अरुण कुमार डनायक

राजनीतिक क्षितिज में द्रविड़ विरुद्ध आर्य का विवाद बहुत पुराने समय से चल रहा है और इस विवाद के चलते सर्वमान्य हल निकालने के जो प्रयास हुए उसका साक्ष्य हमें भारत के संविधान की रचना के समय हुए वाद विवाद में दिखता है | देश का नाम भारत हो या इंडिया, भाषा हिन्दी हो या कोई अन्य, लिपि देवनागरी होनी चाहिए या नहीं, सामाजिक-धार्मिक रूढ़ियाँ और परम्पराएं कैसी हो इस पर खूब विवाद हुए और अंत में हमें इन विवादों से छुटकारा मिला, अंग्रेजों के बनाए नियम कानूनों तथा उनके भाषाई शब्दकोष के उपयोग करने से |

द्रविड़ और सनातन का मतभेद पुराना है| भारत में ब्राह्मणों के प्रादुर्भाव ने श्रेष्टता के नए नए पैमाने गढ़े | पहले उन्होंने आर्यों को श्रेष्ठ बताया फिर वर्ण व्यवस्था का जन्म हुआ तो ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ बने | बात आगे चली तो पञ्च गौड़ व पञ्च द्रविड़ ब्राह्मणों की नई शाखाएं अस्तित्व में आई | पञ्च द्रविड़ ब्राह्मणों में शामिल गुजरात, महाराष्ट्र, तेलगु, कन्नड़ व तमिल भाषी ब्राह्मणों और पञ्च गौंड ब्राह्मणों के बीच स्वयं को श्रेष्ठ बताने की प्रतिस्पर्धा ने भारत में आदि काल से निवास कर रही दो संस्कृतियों, आर्य और द्रविड़ संस्कृति के मध्य एक स्थाई विभाजन रेखा बना दी | आर्य और द्रविड़ों के मध्य भाषा, संस्कृति, कला, वास्तु व परम्पराओं को लेकर जो अंतर रहा है वह कभी भी अनेक प्रयासों के बावजूद  एकरूप नहीं हुआ | आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार कोनों में चार मठों ने अनेकता में एकता की धारणा को मजबूती दी लेकिन बिगड़ चुकी बात आसानी से कहाँ बनती है | उत्तर भारत ने इस्लाम के मार्फ़त भारत में आई कला और संस्कृति को स्वीकार करने में जो दरियादिली दिखाते हुए इंडो इस्लामिक संस्कृति को जन्म दिया वैसा शिल्प कला की नागर व द्राविड शैली, संगीत की कार्नेटिक व हिन्दुस्तानी विधा, भाषा की देवनागरी व द्रविड़ लिपि आदि में दृष्टिगोचर नहीं होता है |

राजनीतिक क्षितिज में भी द्रविड़ विरुद्ध आर्य का विवाद बहुत पुराने समय से चल रहा है और इस विवाद के चलते सर्वमान्य हल निकालने के जो प्रयास हुए उसका साक्ष्य हमें भारत के संविधान की रचना के समय हुए वाद विवाद में दिखता है | देश का नाम भारत हो या इंडिया, भाषा हिन्दी हो या कोई अन्य, लिपि देवनागरी होनी चाहिए या नहीं, सामाजिक-धार्मिक रूढ़ियाँ और परम्पराएं कैसी हो इस पर खूब विवाद हुए और अंत में हमें इन विवादों से छुटकारा मिला, अंग्रेजों के बनाए नियम कानूनों तथा उनके भाषाई शब्दकोष के उपयोग करने से |

आजकल एक नया विवाद चल निकला है | करूणानिधि के पौत्र तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से की है। उदयनिधि ने कहा- “मच्छर, डेंगू, फीवर, मलेरिया और कोरोना ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनका केवल विरोध नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें खत्म करना जरूरी होता है।“ उदयनिधि के अनुसार सनातन शब्द संस्कृत से आता है। ये समानता और सामाजिक न्याय के खिलाफ है। सनातन का अर्थ होता है- स्थायी यानी ऐसी चीज जिसे बदला नहीं जा सकता। जिस पर कोई सवाल नहीं कर सकता। उनका इतना कहना ही था कि हिन्दुत्ववादियों ने अचानक स्वयं को सनातनी घोषित कर इस बयान के खिलाफ शब्दबाण छोड़ना शुरू कर दिए | उत्तर भारत के संतों ने कहा कि सनातन धर्म सदियों से चला आ रहा है और सदियों तक चलता रहेगा। इस धर्म को खत्म नहीं किया जा सकता है। किसी ने नेताओं का मजाक उड़ाते हुए कहा कि कथित सेकुलर नेताओं में हिंदुओं को गाली देने की होड़ लगी है। हज़ार साल से ‘सनातन धर्म’ को मिटाने की असफल कोशिशें हो रही हैं। इसके बावजूद हम कायम हैं |

