कुमार कृष्णन

देश में बढ़ रही बेरोजगारी के सवाल पर एक बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई है। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व युवा संगठनों से बातचीत कर फाइनल ड्राफ्ट तैयार होगा। ‘रोजगार के अधिकार’, को मौलिक अधिकारों में शामिल कराने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की जाएगी। उस पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार पर दवाव आग्रह बनाया जाएगा।

‘जन आयोग’ द्वारा रोजगार एवं बेरोजगारी की स्थिति पर रिपोर्ट पेश

देश में बढ़ रही बेरोजगारी के सवाल पर एक बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई है। देशव्यापी आंदोलन में कई सामाजिक संगठन हिस्सा लेंगे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर आयोजित युवा सम्मेलन में देश बचाओ अभियान के अंतर्गत गठित ‘जन आयोग’ द्वारा रोजगार एवं बेरोजगारी की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की गई है। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर एवं प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार, इस आंदोलन के समन्वयक हैं।

इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और युवा हल्लाबोल के संस्थापक अनुपम सहित कई लोगों ने अपना योगदान दिया है। रिपोर्ट के साथ ही एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसमें ‘रोजगार के अधिकार’, को मौलिक अधिकारों में शामिल कराने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की जाएगी। इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन शुरू होगा। सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व युवा संगठनों से बातचीत कर फाइनल ड्राफ्ट तैयार होगा। उस पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार पर दवाव आग्रह बनाया जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 15 से 29 साल की आयु वाले वर्ग को बेरोजगारी घेर रही है। जो अधिक शिक्षित हैं, उन्हें बेरोजगारी की चिंता ज्यादा सता रही है। युवा, सरकारी क्षेत्र से नौकरी की अधिक उम्मीद लगाए बैठे हैं। पब्लिक सेक्टर, जो केवल चार फीसदी रोजगार देता है, वह बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं कर सकता। सरकारी क्षेत्र में लंबे समय तक खाली पड़े पद नहीं भरे जाते हैं। सांगठनिक क्षेत्र, छह फीसदी वर्क फोर्स को रोजगार दे सकता है, लेकिन 94 फीसदी असांगठनिक क्षेत्र की ओर किसी का ध्यान नहीं है। सांगठनिक क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दर 3.32 फीसदी से 2.47 के स्तर पर पहुंच गई है। देश में छह हजार बड़े व्यवसाय हैं। छह लाख लघु एवं मध्यम यूनिट हैं। छह करोड़ माइक्रो यूनिट हैं। अधिकांश रोजगार माइक्रो यूनिट में मिल रहा है।

सरकार की अधिकांश नीतियां एमएसएमई सेक्टर के लिए बन रही हैं। यही सेक्टर, सरकार के पैकेज एवं दूसरी योजनाओं का लाभ उठाता है। रोजगार एक अवशिष्ट है, मार्केटाइजेशन में सप्लाई साइड, नीतियां व श्रम कमजोर है। 94 फीसदी असांगठनिक क्षेत्र में कोई सुरक्षा भाव नहीं है। असमानता बढ़ रही है तो वहीं मांग संकुचित है। तकनीकी परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं। ब्लैक इकोनॉमी का आकार बढ़ रहा है। आर्थिक मोर्चे पर लग रहे झटकों ने असांगठनिक क्षेत्र को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। देश में पूर्ण रोजगार नीति लागू हो। राइट टू वर्क के सामान्य आर्थिक पहलुओं पर गौर किया जाए। उत्पादन ढांचे में बदलाव हो। कृषि क्षेत्र, जो बड़े पैमाने पर रोजगार देता है, वहां सुधार अपेक्षित हैं। सोशल सेक्टर एवं सर्विस पर ध्यान देना होगा। शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च बढ़ाया जाए। स्वास्थ्य पर तीन फीसदी खर्च हो। मनरेगा पर भी कम से कम जीडीपी का एक फीसदी खर्च हो। कंस्ट्रक्शन एवं ट्रेड सेक्टर उद्योग के साथ ही ट्राइबल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना होगा। अगले पांच साल में पूर्ण रोजगार के संसाधन जुटाने की जरूरत है। मौजूदा समय में सांगठनिक क्षेत्र में 30 मिलियन वर्कर हैं, जबकि असांगठनिक क्षेत्र में 398 मिलियन वर्कर हैं। 428 मिलियन वर्कर को काम मिल रहा है।

