कुलभूषण उपमन्यु

कोरोना यानि ‘कोविड-19’ ने देश की कामकाजी आबादी को सर्वाधिक संकट में डाल दिया है। संक्रमण के डर और बिना उत्‍पादन के बैठे-बिठाए रखने-खिलाने की जिम्‍मेदारी ने छोटे और मझौले उद्योगों को मजदूरों से मुंह फेरने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसे में पैदल अपने-अपने घर लौटने के अलावा इन श्रमिकों के पास कोई दूसरा चारा नहीं है।

देश कोरोना विषाणु के विरुद्ध लड़ाई के लिए तैयार हो चुका है। वित्तमंत्री ने कोरोना के चलते बढ़ रही कठिनाइयों को देखते हुए गरीब परिवारों के लिए कुछ राहतों की घोषणा की है जिसका स्वागत करना जरूरी है। यह ऐसी आपदा है जिसमें कब, क्या कदम उठाना पड़ें, कोई नहीं जानता, फिर भी कुछ बातों का पूर्वानुमान लगाने की जरूरत है। प्रशासनिक अमले को केवल राजनीतिज्ञों की पहल और आदेशों के इंतजार में बैठे रहना ठीक नहीं। राजनीतिज्ञों में सभी लोग, सभी मामलों और कामों के जानकार होंगे, यह सोचना भी बड़ी भूल होगी।

राजनीतिज्ञों से तो केवल इच्छाशक्ति का संदेश आना जरूरी है। यह संदेश प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सक्रियता से दिया जा चुका है। अब तो देश, काल, पात्र के सिद्धांत पर जहां, जैसी परिस्थिति है, वहां, वैसी पहल की जानी चाहिए। अच्छी बात यह रही है कि सभी लोग दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कोरोना के संकट पर विजय पाने के लिए एकता का प्रदर्शन कर रहे हैं। हां, कुछ अति-उत्साही या शरारती तत्व सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें या गलत जानकारियां फ़ैलाने का निंदनीय कार्य भी कर रहे हैं, जिससे इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में भ्रामक स्थिति पैदा हो रही है। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे तत्वों पर रोक लगाई जाए और लोग भी सोशल मीडिया की जानकारियों को जांच-परख कर ही विश्वास करें। केवल सरकारी मार्गदर्शन और विशेषज्ञों की राय पर ही विश्वास किया जाए। छोटी-छोटी सावधानियों पर ध्यान दिया जाए। प्रशासन ने पिछले कुछ दिनों से शिकंजा कसा भी है, फिर भी जनता का अपना जागना बहुत महत्वपूर्ण है।

हमारे अपने जिन्दा रहने के लिए उपयोगी और जरूरी मार्गदर्शन का उल्‍लंघन करके सरकारी आदेशों को धता बताने की प्रवृति न केवल आत्मघाती है, बल्कि पूरे समाज को खतरे में डालने वाली भी है। ‘लॉक डाउन’ के सारे आदेशों का पालन करना हमारे अपने लिए ही जरूरी है। चीन, इटली, स्पेन, ईरान, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों की हालत से सबक लेते हुए संभलना जरूरी है। हालांकि हम थोडी देर से जागे हैं फिर भी ठीक ही जाग गए हैं। यदि अब भी सामाजिक दूरी बनाने, घर के अंदर रहने, बार-बार साबुन से हाथ धोने, हाथ न मिला कर नमस्ते करने, जहां-जहां हाथ लगता है उन जगहों को प्रतिदिन विषाणु-मुक्‍त, सैनीटाईज़ करने, बार-बार गर्म पानी पीते रहने, अच्छा संतुलित आहार ले कर और विटामिन-सी आदि लेने की डाक्टरी सलाह का पालन करके अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बचा और बढ़ाकर हम इस विपत्ति से पार पाने में अपनी और देश की मदद कर सकते हैं।

अलबत्‍ता, कुछ चिंताएं ऐसी हैं जिनकी ओर तत्काल ध्यान देना जरूरी है। देश में मास्क और सैनिटाइज़र की बहुत कमी है। यहाँ तक कि डाक्टरों तक को ‘व्यक्तिगत प्रतिरक्षण उपकरण’ (पीपीई) नहीं मिल रहे हैं। कुछ लोग इनकी जमाखोरी भी कर रहे हैं, लेकिन फिर भी युद्ध स्तर पर ये उपकरण उपलब्ध करवाए जाने चाहिए। मलमल के पतले कपड़े की दो या तीन तहें बनाकर मास्क तो स्वयं भी बनाए जा सकते हैं। इस समय सबसे जरूरी बात ऐसे लोगों को भोजन-पानी की व्यवस्था करना है जो रोज़ कमाते और रोज़ खाते हैं। कचरा बीनने वाले, रैग पिकर, घुमन्तु-विमुक्त जन-जातियों के लोग जिनके पास कोई साधन ही नहीं हैं, उनका ख्याल रखा जाना चाहिए। गांव में पंचायतों के माध्यम से और शहरों में नगर निकायों के माध्यम से यह कार्य किया जा सकता है।

इससे भी जरूरी आपद-धर्म तो उन दैनिक मजदूरों और छोटे-छोटे धंधे वालों को राहत देना है जिनके काम बंद हो गए हैं और जिनके पास कोई चारा नहीं बचा है जिससे वे रोटी खा सकें। ऐसे लोग पैदल ही शहरों से सैंकड़ों मील दूर अपने-अपने घरों की यात्रा पर निकल पड़े हैं। रास्ते में कोई ढाबे आदि भी नहीं खुले हैं जहां उन्‍हें किसी की मेहरबानी से भोजन मिल सके। भूख-प्यास से ये लोग जिन्दा रहने के संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए, वे जहां हैं, वहीं पर रोक कर भोजन की व्यवस्था की जानी चाहिए। यह भी हैरान करने वाली बात है कि उनके रोजगार-दाताओं ने उन्हें इस मुसीबत की घड़ी में घर जाने को कह दिया जबकि पता है कि पूरे देश में ‘लॉक डाउन’ है, संक्रमण का खतरा है। ऐसे यात्रियों को तत्काल विशेष वाहनों से घर पंहुचाने की व्यवस्था की जाए, जो कार्य-स्थलों पर हैं। उन्हें रोजगार देने वालों की जिम्मेदारी पर व्यवस्थित किया जाए, उनके खाने की व्यवस्था की जाए। अगर कुछ उद्यमियों ने बिना पैसे दिए श्रमिकों को घर जाने को कह दिया है तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए। इस मुद्दे पर तो चौबीस घंटे के भीतर ही कार्यवाही होनी चाहिए। आशा है हर स्तर पर सरकारें और प्रशासन संज्ञान लेकर इस विकट परिस्थिति से लोगों को निकालेगा। (सप्रेस)

सप्रेस फीचर्स
सप्रेस का हमेशा प्रयास रहा है कि मीडिया में सामाजिक सरोकारों से संबंधित विषयों पर लिखी सामग्री नियमित रूप से पहुंचे तथा समाज से जुडे मुद्दों को आम जनता के बीच मुखारता से उभारा जाए और वे विमर्श का हिस्सा बन सके। ‘सप्रेस’ ने अब तब अपने पूरे कलेवर में एक तटस्थ संस्थान बनने का प्रयास किया है, जो कि रचनात्‍मक समाज, विकास संबंधी विचारों एवं समाचारों को जनमानस के सम्मुख लाने के लिए समर्पित है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें