सेवा सुरभि द्वारा विश्व जल दिवस पर “कैसे हो स्मार्ट होते शहर में स्मार्ट जल प्रबंधन” विषय पर परिचर्चा का आयोजन

इंदौर, 20 मार्च। जल जीवन है और जल ही अमृत है। हम इसकी एक-एक बूंद बचाएं और इसके प्रति पूरी श्रद्धा और आदर का भाव रखें। फिलहाल इंदौर में नर्मदा के चौथे चरण की कतई जरुरत नहीं हैं, क्योंकि यहां जो 65 से अधिक जलाशय हैं, पहले उनकी सुध लेना जरूरी है। जलूद से लाया जा रहा पानी बहुत महंगा पड़ रहा है। इसकी लागत लगातार बढ़ती जा रही है। हम आज भी उपलब्ध सुविधाओं का बेहतर प्रबंधन करने में कमजोर साबित हो रहे हैं। शहर के अन्य जल स्त्रोतों को रिचार्ज करें, उनकी सूची बनाएं, उनका मेपिंग करें, नर्मदा की पाइप लाइन में लीकेज सहित जो खामियां हैं उन्हें दूर करें तो हमें पानी के लिए अतिरिक्त स्त्रोत की जरुरत नहीं पड़ेगी। जलूद से इंदौर तक नर्मदा का पानी लाने में जो करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है, उस पानी से हम वाहन और सड़कें नहीं धोएं और इसका काम के लिए पानी का रिसायकलिंग करें तो भी पानी की कमी नहीं रहेगी।

ये निष्कर्ष है शहर के उन तमाम जल एवं पर्यावरण क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ नागरिकों के, जिन्‍होंने आज संस्था सेवा सुरभि द्वारा विश्व जल दिवस के अवसर पर प्रेसक्लब सभागृह में आयोजित परिचर्चा ‘कैसे हो स्मार्ट होते शहर में स्मार्ट जल प्रबंधन’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। भारत सरकार के जल संसाधन विभाग के पूर्व सचिव माधव चितले एवं प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट भी इस अवसर पर मौजूद थे।

प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि केन्द्र एवं राज्य की सरकारें नागरिकों को शुद्ध जल देने के लिए विभिन्न योजनाओं पर लगातार काम कर रही है। इंदौर के नागरिक बड़े संवेदनशील एवं जागरुक हैं। यहां के नागरिक आवाज उठाते हैं तो उसकी गूंज पूरे प्रदेश ही नहीं, देशभर में पहुंचती है। कुशल जल प्रबंधन से प्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदली जा सकती है, यह काम राज्य की सरकार कर रही है।

Dr. Madhav Chetlay, Mukund Kulkarni, Rameshwar Gupta, Virendra Goyal and Kumar Siddharth

पूर्व पार्षद और प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता दीपक जैन टीनू ने कहा कि स्मार्ट सिटी की परिभाषा में वही शहर योग्य होता है, जहां के जल संसाधन और प्रबंधन सही ढंग से काम कर रहे हों। इंदौर इस मामले में कुशलता से आगे बढ़ रहा है। स्मार्ट सिटी में जल प्रबंधन के लिए स्मार्ट मीटर भी होना चाहिए, जो राजस्व एकत्र करने में भी मददगार होंगे और जल का अपव्यय रोकने में भी। शहर में जल संग्रहण की पुरानी पद्धति का उन्नयन भी होना चाहिए। वाटर ट्रीटमेंट द्वारा प्राप्त जल भी एक वैकल्पिक जल स्त्रोत बन रहा है। जल आपूर्ति की व्यवस्था में सुधार के साथ ही पानी की चोरी पर भी सख्त निगरानी होना चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं जल स्रोतों के संरक्षण के लिए सक्रिय सुश्री मेघा बर्वे ने कहा कि कुशल जल प्रबंधन के लिए स्थानीय निकाय को संरक्षित करना चाहिए। हमारे परंपरागत जल स्त्रोतों की पहचान कर हमारी निर्भरता केवल नर्मदा पर नहीं, बल्कि अन्य स्त्रोतों पर भी हो। पानी की उपलब्धता, मात्रा और गुणवत्ता, तीनों पर काम होना चाहिए।

सीईपीआरडी से जुडे इंजीनियर संदीप नारूलकर ने कहा कि बेहतर जल प्रबंधन के लिए सूचना एवं संचार तकनीक का उपयोग भी होना चाहिए। हमारे पास कितना पानी है और हम उसका कैसा इस्तेमाल कर रहे हैं, यह भी ध्यान रखना होगा।