प्रो. आनंद कुमार ने कहा, प्रशांत भूषण एवं दूसरे लोगों ने ‘रोजगार का अधिकार’ जो ड्राफ्ट तैयार किया है, उसे मौलिक अधिकारों में शामिल कराना होगा। इसके अंतर्गत सभी जिलों में रोजगार अधिकारी नियुक्त हों। वहां पर नौकरी के लिए पंजीकरण कराना होगा। इस पंजीकरण के तीन माह के भीतर काम नहीं मिलता है तो सरकार उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे। इसके लिए केंद्र, राज्यों को कोष मुहैया कराएगा। इस योजना का सालाना सरकारी ऑडिट होगा। 28 करोड़ लोगों को काम मिलेगा तो 270 लाख करोड़ रुपये की संपदा पैदा होगी। इसके लिए साढ़े 13 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। देश में छह लाख छोटे उद्योगों को मदद की बात नहीं होती। प्रो. आनंद कुमार ने बताया कि रिपोर्ट और ड्राफ्ट पर चर्चा के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा किया जाएगा। अनेक संगठनों से बातचीत होगी। सरकारी भर्ती प्रक्रिया तय समय पर पूरी हो। हर एक व्यक्ति को न्यूनतम आय पर रोजगार गारंटी मिले। बेरोजगार लोगों को 50 किलोमीटर के दायरे में ही न्यूनतम आय पर रोजगार दिया जाए। 

युवा हल्लाबोल के संस्थापक अनुपम ने कहा, सरकार को मॉडल एग्जाम कोड लागू करना होगा। हर व्यक्ति को न्यूनतम आय पर रोजगार गारंटी मिले। बेरोजगार लोगों को अपने घर के आसपास ही न्यूनतम आय पर रोजगार मिले। सरकारी उपक्रमों को बेचने की नीति बंद हो। अनुबंध आधारित नौकरी की बजाए स्थायी रोजगार उपलब्ध कराए जाए। देश की सत्तर प्रतिशत युवा आबादी को राष्ट्रीय आपदा बनाया जा रहा है। पब्लिक सेक्टर में जानबूझकर नौकरियों की किल्लत दिखाई जा रही है। रेलवे, एसएससी व दूसरे महकमों में नौकरी देने की तरीका बहुत खराब है। फार्म भरने से लेकर नियुक्ति पत्र मिलने के बीच इतना ज्यादा समय लगता है कि अधिकांश युवा उम्रदराज हो जाते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिलाकर देश में करीब एक करोड़ पद खाली हैं। सरकार इन पदों को भरने के लिए गंभीरता नहीं दिखाती। भर्ती निकलती है तो चिरकाल तक पूरी नहीं होती। ‘मॉडल एग्जाम कोड’, जिसमें भर्ती प्रक्रिया नौ माह में पूरी करने की बात कही गई थी, उसे तैयार कर सरकार को भेजा गया। भर्ती लेट चल रही है तो वह सरकार की जवाबदेही होगी। इन सिफारिशों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।

अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने कहा, देश की तात्कालिक परिस्थितियों में ‘रोजगार का अधिकार’ होना बहुत जरूरी है। चीन और कोरिया सहित लगभग 44 देशों ने यह अधिकार लागू कर रखा है। भारत में ऐसा कोई अधिकार नहीं है। साल 2004 तक कृषि क्षेत्र में श्रम बढ़ रहा था। उसके बाद उत्पादन में कमी आई। करीब 44 फीसदी श्रम, कृषि क्षेत्र में था। उत्पादन का जीडीपी में योगदान 15 फीसदी था। साल 2012 में खुली बेरोजगारी का आंकड़ा एक करोड़ था। 2013 से 2019 के बीच यह आंकड़ा तीन करोड़ हो गया था। इसकी एक वजह, गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार कम होना रहा है। हर साल लगभग साठ लाख युवा, जो 16-17 वर्ष की आयु के हैं, वे रोजगार की तलाश में निकलते हैं। श्रम बल में मिसिंग लेबर फोर्स के तत्व को देखा जाना चाहिए। देश में औद्योगिक उत्पादन को तव्वजो देनी होगी।

