हमारे समय का सर्वग्राही सवाल उस लोकतंत्र से है, जिसका नाम लेकर तरह-तरह के रंगों, झंडों वाली राजनीतिक जमातें सत्‍ता पर चढती-उतरती रहती हैं। क्‍या सचमुच हम जिसे सतत वापरते हैं, वह लोकतंत्र ही है? दुनिया के लोकतांत्रिक देशों...
हमारे किसी भी आकार-प्रकार के शहरों में चंद मिनटों की बरसात बाढ ला देती है और यह कारनामा पानी के प्राकृतिक स्रोतों, ठिकानों और सहज रास्‍तों पर अट्टालिकाएं खडी करने से होता है। कमाल यह है कि इसे अमली...
महात्‍मा गांधी के समूचे जीवन को देखें तो उस पर एक ‘जंतर’ का प्रभाव साफ दिखाई पडता है। सबसे गरीब और कमजोर आदमी को ध्‍यान में रखकर अपने कामकाज और भविष्‍य को तय करने के इस ‘जंतर’ ने गांधीजी...
केन्‍द्र सरकार द्वारा बनाए गए दो कानूनों और एक संशोधन के विरोध में इन दिनों देशभर में किसानों ने आंदोलन खडे कर रखे हैं। इन आंदोलन की बुनियादी मांगों के साथ गांधी की तजबीज भी जुड जाए तो कैसा...
विन्सेंट शीन लिखते हैं कि गांधी ने पूरी दुनिया की आत्म का छू लिया था। गांधी पर 1927 में रेने फुलम मिलर ने एक किताब लिखी। उसका शीर्षक था- लेनिन एंड गांधी। लेकिन तब तक गांधी को गंभीरता से...
आजादी बहुत अधिक सजगता की मांग भी करती है। अक्सर तो हमें इसका अहसास भी नहीं होता कि वह वास्तव में हम आजाद नहीं या फिर जिसे आजादी समझ रहे हैं वह गुलामी का ही एक परिष्कृत रूप है।...
जिन लहरों से हम अब मुख़ातिब होने वाले हैं उनका 'पीक' कभी भी शायद इसलिए नहीं आएगा कि वह नागरिक को नागरिक के ख़िलाफ़ खड़ा करने वाली साबित हो सकती है। जो नागरिक अभी व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा है...
प्रधानमंत्री की अगुआई में देशभर में ‘आत्‍मनिर्भरता’ की दुंदुभी बज रही है। लगभग हरेक क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनने की जुगत बिठाई जा रही है, लेकिन क्‍या मौजूदा विकास के ताने-बाने के साथ-साथ वास्‍तविक आत्‍मनिर्भरता संभव हो सकेगी? क्‍या इस...
रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकारों की ओर से दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन रोजगार फिर भी दूर की कौड़ी ही साबित हो रहे हैं। संगठित और असंगठित क्षेत्रों में जो रोजगार थे, वे भी धीरे-धीरे खत्म...
1 मई / अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस कोविड-19 के दौर और एक मई का दिन यानी मजदूर दिवस, हमें इस बात का आईना दिखाता है कि कोविड महामारी के दौर में सबसे ज्यादा अन्याय जिसने सहा वह है हमारा मजदूर वर्ग।...

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