21 मार्च विश्‍व वानिकी दिवस

डॉ.ओ.पी.जोशी

जलवायु के जानकारों ने बताया कि कार्बन सोखने में जंगलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। विश्व के जंगल कुल कार्बन उत्सर्जन का 30 प्रतिशत अवशोषण कर लेते हैं। ‘इंटरनेशनल पेनल आन क्लायमेट चेंज’ (आयपीसीसी) के अनुसार जंगलों को बचाये बगैर तापमान 1.5 डिग्री सेन्टीग्रेड तक नियंत्रित करना संभव नहीं है। वर्तमान या मौजूदा जंगलों की कटाई रोकना नए पेड़ लगाने (वृक्षारोपण) की तुलना में वैश्विक जलवायु को स्थिर या यथास्थिति रखने में तेज, बेहतर एवं सरल उपाय है।

जंगलों की भूमिका पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमारे देश में 70 के दशक में जंगलों को बचाने हेतु प्रारंभ हुए ‘चिपको आंदोलन’ का नारा तो जंगलों को ‘जीवन का आधार’ बताता है। पूरा नारा है – ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी,पानी और बयार’ (हवा), ये हैं जीवन के आधार।‘ हमारे प्राचीन साहित्य में भी जंगलों का काफी महत्व बताया गया है। गुरूवर रबीन्द्रनाथ टैगोर ने तो हमारे देश की संस्कृति को ‘अरण्य-संस्कृति’ बताया है। आधुनिक परिस्थितिकी-विज्ञान (इकॉलाजी) भी जंगलों को महज पेड़ों का समूह नहीं मानकर एक पारितंत्र (इकोसिस्टम) मानता है। इस पारितंत्र का अपना पर्यावरण, पेड़ एवं अन्य पौधे तथा शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव होते हैं।

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में भी जंगलों की अहम भूमिका स्वीकारी गयी है। ‘प्रिस्टीज विश्वविद्यालय (अमेरिका)’ के पर्यावरण वैज्ञानिकों ने दस वर्षों तक आधुनिक तकनीकों से अध्ययन कर बताया है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए जंगल एक महत्वपूर्ण प्रकृतिक संसाधन है। पिछले वर्ष ब्रिटेन की मेजबानी में स्काटलैंड के ग्लासगो शहर में आयोजित ‘काप-26 शिखर सम्मेलन’ में कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जिन प्रयासों पर चर्चा की गई, उनमें जंगलों के महत्व को भी गंभीरता से स्वीकारा गया है।

इस सम्मेलन में जंगल कटाई रोकने या जंगल बचाने पर काफी जोर दिया गया, क्योंकि दुनिया में जंगल बहुत तेजी से समाप्त हो रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार प्रति मिनट फुटबॉल के 27 मैदानों के बराबर जंगल समाप्त हो जाते हैं। ‘ग्लोबल फारेस्ट वॉच’ के अनुसार वर्ष 2020 में विश्व ने 2,58,000 वर्ग किलोमीटर जंगल खोये हैं। जंगलों की कटाई रोकने या नियंत्रित करने का कार्य ऐसा है जिस पर बगैर किसी लागत के अमल किया जाना आसान है। इस हेतु वन के नियम कानूनों में परिवर्तन एवं वनों से प्राप्त राजस्व का विकल्प तलाशना होगा।

पर्यावरणविदों का मत है कि वनों से प्राप्त राजस्व उनकी पर्यावरणीय सेवाओं के मूल्य से काफी कम होता है। जलवायु के जानकारों ने बताया कि कार्बन सोखने में जंगलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। विश्व के जंगल कुल कार्बन उत्सर्जन का 30 प्रतिशत अवशोषण कर लेते हैं। ‘इंटरनेशनल पेनल आन क्लायमेट चेंज’ (आयपीसीसी) के अनुसार जंगलों को बचाये बगैर तापमान 1.5 डिग्री सेन्टीग्रेड तक नियंत्रित करना संभव नहीं है। वर्तमान या मौजूदा जंगलों की कटाई रोकना नए पेड़ लगाने (वृक्षारोपण) की तुलना में वैश्विक जलवायु को स्थिर या यथास्थिति रखने में तेज, बेहतर एवं सरल उपाय है।

इसे समझते हुए सम्मेलन में अमेरिका, चीन एवं ब्राजील सहित लगभग 100 देशों ने वर्ष 2030 तक जंगल कटाई रोकने का संकल्प लिया। इन देशों में दुनिया के जंगलों का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा है। वैश्विक व्यापार से जुड़े कुछ प्रावधानों के कारण भारत ने इस पर सहमति नहीं जतायी, परंतु वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य तक ले जाने का वादा जरूर किया। सम्मेलन में 30 से ज्यादा वित्तीय संस्थाओं ने कहा कि वे भी उन कम्पनियों में निवेश नहीं करेंगी जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जंगल कटाई में भागीदार हों। 28 देशों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर सहमति जाहिर की कि वे उन वस्तुओं का आयात बंद करेंगे जो कहीं-न-कहीं जंगल कटाई से जुड़ी हों, जैसे – पामआईल।

जंगल कटाई रोकने के संदर्भ कही गयी सारी बातों पर यदि ईमानदारी से अमल किया जाए तो विश्व में लगभग 1.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर जंगल बचाये जा सकते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का भी मत था कि जलवायु परिवर्तन से पैदा समस्याओं को अलग-अलग के बजाए एक समग्र रूप में देखा जाए। जंगलों की कटाई रोकना ऐसा ही एक समग्र प्रयास है, क्योंकि जंगल कार्बन उर्त्सजन सोखने के साथ तापमान कम करने, प्रदूषण नियंत्रण, भूमि कटाव व मृदा-क्षरण रोकने, बाढ़ व सूखा रोकथाम, रेगिस्तान फैलाव पर नियंत्रण एवं जैव विविधता संरक्षण में सहायक होते हैं।

ब्रिटेन सहित 12 देशों ने वर्ष 2021 से 2025 के मध्य 8.75 मिलीयन पाउंड की राशि उन देशों को देने की पेशकश की जो जंगल कटाई रोकेंगे। न्यूयार्क में वर्ष 2014 में जंगल कटाई रोकने का एक करार हुआ था जिसके तहत वर्ष 2020 तक 50 प्रतिशत तथा 2030 तक पूर्ण पाबंदी लगाना प्रस्तावित था। रूस, चीन व ब्राजील को छोड़कर 40 देश इस करार पर सहमत थे। यह करार बाध्यकारी नहीं होने से वर्ष 2020 तक निष्क्रिय हो गया। ‘ग्लासगो सम्मेलन’ में जंगल कटाई रोकने के प्रावधानों को कुछ लोग 2014 के करार का ही विस्तार मानते हैं। जंगलों की कटाई रोकने या समाप्त करने पर वैश्विक नेताओं के घोषणा-पत्र को जारी करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने सम्मेलन के अंतिम दिन कहा कि जंगल धरती के फेफड़े हैं जो हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। (सप्रेस)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें