प्रमोद भार्गव

दिल्ली की तरह अब कोलकाता से भी वायु प्रदूषण की भयावह खबरें आने लगी हैं। जबकि यहां पराली जलाए जाने से वायु प्रदूषित नहीं हो रही है। यहां हवा में प्रदूषण की मात्रा 175 के आंकड़े पर आ गई है। यह फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है। 27 सिगरेट पीने से जितना फेफड़ों को नुकसान होता है, उतना ही नुकसान यह प्रदूषण पहुंचा रहा है। एक सिगरेट से 22 माइक्रोन पीएम 2.5 मात्रा के बराबर जहर निकलता है, तब 27 सिगरेट से कितना जहर निकलता होगा।

मौसम के करवट लेते ही देश की राजधानी दिल्ली और उसके ईद-गिर्द वायु प्रदूषण लोगों की सांसों पर भारी पड़ने लगता है। चूंकि यहां इस दूषित वायु पर चिंता देश की शीर्ष न्यायालय करने लगती है, इसलिए दिल्ली का प्रदूषण चर्चा में आ जाता है। लेकिन हाल ही में स्विस ग्रुप आईक्यूएयर ने दुनिया के सबसे प्रदूषित नगरों की सूची जारी की है, इसमें तीन नगर भारत के हैं। सूची में शामिल नगरों की वायु अत्यंत खराब है। इस वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़कर गंभीर स्तर तक पहुंच गया है। इनमें से सबसे ज्यादा खराब हालात दिल्ली की है। यहां दूषित वायु का स्तर 431 पहुंच गया है। शून्य से 50 तक एक्यूआई का स्तर उत्तम माना जाता है। इसके बाद भारत के प्रदूषित नगरों में कोलकाता है। यहां दूषित वायु का स्तर 175 दर्ज किया गया है। सर्दियों की शुरुआत होते ही दिल्ली की तरह कोलकाता में भी धुंध और धुएं की छाया गहराने लगती है। वायु प्रदूषण के मामले में मुंबई भी पीछे नहीं है। मुंबई में एक्यूआई 173 के स्तर पर है। यहां की हवा भी सांस लेने के लायक नहीं है। देश के अन्य अनेक नगरों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है। धुंध नहीं छंटने के कारण अनेक इलाकों में फेफड़े, दिल और आंखों के रोगियों की संख्या बढ़ रही है।

देश की राजधानी दिल्ली में घनी आबादी और वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण वायु प्रदूषण चरम पर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 9 नबंवर 2023 को लिए गए आंकड़ों के मुताबिक वायु गुणवत्ता तालिका अर्थात एक्यूआई 431 पर पहुंच गया है। जो सामान्य से करीब पांच गुना अधिक है। नतीजतन दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता अत्यंत खराब स्थिति में बनी हुई है। इस स्थिति को मानव व अन्य जीवों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक माना जाता है।  दिल्ली में इस प्रदूषण का दोष हरियाणा और पंजाब में जलाई जाने वाली पराली पर थोप दिया जाता है। जबकि यह प्रदूषण पृथ्वी में मौजूद ओजोन के अतिरिक्त कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन आक्साइड गैसों के कारण भी होता है। धुएं, धुंध और गैसों से निर्मित प्रदूषण के ये कर्ण घातक होने के साथ खुली आंखों से देखना कठिन होता है। 10 से लेकर 2.5 माइक्रोमीटर और इससे भी बारीक इन कणों को पीएम-10 और पीएम-2.5 कहते हैं। पीएम-2.5 कणों का निर्माण मुख्य रूप से डीजल, पेट्रोल और अन्य जीवाषम ईंधनों के धुएं से होता है। पीएम-10 कर्ण पराली और अन्य जलाऊ लकड़ी और धुल से बनते हैं।