पूर्व सिटी इंजीनियर और सामाजिक कार्यकर्ता अजीतसिंह नारंग ने कहा कि इंदौर में जल का कुप्रबंधन हो रहा है। नर्मदा के 488 एमएलडी पानी में से 188 एमएलडी बर्बाद हो रहा है। इससे 105 करोड़ रुपए का सालाना नुकसान हो रहा है। जगह-जगह लीकेज और लॉसेस हैं जिन पर किसी का ध्यान नहीं है। हम नर्मदा का चौथा चरण लाने की रट लगाए बैठे हैं, जबकि अभी इसकी आवश्यकता नहीं है। शहर में प्रति व्यक्ति 100 पानी पर्याप्त है। इससे अधिक देना अपराध होगा। हम नर्मदा की टंकियों में भी सुधार कर उनकी डिजाईन में बदलाव के साथ उपभोक्ताओं के लिए मीटर व्यवस्था भी लागू कर सकते हैं। 

सामाजिक कार्यकर्ता अतुल शेठ ने कहा कि पानी आम आदमी की बुनियादी जरुरत है। जिनके घर नर्मदा कनेक्शन है वे भी बोरिंग कर रहे हैं। जलूद से आ रहे पानी का 50 फीसदी बर्बाद हो रहा है। इससे पानी की लागत और बढ़ गई है। हम आज भी उपलब्ध सुविधाओं का बेहतर प्रबंधन करने में कमजोर हैं।

भारत सरकार में जल संसाधन मंत्रालय में सचिव रहे माधव चितले ने कहा कि अब जल के प्रति समाज में जागरुकता फैल रही है। इसका असर घर और परिवार तक देखने की जरुरत है। केवल जल प्रबंधन से ही काम नहीं चलेगा, भूमि पर भी हरियाली बनी रहे और पर्यावरण व्यवस्थित और सुंदर बना रहे इस दिशा में भी प्रयास करना होंगे। नासिक  में जब स्कूली बच्चों से पानी की बचत के बारे में पूछा गया तो बच्चे का जवाब था कि हम मेहमानों को आधा गिलास पानी देकर बचत कर रहे है। यह प्रवृत्ति अन्य बड़े शहरों में भी आना चाहिए।

पीएचई के पूर्व कार्यपालन यंत्री सुधीर सक्सेना ने कहा कि स्मार्ट सिटी का मतलब नागरिकों को 24 घंटे पानी मिले और उसे पानी संग्रह की नौबत ही नहीं पड़े।  सभी घरों में नर्मदा के कनेक्शन हों और मीटर व्यवस्था भी हो। सबको साफ और गुणवत्तायुक्त पानी मिले यही हमारी स्मार्ट सिटी की प्राथमिकता होना चाहिए। शहर में हजारों सार्वजनिक ट्यूबवेल हैं, उनका भी अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए। 

सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने कहा कि हम कचरा कलेक्शन में भले ही नंबर वन हैं, लेकिन जल प्रबंधन में नहीं है। महंगी लागत के नर्मदा के जल से हम सड़कें धो रहे हैं। नर्मदा का  27 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है, क्योंकि जो पानी दो किमी ऊंचाई से और 95 किमी दूर से आता हो उसकी गुणवत्ता प्रभावित होना स्वाभाविक है। बिलावली तालाब पास में है, लेकिन हम उसका पेयजल में उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। नगर निगम क्षेत्र में कई तालाब हैं उनका इस्तेमाल हम क्यों नहीं कर रहे हैं। तालाबों को बचाने और उन्हें रिचार्ज कर उनका संरक्षण करने की भी जरुरत है।

नगर निगम के जल यंत्रालय के कार्यपालन यंत्री संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि शासन की विभिन्न य़ोजनाओं के तहत कुशल जल वितरण का काम हो रहा है। सभी जगह मीटर लगा रहे हैं और नई टंकियों का भी निर्माण हो रहा है। जिन क्षेत्रों में नर्मदा की लाइन नहीं हैं, वहां अन्य जल स्त्रोतों से पानी भेजने की व्यवस्था की जा रही है।

प्रारंभ में  संस्था की ओर से पर्यावरणविद कुमार सिद्धार्थ, डॉ. ओ.पी. जोशी, किशोर पंवार, पंकज कासलीवाल, उद्योगपति वीरेन्द्र गोयल,रामबाबू अग्रवाल, कमल कलवानी, मोहन अग्रवाल, मनीष ठक्कर, गुरमीतसिंह नारंग आदि ने अतिथियों का स्वागत और प्रतीक चिन्‍ह भेंट किये। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ परिचर्चा का शुभारंभ हुआ। संचालन एवं विषय प्रवर्तन संजय पटेल ने किया तथा अंत में आभार माना संस्था के संयोजक ओमप्रकाश नरेडा ने।

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