नर्मदापुरम के बांद्राभान में जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय का राष्ट्रीय सम्मेलन सम्‍पन्‍न

बांद्राभान (होशंगाबाद, नर्मदापुरम), 2 अप्रैल। जल-जंगल और जमीन के ज्वलंत मुद्दें को लेकर जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के बैनर तले नर्मदापुरम के बांद्राभान में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन रविवार को समापन हुआ। सम्‍मेलन में जल, जंगल, जमीन के मुददे पर सुश्री मेधा पाटकर ने कहा कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों की लूट दिन दूनी रात चौगुनी दर से बढ़ाई जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए जो गठजोड़ काम कर रही है उसे राजनीतिक संरक्षण हासिल है। नर्मदा में रेत खनन के खिलाफ अमरकंटक से भरूच तक लगातार आवाज उठाई जा रही है लेकिन इसकी अनदेखी की जा रही है।

जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की सुश्री मेधा पाटकर ने कहा कि पौधारोपण का ढोंग जारी रहते हुए जंगलों का तेजी से सफाया किया जा रहा है। गैरजरूरी चौड़ी सड़कों के लिए पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है। इस नासमझी पर प्रकृति भी प्रतिक्रिया दे देने लगी है लेकिन इन संकेतों की जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। सुखी संपन्न जोशीमठ के निवासियों को विकास का शरणार्थी बना दिया गया है।

नर्मदा को लगातार प्रदूषित किया जा रहा है

उन्‍होंने कहा नर्मदा की हम जयंती मना रहे है, क्या हम उसकी पुण्यतिथि मनाना चाहते है। नर्मदा जीवित इकाई है। उसे जैविक, जीवित नहीं रखने दिया जा रहा। ऐसे में हम किस प्रकार से नर्मदा काे अपनी मां कहेंगे। जबलपुर से लेकर बड़वानी तक शहरों की गंदगी, कैमिकल नर्मदा में मिलकर उसे दूषित कर रहे। एचटीपी प्लांट कहीं भी पूरा नहीं हुआ है। बड़वानी जिले का उदाहरण है 105 करोड़ रुपए का ठेका इजराइल की कंपनी को दिया। काम पूरा नहीं होने पर ठेका निरस्त हुआ और दूसरी कंपनी को ठेका दिया। ऐसा 5,6 सालों तक चलता है। लेकिन काम पूरा नहीं होता। तब तक शहर की गंदगी नदी में जाती रहती है।

जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के मुद्दों जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, विकास, संघर्ष निर्माण अधारित सम्मेलन के सत्र में सामूहिक चर्चा की गई, जिसमें एनएपीएम के सुश्री मेधा पाटकर ने सदन में आये सुझाव, राजनीतिक दलों से समन्वय, मैदानी एवं कानूनी संघर्ष आदि मुद्दों पर लंबी चर्चा के बाद सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया। महेंद्र यादव, अमूल्य निधि, मीरा बहन, किरण देव यादव, योगेश, राहुल यादुका, इंद्रदेव यादव, चित्रांगदा, अनुराधा, राजकुमार सिन्हा, गोपाल राठी, रामप्रसाद कजले शारदा, राजेन्द्र, सुरेखा दलवी आदि सुझावों को प्रस्ताव में शामिल किया गया।

प्रस्ताव में समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों से समन्वय बनाकर संघर्ष तेज करने एवं समता, मानवता, न्याय, नैतिकता के आधार पर प्रकृति, संस्कृति के संरक्षण हेतु संघर्ष तेज करने का मजबूती से पहल करने का आव्हान किया गया।

गोल्डमेन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित प्रफुल्ल सामंतरा ने जलवायु परिवर्तन के कारण, प्रभाव व निदान पर चर्चा करते हुए कहा कि तथाकथित विकास ने हमारी धरती को बुखार ला दिया है जिससे धरती के पेड़-पौधों और जीव-जीव जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक वातावरण में कार्बन की मात्रा करीब 3 गुना बढ़ चुकी है। इस बढ़ी हुई कार्बन की मात्रा ने पृथ्वी का पूरा तंत्र ही छिन्न-भिन्न कर दिया है। अल्प वर्षा, अति वर्षा, सूखा, बाढ़ और बवंडर- तूफानों की आवृत्ति साल दर साल बढ़ती जा रही है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने के कितने भी दावे करें, लेकिन मंशा ठीक नहीं

उन्‍होंने कहा कि किसानों, मछुआरों और जंगल पर जीने वाले समुदायों की आजीविका खतरे में है। सरकार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने के कितने भी दावे करें लेकिन उसकी मंशा बिल्कुल ऐसी नहीं है। ऐसे में कार्बन का स्तर औद्योगिकरण के पहले की स्थिति में ले जाना बहुत ही कठिन है।

सम्‍मेलन में विभिन्न मुद्दों पर पूरे देश में रचनात्मक, आंदोलनात्मक, सृजनात्मक संघर्ष तेज करने का आह्वान किया गया। इस दौरान राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक गतिविधियां प्रस्तावित की गई। अमूल्य निधि ने बताया कि एनएपीएम ने राजस्थान में हाल ही में पारित स्वास्थ्य अधिकार कानून का स्वागत करते हुए इसे राष्ट्रीय स्तर का कानून बनाकर पूरे देश में लागू करने की मांग की गई।

राष्ट्रीय स्तर पर नदी घाटी मंच का गठन किया गया, जिसमें राजकुमार सिन्हा,  किरण देव यादव और इंद्रदेव यादव सहित 5 सदस्यीय राष्ट्रीय कमेटी का गठन किया गया।

इसके बाद नर्मदापुरम शहर के पीपल चौक में आयोजित जनसभा में नफरत की राजनीति और प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाने की मांग की गई। सभा में वक्ताओं ने बताया कि रास्ट्रीय स्तर पर संघर्ष को मजबूत करेंगे और जल, जंगल व जमीन को बचाएंगे। सभा में केरल के साथियों ने संघर्ष गीत भी गाये। सभा को पर्यावरणविद प्रफुल्ल सामन्तरा, किरण देव (बिहार),  बिद्युत सैकिया (आसाम),  मीरा संघमित्रा, केरल से गोमती, मध्यप्रदेश से प्रो उत्पल, होशंगाबाद से चन्द्र गोपाल मलैया,  फागराम, राजेन्द्र गढ़वाल, मेधा पाटकर, राजकुमार सिन्हा, आराधना भार्गव आदि ने सम्बोधित किया।

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