डॉ.ओ.पी.जोशी

भू-वैज्ञानिक मानते हैं कि इंडियन पेनिसुला के यूरेशियन प्लेट से टकराने के नतीजे में धरती हिलती-डुलती है और भूकम्प आते हैं। इसके अलावा धरती के भीतर की ऊर्जा के दबाव में भी भूकम्पन होता है, लेकिन इसके प्रभाव-क्षेत्र में इंसानी बसाहट होने से परिणाम दुखद होते हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि भूकम्पन की आवृत्ति कितनी है?

वर्ष 2023 के 365 दिनों में से 34 दिन देश में कहीं-न-कहीं भूकम्पन की घटनाएं होती रही हैं। वर्ष का पहला व अंतिम दिन भी भूकम्पन से प्रभावित रहा है। 01 जनवरी को दिल्ली के ‘एनसीआर’ (‘नेशनल कैपीटल रीजन’ या ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’) से हरियाणा तक 3.8 तीव्रता के भूचाल के झटके रात 1.30 बजे दर्ज किये गये। 31 दिसंबर को दोपहर 2.30 पर 3.6 तीव्रता के झटके मध्यप्रदेश के सिंगरोली में महसूस किये गये। यहां 26 दिसंबर को भी कुछ झटके आये थे।

मई को छोड़कर शेष सभी महिनों में देश के 14 राज्यों के 30 शहरों में 2.0 से 6.6 तीव्रता के झटके आये, परन्तु कोई बड़ी जन-हानि नहीं हुई। दिल्ली एवं दिल्ली ‘एन.सी.आर.,’ मध्यप्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तरकाशी एवं मणिपुर क्रमशः 9, 5, 4 एवं 2 बार झटकों से प्रभावित हुए। देश के उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी एवं मध्य क्षेत्र में ज्यादा झटके आये। कुछ भूकम्प के क्षेत्र काफी व्यापक भी रहे। 24 जनवरी को दोपहर 2.30 पर 30 सेकण्ड तक दिल्ली ‘एन.सी.आर.’ में 5.3 तीव्रता के झटके आये। इन झटकों का प्रभाव उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ भागों में देखा गया।

19 फरवरी को मध्यप्रदेश के धार, बड़वानी, अलिराजपुर सहित कई जिलों में दोपहर 12.45 पर 6 सेकण्ड तक 3 से 4 तीव्रता के झटके आते रहे। इसका केन्द्र धार जिले में 10 कि.मी. की गहराई पर बताया गया। 02 अप्रैल को प्रातः जबलपुर, नर्मदापुरम एवं पचमढ़ी में 3.6 तीव्रता के झटके दर्ज किये गए। नर्मदापुरम में 21 मार्च की रात को भी कुछ झटके आये थे। 21 मार्च को दिल्ली ‘एन.सी.आर.’ सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में रात 10.20 पर 6.6 तीव्रता का  कम्पन्न हुआ था। 03 अक्टूबर को दोपहर में फिर दिल्ली ‘एन.सी.आर.’ सहित उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश राज्यों के कुछ इलाकों में कम्पन्न हुआ। इस भूकम्प की तीव्रता 5.3 से 6.3 रेक्टर पैमाने पर आंकी गयी।

इसी दिन नेपाल में भी शाम को 4 से 5 तीव्रता के झटके आने से कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए एवं 10 लोग घायल हुए। गुजरात के कच्छ एवं राजकोट में 30 जनवरी एवं 02 फरवरी को 4.3 तीव्रता के झटके आये, परन्तु कोई हानि नहीं हुई। मणिपुर के उखरूल व विष्णुपुर में 04 फरवरी व 16 अप्रैल को हल्के झटके दर्ज किये गये।

छत्तीसगढ़ के गौरला-पेंड्रा-मरवाही और कोरबा जिले के गांवों में 13 अगस्त की रात एवं सरगुजा तथा अनूपपुर में 28 अगस्त को भूकम्पन हुआ। कलबुर्गी (कर्नाटक), जोरहाट (आसाम), बीकानेर (राजस्थान), बिजनौर व अयोध्या (उत्तरप्रदेश) में क्रमशः 18 जनवरी, 18 मार्च, 25 मार्च, 03 अप्रैल व 05 नवंबर को हल्के झटके आये।

हिमालयीन क्षेत्र एवं दिल्ली ‘एन.सी.आर.’ में बढ़ते भूकम्प के संदर्भ में भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटे-छोटे कम्पन से भूगर्भीय उर्जा निकल जाती है एवं बड़े भूकम्प का खतरा कम हो जाता है। हिमालय के नीचे स्थित ‘यूरेशियन प्लेट’ के ‘इंडियन प्लेट’ से टकराने से 200 किलोमीटर दूर स्थित दिल्ली ‘एन.सी.आर.’ में कुछ भ्रंश (फाल्ट) बन गये हैं, जिनके कारण इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा झटके आ रहे हैं।

मध्यभाग के संदर्भ में भूकम्प वैज्ञानिकों का कहना है कि यहां भी ‘टेक्टोनिक प्लेट्स’ में हो रही हलचल से झटके आ रहे हैं। खंडवा एवं नर्मदा नदी से जुड़े जिले ज्यादा संवेदनशील बताये गये हैं। ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ ने भी नर्मदा व सोन नदी घाटी वाले जिलों में ज्यादा खतरा बताया है। इन जिलों में पिछले 03 वर्षों में 38 झटके दर्ज किये गये हैं। बढ़ती भूकम्पनीयता देश के लिए एक नया खतरा बनकर उभर रही है। अतः गंभीरता से ध्यान देकर ऐसे प्रयास किये जाने चाहिये कि हानि कम-से-कम हो। (सप्रेस)

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