प्रमोद भार्गव

सोने से करेंसी की कीमत आंकने के दिन भले ही अब बीत गए हों, लेकिन सोने की चमक अब भी बरकरार है। भारत का सुरक्षित स्वर्ण भंडार के लिहाज से अग्रणी देशों में शामिल होना गौरव की बात है। क्या करता है सोना, अर्थव्यवस्था के लिहाज से?

गर्व की बात है कि ‘फोर्ब्स गोल्ड रिजर्व सर्वे’ के आधार पर भारत उन टॉप 10 देशों में शामिल है जिसके पास 800.78 टन सोना सुरक्षित है। इस सूची में भारत नौवें स्थान पर है। ब्रिटेन जैसे विकसित देश और सऊदी अरब भी भारत से पीछे हैं। सऊदी अरब 323.07 टन सोने के साथ सोलहवें और ब्रिटेन 310.29 टन सोने के भंडार के साथ सत्रहवें स्थान पर है। सबसे ज्यादा सोना 81,336.46 टन अमेरिका के पास है। इसके बाद जर्मनी, इटली, फ्रांस, रूस, चीन, स्विट्जरलैंड, जापान और नीदरलैंड का नंबर आता है।

स्वर्ण भंडार किसी देश की आर्थिक स्थिरता तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से वित्तीय अनिश्चितता के समय ये भंडार किसी देश की आर्थिक स्थिति को स्पष्ट करता है। ‘फोर्ब्स’ की रिपोर्ट के अनुसार सोना मूर्त संपत्ति होने के कारण देशों को अपने संपूर्ण विकास में विविधता लाने में सक्षम बनाता है। ये विविधता अन्य संपत्तियों के मूल्य में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम करने में मदद करती है।   

वर्तमान समय में विश्व के ज्यादातर देशों में आर्थिक लेन-देन के तरीके बदल रहे हैं। तकनीक के जरिए धन का लेन-देन होने लगा है। इस कारण भी धन के रूप में सोने की जरूरत कम हुई है। फिर भी किसी देश की आर्थिक समृद्धि और उसकी मुद्रा का प्रमुख आधार सोने की अधिकता ही है। लिहाजा सोने का आयात और खरीद ऐसे कारक हैं, जो देश की आर्थिक उछाल का पर्याय बनते हैं। ‘जीडीपी’ (सकल घरेलू उत्पाद) की बढ़त में भी सोने का योगदान आंका जाता है। सोने को विश्व पटल पर ‘पी-धातु’ की संज्ञा दी गई है।

रिर्जव बैंक ऑफ इंडिया द्वारा सोने में आयात के नियमों में ढील देने के कारण कोरोना महामारी और देशबंदी के कालखंड में सोने का आयात अधिक तो हुआ ही, लोगों ने व्यक्तिगत रूप से उसका संग्रह भी खूब किया। यदि इस अनुत्पादक और मृत संपदा में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार खप जाए तो निकट भविष्य में सरकार के सामने विदेशी मुद्रा का संकट खड़ा हो सकता है। एक समय भले ही भारत सोने की चिड़िया कहा जाता हो, लेकिन आज तो उसे अपनी जरूरतों के लिए 95 फीसदी सोना दूसरे देशों से खरीदना होता है। कच्चे तेल के बाद सोने के आयात में ही सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च होती है।

सोना भारतीय परंपरा में धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा-पाठ से लेकर शादी में वर-वधु को सोने के गहने देना प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक है। जीवन में बुरे दिन आ जाने की आशंकाओं के चलते भी सोना सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति आम आदमी में खूब है। इसलिए जैसे ही सोना सस्ता होता है, इसकी खरीद बढ़ जाता है। जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

वित्तमंत्री रहे पी.चिदंबरम को जनता से अपील करनी पड़ी थी कि वह एक साल तक सोना न खरीदे, ताकि देश की माली हालत संभाली जा सके। चिदंबरम ने चेतावनी दी थी कि सोना डॉलर में आयात किया जाता है। इस वजह से व्यापार घाटा खतरनाक तरीके से बढ़ जाता है और रूपए की कीमत भी गिरने लगती है।

सोने के आयात के साथ यह धारणा भी बनी हुई है कि इससे चालू खाते के घाटे को कम करने में सहायता मिलती है। आयात और निर्यात के अंतर को ‘व्यापार घाटा’ माना जाता है। सोने का आयात व्यापार के कई स्तरों को प्रभावित करता है। इसकी बिक्री बाजार के अन्य व्यापारिक क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। भारत सोने का बड़ा बाजार है और इस पर दुनिया की निगाहें टिकी रहती हैं। दूसरे देशों से होने वाले सोने के आयात से ही आभूषण उद्योग फलता-फूलता है। गहने बनाने में कुशल कारीगरों की आजीविका इसी व्यापार से चलती है।

सोने का संग्रह और सोने के प्रति विशेष आकर्षण ही वह वजह है, जिसके चलते हर साल 10 टन तक सोने का आयात होता है। मंदिरों में भी अनेक श्रद्धालु सोने का गुप्त या खुला दान करते हैं। मशहूर बाबा अरुण गिरी तो सोने के गहनों से लदे हुए ही देश-विदेश की यात्राएं करते हैं। ये भक्तों से सोना ही दान में लेते हैं। सोने का संग्रह इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि भविष्‍य में इसके दाम बढ़ने की उम्मीद हमेशा बनी रहती है।

सोने में जब-जब आयात की शर्तों में छूट और कीमतों में कमी आती है तो इसकी तस्करी भी खूब बढ़ जाती है। अकसर हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर तस्करी का सोना लाने वाले पकड़े जाते हैं। देश में हर महीने तस्करी के जरिए करीब पांच टन सोना आ रहा है। वर्ष 2012-13 में सोने की तस्करी से जुड़े 870 मामले सामने आए थे और सौ करोड़ का सोना जब्त किया गया था। देश के सभी हवाई अड्ढों पर तस्करी रोकने के लिए कस्टम विभाग है। इसके अलावा स्थानीय पुलिस भी चौकसी रखती है। देश के बंदरगाहों और समुद्री सीमा पर तस्करों पर निगाह रखने के लिए पुलिस के साथ जलसेना भी है।

जिन सफेदपोश जमाखोरों का कालाधन विदेशों में जमा है, वे भी अपने कालेधन को सोने में बदलने लगे हैं। खाड़ी देशों और कालाधन से अर्थव्यवस्था चलाने वाले देशों में ये गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। लिहाजा खाड़ी देशों के साथ ही ‘टैक्स हैवन’ माने गए मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस, इंडोनेशिया, थाईलैंड समेत कई दक्षिण-पूर्वी देश सोने की तस्करी में सहयोग देकर इस धंधे के लिए सोने में सुहागा बने हुए हैं।

यह धंधा इसलिए भी उछाल मार रहा है, क्योंकि 21वीं सदी के बीते दो दशकों में देश के करीब 3 करोड़ लोगों की समृद्धि बेतहाशा बढ़ी है। इसमें सफेद के साथ काली कमाई भी बड़ी मात्रा में शामिल है। सोना एक अनुत्पादक धातु है, यह केवल व्यक्तिगत वैभव बढ़ाने और भविष्य में आर्थिक सुदृढ़ता से जुड़ी धातु है। देश समेत वैश्विक अर्थव्यवस्था को सोने में आने वाला उतार-चढ़ाव प्रभावित करता है। ऐसे में भारत का सुरक्षित स्वर्ण भंडार के लिहाज से अग्रणी देशों में शामिल होना गौरव की बात है। (सप्रेस)

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