढ़ोतरी होनी चहिए। विकास के नाम पर कृषि भूमि के अधिग्रहण की मनमानी बंद होनी चाहिए और फसलों को नुकसान कर रहे जंगल के जानवरो के नियंत्रण के लिए वन पर्यावरण संगत नीति बनाने के साथ नुकसान का मुआवजा दिया जाए या खेतो की फेंसिंग के लिए अनुदान दिया जाए । फेंसिंग से फसल, नील गाय से लेकर जंगली सुअरो से सुरक्षित हो जायेगी।

संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी लक्ष्मी नारायण पटेल कहते हैं लागत मूल्य इसलिए भी जरूरी है कि ग्रामीण इलाक़े में जो किसान हैं, उनमें से 50 फ़ीसद के पास ज़मीन नहीं के बराबर है। बाक़ी के 50 फ़ीसद में से 25 फ़ीसद के पास एक एकड़ से कम की ज़मीन है । ऐसे किसान अपनी फ़सल एमएसपी पर बेच ही नहीं पाते। इन्हें एमएसपी की जानकारी ही नहीं है। बाक़ी बचे 25 फ़ीसदी किसानों में से  लगभग 10 प्रतिशत  किसान अपनी  एमएसपी वाली फ़सलें बाजार में बेच पाते होंगे । शांता कुमार कमेटी में  तो यह संख्या और भी कम बताई गई हैं। 

संघ के जैविक खेती प्रमुख आनंद ठाकुर कहते है सरकार द्वारा जीएम फसलों को भी चोरी छुपे अनुमति देने से कृषि के जानकारों से लेकर किसानों और पर्यावरण व सामाजिक कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। बीते 20 वर्षो से किसान संघ जीएम फसलों का कड़ा विरोध दर्ज कर रहा हैं।

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