रोजगार अधिकार पॉलिसी बनाना जरूरी है। मेक इन इंडिया, क्या एक ढिंढोरा बनकर रह गया है, इस सच्चाई पर जाना होगा। कलस्टर एमएसएमई को तव्वजो दी जानी चाहिए। यहां पर निवेश करने से रोजगार बढ़ेगा। स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस व न्याय विभाग में रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। इससे प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार आएगा और रोजगार बढ़ेगा। सामाजिक जुड़ाव, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मामलों में पब्लिक सेक्टर का दायरा बढ़ाना चाहिए। सहकारीकरण की अवधारणा को स्वीकार करना पड़ेगा।

सम्मेलन के दूसरे सत्र में जेपी आंदोलन में अग्रणी रहे, प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक तथा गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने अपने विस्तृत संबोधन में जेपी के जीवन, चिंतन और देश के स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र की रक्षा में उनके योगदान का विस्तार से स्मरण किया। उन्होंने जयप्रकाश जी के अमेरिका से अध्ययन कर लौटे मार्क्सवादी रूप से लेकर समाजवादी तथा अंततः आजादी के बाद गांधीवादी सर्वोदयी की चिंतन यात्रा का विस्तृत चर्चा की। साथ ही प्रशांत जी ने जेपी की पत्नी प्रभावती जी के द्वारा गांधीजी के प्रभाव में ब्रह्मचर्य व्रत लेने और अंततः युवा जयप्रकाश के द्वारा उसका सम्मान कर जीवन भर निभाने में प्रभावती जी का साथ देने का उल्लेख किया।

कुमार प्रशांत ने जेपी के कर्म और जीवन दर्शन के संबंध में कई प्रसंगों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब 1977 में जनता पार्टी की जीत का जश्न रामलीला मैदान में मनाया जा रहा था तो जेपी जश्न में शामिल होने नहीं गए थे बल्कि इंदिरा गांधी के घर बिना बताये गए और उनके सिर पर हाथ रखकर उनका मनोबल बढ़ाया। उन्होंने यह भी बताया कि जेपी सत्ता से नहीं, लोकतंत्र में लोकशक्ति को मजबूत कर समाज परिवर्तन करने में विश्वास करते थे। संपूर्ण क्रांति इसी समग्र परिवर्तन का दर्शन है।

छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक कुमार शुभमूर्ति ने कहा, आज रोजगार का सवाल महत्वपूर्ण सवाल है। इससे युवा ज्यादा प्रभावित हैं। उन्हें जागरुक करना इस अभियान का मक़सद है। 74 आंदोलन के मदन जी ने ने कहा कि संपूर्ण क्रांति के सवाल पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं। 

सम्मेलन के तीसरे और अंतिम सत्र में मराठी के प्रसिद्ध लेखक चंद्रकांत वानखेड़े द्वारा मराठी में लिखित पुस्तक ‘गांधी का मरत नाही’ का हिंदी में डॉ कल्पना शास्त्री द्वारा अनूदित ‘गांधी क्यों नहीं मरते’ का लोकार्पण किया गया और कल्पना शास्त्री के साथ-साथ चंद्रकांत वानखेड़े ने इस पुस्तक के लेखन और अनुवाद के संबंध में जानकारी दी। यह पुस्तक गांधी के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन पर बराबर नजर रखते हुए हमें बताती है कि गांधी हमारे आज और आनेवाले समय के लिए क्यों जरूरी हैं, और यह भी कि उनके विचारों की दीप्ति को समाप्त करना संभव भी नहीं है। (सप्रेस)

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