पिछले कुछ सालों में भोजन के बाजार ने भूख को किनारे कर दिया है। आजादी के बाद की तीखी भुखमरी के बरक्स हमने उत्पादन तो कई-कई गुना और इतना अधिक बढा लिया है कि पैदावार के भंडारण की समस्या...
गरीबी और शांति के बीच गहरा और एक-दूसरे पर निर्भरता का द्वंद्वात्मक रिश्ता रहा है। यानि यदि किसी समाज में गरीबी होगी तो वहां शांति स्थापना असंभव है। पडौसी बांग्लादेश में करीब चालीस साल पहले इसे एक प्रोफेसर ने...
कई सालों की मशक्कत के बाद हाल में टाटा कंपनी को ‘एयर इंडिया’ बेचकर मचाई जा रही बल्ले-बल्ले में किसी को उसकी अंतर्कथा दिखाई ही नहीं दे रही। यानि कि अभी कुछ साल पहले तक ठाठ से चलने वाली...
स्वराज के लिए गांधीजी राजनीतिक आजादी के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी आवश्यक मानते थे। लोकशाही की स्थापना के लिए सैनिक सत्ता पर नागरिक सत्ता की प्रधानता की लड़ाई वे अनिवार्य मानते थे। दरअसल आज सत्ता का आधार...
तेल की अपनी हवस की खातिर इराक में ‘नरसंहार के हथियारों’ की फर्जी अफवाह फैलाकर जिस तरह अमरीका की अगुआई में एक समूचे राष्ट्र को नेस्त-नाबूद किया गया, हाल में अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी की कहानी भी...
एस.एन सुब्बराव
महात्मा गांधी को ऐसे जियें
अमेरिका के चुने अच्छे लोग भारत में राजदूत बनकर आए। उनमें से एक बुद्धिजीवी थे - चेस्टर बौल्स। जिन्होंने भारत को लेकर एक सुंदर किताब लिखी, उनकी बेटी ने भी एक किताब लिखी।
वर्ष 1964-65...
हमारे समाज की चालाकी है कि वह अपना मार्ग-दर्शन और समीक्षा करने वालों का,भगवानजी से लगाकर महापुरुष तक के दर्जे का महिमामंडन करके, किनारे कर देता है। अपने जीवन को अपना संदेश बताने वाले महात्मा गांधी भी इस कारनामे...
विचार और वस्तु के बीच का सदियों पुराना द्वंद्व क्या साम्प्रदायिक और गैर-साम्प्रदायिक भी हो सकता है? क्या विचार पर विचारधारा की अहमियत एक तरह की साम्प्रदायिकता को जन्म देती है? और क्या अपने चतुर्दिक फैले व्यापक संसार में...
अपने समाज, देश और दुनिया के मौजूदा संकटों के निवारण के लिए महात्मा गांधी से पूछा जाता तो वे संभवत: इंग्लेंड और दक्षिण-अफ्रीका के बीच की जहाज-यात्रा के दौरान करीब 112 साल पहले लिखी अपनी किताब ‘हिन्द स्वराज’ के...
सार्वजनिक सम्पत्ति के निजीकरण की हुलफुलाहट में इन दिनों ठेका-प्रथा जारी है। हवाई-अड्डों, रेलवे-स्टेशनों, सडकों, कारखानों आदि को फिलहाल ठेके पर निजी कंपनियों को सौंपने के पीछे की नीयत आखिर निजीकरण नहीं तो और क्या है? ‘सरकार का काम...