फसलों के अवशेष के रूप में निकलने वाली पराली, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व पश्चिमी उत्तरप्रदेश में बड़ी मात्रा में जलाई जाती है। नतीजतन दिल्ली की आवोहवा में धुंध छा जाती है। हर साल अक्टूबर-नबंवर माह में फसल कटने के बाद शेष बचे डंठलों को खेतों में ही जलाया जाता है। इनसे निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूषित करता है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश में हर साल 70 करोड़ टन पराली निकलती है। इसमें से 9 करोड़ टन खेतों में ही छोड़नी पड़ती है। हालांकि 31 प्रतिशत पराली का उपयोग चारे के रूप में, 19 प्रतिशत जैविक ऊर्जा के रूप में और 15 प्रतिशत खाद बनाने के रूप में इस्तेमाल कर ली जाती है। बावजूद 31 प्रतिश्त बची पराली को खेत में ही जलाना पड़ता है, क्योंकि किसानों के पास इसे नष्‍ट करने के अन्य कोई सरल व सस्ते उपाय नहीं हैं। इसलिए पराली जलाए जाने की समस्या शीर्ष न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद तीन दशक से दोहराई जाती रही है।

यह सही है कि पराली जलाने के कई नुकसान हैं। वायु प्रदूषण तो इतना होता है कि दिल्ली भी उसकी चपेट में आ जाती है। अलबत्ता एक एकड़ धान की पराली से जो आठ किलो नाइट्रोजन, पोटाश, सल्फर और करीब 3 किलो फास्फोरस मिलती है, वह पोशक तत्व जलने से नष्‍ट  हो जाते हैं। आग की वजह से धरती का तापमान बढ़ता है। इस कारण खेती के लिए लाभदायी सूक्ष्म जीव भी मर जाते हैं। इस लिहाज से पराली जलाने का सबसे ज्यादा नुकसान किसान को ही उठाना पड़ता है। अतएव पराली के उपयोग के भरपूर उपाय करना आवश्यक है।

दिल्ली की तरह अब कोलकाता से भी वायु प्रदूषण की भयावह खबरें आने लगी हैं। जबकि यहां पराली जलाए जाने से वायु प्रदूषित नहीं हो रही है। यहां हवा में प्रदूषण की मात्रा 175 के आंकड़े पर आ गई है। यह फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है। 27 सिगरेट पीने से जितना फेफड़ों को नुकसान होता है, उतना ही नुकसान यह प्रदूषण पहुंचा रहा है। एक सिगरेट से 22 माइक्रोन पीएम 2.5 मात्रा के बराबर जहर निकलता है, तब 27 सिगरेट से कितना जहर निकलता होगा। सीएनसीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता में प्रति एक लाख लोगों में से 19 लोगों को फेफड़े का कैंसर हो रहा है। इसे इसी प्रदूषण का कारक माना जा रहा है। कैंसर पीड़ित इन लोगों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह खुले में घूमने जाते है।

सेंटर फाॅर साइंस एंड एनवायरमेंट, कोलकाता की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोग सबसे ज्यादा प्रदूषित वायु का सेवन करते हैं। यहां की हवा में पिछले छह सालों में नाइट्रोजन आक्साइड की मात्रा 2.7 गुना बढ़ गई है। विशेषज्ञ इसे मोटर-कारों की संख्या बढ़ना बता रहे हैं। कार बाजार में आए उछाल से पहले कोलकाता के लोग एक से दो किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर तय करते थे, इससे प्रदूषण कम होता था। किंतु अब आदमी 500 मीटर भी पैदल चलना नहीं चाहता। इस मानसिकता के चलते दो एवं चार पहिया वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी है और उसी अनुपात में प्रदूषण भी बढ़ा है। इंस्टीट्यूट फाॅर हेल्थ मैट्रिक्स एंड एवेलुऐशन द्वारा संचालित वैश्विक बीमारी रिपोर्ट के मुताबिक 2.5 पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा में आ जाता है तो दुनिया में हृदय रोगों से मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है। इस समय यह पांचवीं ऐसी बीमारी है, जिससे सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं। कोलकाता में भी यह बीमारी तेजी से फैल रही है।

आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार 30 प्रतिशत प्रदूषण देशभर में डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से होता है। इसके बाद 26 प्रतिशत कोयले के कारण हो रहा है। दिवाली पर चलने वाले पटाखों से महज 5 फीसदी ही प्रदूषण होता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस का मानना है कि 12 लाख भारतीय हर साल वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं। यह रिपोर्ट देश के 168 शहरों की वायु की गुणवत्ता का आकलन करके तैयार की गई है। सबसे ज्यादा हानिकारक वाहनों से निकलने वाला धुआं होता है। इससे निकली गैसें और कण वातावरण में प्रदूषण की मात्रा को 40 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं।

वाहनों से निकलते धुएं ने यह स्पष्‍ट कर दिया है कि कोलकाता में वायु प्रदूषण का कारण बढ़ते वाहन हैं, बावजूद कोशिश यह की जा रही है कि कोलकाता में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन नहीं हैं, बल्कि यहां का भूगोल भी कुछ ऐसी विचित्र संरचना से निर्मित है, जो प्रदूषण को आमंत्रित करता है। कोलकाता भारत के पूर्वी क्षेत्र में 22.82 डिग्री अक्षांष और 88.20 डिग्री देशांतर पर बसा है। यह हुगली नदी के समनांतर बसा है। कोलकाता में बड़े पैमाने पर निम्नतलीय भूमि है, जिस पर एक बड़ी आबादी रहती है।

2011 की जनगणना के मुताबिक कोलकाता की जनसंख्या का घनत्व 24760 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है। कोलकाता का क्षेत्रफल 1480 वर्ग किलोमीटर हैं। यहां से सुंदरवन का डेल्टा 154 किमी दूर दक्षिण में है, जो इस महानगर को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। भूगोलवेत्ता डाॅक्टर पी. नाग के अनुसार यह शहर कई टोपोग्राफी क्षेत्रों से मिलकर बना है। यहां पांच भौगोलिक टोपोलाजी भी हैं। यह पूरा समशीतोष्‍ण क्षेत्र है। गर्मियों में यहां बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, नतीजतन वातावरण में आर्द्रता बहुत ज्यादा होती है। यहां का वार्षिक औसत तापमान 26.8 डिग्री सेल्सियस है और अधिकतम तापमान 45 डिग्री तक पहंच जाता है। यहां की हवा में सल्फर डाइआक्साइड और नाईट्रस आक्साइड की मात्रा सबसे अधिक है। यह स्थिति भौगोलिक करणों से बनी ही है, इसमें बढ़ोत्तरी वाहनों द्वारा उगला धुआं भी कर रहा है। इसे नियंत्रित करने के लिए जरूरी है कि वाहनों की संख्या तो नियंत्रित हो ही, अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर भी पाबंदी लगाई जाए।

कोलकाता में आज भी झोंपड़पट्टियों और गरीब बस्तियों में कोयले तथा लकड़ी से भोजन पकाया जाता है। यहां के फुटपाथों पर भी बड़ी संख्या में मजदूर इन्हीं साधनों से खाना पकाते हैं। इस कारण भी कोलकाता की हवा में हानिकारक धुआं निरंतर घुलता रहता है। यहां की वायु में धातुओं का संक्रमण जारी है, जो फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसा यहां के बंदरगाह पर किए जाने वाले कबाड़ को नष्‍ट करने की वजह से है। यहां अनुपयोगी जहाजों को तोड़कर नष्‍ट किया जाता है। इन जहाजों में विषाक्त कचरा भी भरा होता है। इनमें ज्यादातर सोडा की राख, एसिड युक्त बैटरियां और तमाम किस्म के घातक रसायन होते हैं। इन घातक तत्वों ने कोलकाता के बंदरगाहों को बाजार में तब्दील कर दिया है। गोया, वायु प्रदूषण का कोई एक कारण न होकर अनेक कारण है।

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