दक्षिणी राज्यों विशेषकर तमिलनाडु में उत्तर भारत में पोषित आर्य वैदिक संस्कृति का विरोध ही सत्ता की कुंजी बना हुआ है। तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास बताता है इसकी शुरुआत पिछली सदी के दूसरे दशक हुई जब वहाँ के नेताओं ने तमिलनाडु के निवासियों को द्रविड़ मानते हुए उन्हें उत्तर भारत में रहने वाले आर्यों से अलग कहा था। द्रविड़ आन्दोलन में तेजी आई जब इसकी कमान रामास्वामी उर्फ़ पेरियार के हाथों में गई | उनके द्वारा गठित दल आगे चलकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम कहलाया और 1967 के बाद के चुनावों में प्रदेश की सत्ता दो दलों डीएमके व अन्ना डीएमके के हाथ में रही है और वे ब्राह्मण विरोधी रुख के कारण ही  सत्तासीन होते रहे हैं | यह ब्राह्मण विरोध आयंगार और अय्यरों के खिलाफ है, जिन्हें पेरियार ने आर्य संस्कृति का ध्वज वाहक माना था | द्रमुक नेताओं के अनुसार ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति में शूद्रों का अपमान किया गया और उन्हें समानता, शिक्षा, रोजगार और मंदिरों में प्रवेश से वंचित रखा गया। सरकार के रिकार्ड में  द्रविड़ समुदाय हिंदू हैं | वे हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते हैं, राम कृष्ण को समर्पित अनेक मंदिर तमिलनाडु में श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, लेकिन जब बात राजनीति की हो, तो तमिलनाडु के क्षेत्रीय दल उत्तर भारतीयों के विरोध में खड़े हो जाते है | ब्राह्मणों के विरोध के अलावा वे हिन्दी भाषा, देवनागरी लिपि व हिंदुत्व का भी विरोध करते हैं | इस एजेंडे पर चलकर ही उन्हें राजनीतिक कामयाबी मिली है और उनका दबदबा चेन्नई से दिल्ली तक की सियासत में विगत आधी सदी से कायम है ।

उदय निधि का बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्षी एकता के प्रयासों को कुछ सफलता मिलनी दिखाई देने लगी थी | पटना, बंगलौर और फिर मुंबई में आयोजित बैठकों के सफल दौर के बाद जब यह बयान आया तो इसे सुर्खियाँ मिली | दक्षिण भारत खाकर तमिल ब्राह्मणों ने अपने उत्तर भारतीय सजातीय बंधुओं (यद्दपि दोनों में किसी भी तरह का मेल नहीं है) के साथ मिलकर सोशल मीडिया पर स्टालिन व उनके पुत्र के खिलाफ एक अभियान सा छेड़ दिया है| उदय निधि के खिलाफ जहर उगलती इन टिप्पणियों को भाजपा ने, जिसका आधार ही उत्तर भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को भडकाने से तैयार हुआ है, लपकने में देरी नहीं की | उसके अदने से नेता से लेकर शीर्षस्थ नेताओं तक ने सनातन धर्म की प्रशंंसा और द्रमुक के अलावा कांग्रेस व इण्डिया गठबंधन के खिलाफ बिना किसी विलम्ब के मोर्चा खोल दिया है | अब चारों तरफ से कांग्रेस व इंडिया गठबंधन के नेताओं से अपनी स्थिति स्पष्ट करने व सनातन धर्म के अपमान को लेकर की गई गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी पर माफी मांगने की मांग उठ रही है |

इस विवाद को ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाना ही  देश के हित में है | तमिलनाडु सीमावर्ती प्रांत होने के साथ साथ संवेदनशील क्षेत्र भी है | पेरियार के समय से ही द्रविड़नाडू नाम से एक अलग देश बनाए जाने की मांग उठती रही थी | विगत सदी के आठवें दशक में जब श्रीलंका में लिट्टे को लेकर गृह युद्ध जैसे हालात थे तब तमिल नागरिकों की सहानुभूति दिल्ली द्वारा लिए जा रहे निर्णयों के पक्ष में कतई नहीं थी | इसी भावना के कारण हमने राजीव गांधी के जैसा युवा नेता खो दिया | आज अगर हम इस विवाद को तूल देंगें तो सर्वधर्म समभाव की उस विचारधारा का क्या होगा जो हमारे संविधान के मूल ढाँचे में वर्णित है और हमारी पुरातन संस्कृति का हिस्सा है | प्रत्येक व्यक्ति, राजनीतिक व धार्मिक समूहों के नेताओं को अपने विचार रखने की आज़ादी संविधान ने दी है | हमें सभी की मान्यताओं का सम्मान करने की आदत विकसित करनी चाहिए | कतिपय टीका टिप्पणियाँ अनदेखा करने योग्य होती हैं, उदयनिधि की टिप्पणी भी इसी लायक है |(सप्रेस)

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