डॉ.ओ.पी.जोशी

कहा जाता है कि भगवान राम, किसी श्राप के वशीभूत 14 साल वन में रहे थे और राजधानी अयोध्या से सुदूर दक्षिण तक गए थे। आजकल राज्य और केन्द्र की सरकारें राम के इसी मार्ग पर Ram Van Gaman ‘राम वन-गमन पथ’ का निर्माण कर रही हैं। अयोध्या से चित्रकूट तक 243 किमी लंबा होगा -मार्ग महात्वाकांक्षी परियोजना राम वनगमन पथ। इसमें लगभग 250 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च होंगे। क्या इसी ‘पथ’ पर पेड-पौधे लगाकर हम बिगडते पर्यावरण को सुधार नहीं सकते?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण प्रारंभ होने के बाद अब Ram Van Gaman ‘राम वन-गमन पथ’ या ‘राम परिपथ’ बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। ‘राम वन-गमन पथ’ के निर्माण की चर्चा लगभग डेढ़ दशक पुरानी है। केन्द्र सरकार के ‘संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय’ ने कुछ वर्षों पूर्व ‘राम वन-गमन पथ’ (रामायण सर्किट) के छः राज्यों में ग्यारह स्थान बताये थे। बाद में पूरे देश के आठ राज्यों में इसके 19 स्थान बताये गये। ‘सूचना के अधिकार’ के तहत दी गयी जानकारी में केंद्र सरकार ने ‘राम वन-गमन पथ’ के स्थान इस प्रकार बताये हैं – अयोध्या, नंदीग्राम, श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, सीतामढी, बक्सर, दरभंगा, महेन्द्रगिरी, जगदलपुर, नासिक, नागपुर, भद्राचलम, हम्पी एवं रामेश्वरम।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2004 में बनायी ग्यारह लोगों की समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अयोध्या से श्रीलंका के बीच लगभग 250 ऐसे स्थान हैं जो रामायण से जुड़े हैं। राम-वनवास की घटना काफी पुरानी होने से यह स्पष्ट नहीं है कि भगवान राम कहां-कहां से गुजरे थे। जनवरी 2022 में ‘केन्द्रीय परिवहन मंत्री’ नितिन गडकरी ने 4319 करोड़ रूपये की लागत से बनाये जाने वाले ‘राम वन-गमन पथ’ का आभासी-शिलान्यास किया था। यह बताया गया कि अयोध्या से निकलकर वनवास के समय भगवान श्रीराम के पग जहां-जहां पडे़ थे वहां  ‘राम वन-गमन पथ’ बनेगा जो फोरलेन का होगा एवं छः चरणों में पूरा किया जायेगा।

‘राम वन-गमन पथ’ के दोनों ओर काफी बड़े क्षेत्र में पेड़-पौधे लगाये जाने चाहिये ताकि वहां से गुजरने वालों को ऐसा लगे मानो वे वन में गमन कर रहे हैं। यह पथ जिन राज्यों से गुजरे उनके प्रमुख वृक्ष व झाड़ियों के साथ वे वनस्पतियां भी लगायी जाएं जो संकटग्रस्त या विलुप्ति की कगार पर हैं। औषधीय पौधों का रोपण भी फायदेमंद होगा। पक्षियों एवं तितलियों को पोषित करने वाले पेड़-पौधे भी लगाये जाने चाहिये। इस कार्य के लिए ‘भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण’ (बीएसआई) राज्यों के वन विभाग, ‘जैव-विविधता मंडल,’ आयुर्वेद के जानकार एवं पेड़-पौधों, पक्षियों तथा तितलियों के कार्य से जुड़े एनजीओ की सहायता ली जा सकती है।

एक मान्यता के अनुसार अयोध्या से चित्रकूट पहुंचकर भगवान राम ने वहां 11-12 वर्ष बिताये थे, क्योंकि वहां की हरियाली एवं प्राकृतिक सौदर्य उन्हें काफी पंसद आये थे। चित्रकूट से दंडकारण्य (वर्तमान छत्तीसगढ़) तक के घने जंगलों में कई तरह के पेड़-पौधों की प्रजातियां हैं जिनका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इन पेड़-पौधों को पहचानकर इन्हें भी ‘राम वन-गमन पथ’ में स्थान देना चाहिये।

कुल 2260 किलोमीटर लम्बाई के इस बहु-आयामी वन-गमन पथ के आसपास हरियाली से ढके ये क्षेत्र देश के पर्यावरण सुधार में भी काफी सहायक होंगे। वायु-प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ ये क्षेत्र तापमान को भी कम करने में मदद्गार साबित होंगे। लम्बे एवं सघन हरियाली से ढंके क्षेत्रों द्वारा मौसम को अनुकूल बनाने की बात उस हरी-दीवार या बागड़ के संबंध में कही गयी थी जो अंग्रेजों ने हमारे देश में बनायी थी। उस समय पर्यावरण एवं पर्यावरण सुधार सरीखे शब्द प्रचलन में नहीं थे, इसलिए मौसम अनुकूल बनाने की बात कही गयी थी।

अंग्रेजी राज के समय तस्करी रोकने की खातिर बनाई गई लगभग 2000 मील लम्बी (उस समय किलोमीटर प्रचलन में नहीं था) कांटेदार पेड़-पौधों की दीवार या बागड़ अविभाजित देश के पेशावर से शुरू होकर आज के कर्नाटक राज्य के समलपुर में समाप्त होती थी। औसतन 15 से 50 फीट ऊंची तथा 12 से 15 फीट चौड़ी इस बागड़ में बबूल, बेर, करोंदा, नागफनी एवं कई अन्य कई प्रजातियों के पेड थे। कांटेदार झाड़ियों को कांटेदार बेलों (लताओं) से इस प्रकार गूंथ दिया गया था कि कोई भी आर-पार आ-जा ना सके। सन् 1879 के आसपास अंग्रेजों ने इस बागड़ को समाप्त करने का निर्णय लिया और यह बागड़ इतिहास का हिस्सा बन गयी।  

बागड़ से मौसम के अनुकूल बनने की अंग्रेजों की सोच अब पर्यावरण-विज्ञान की एक स्थापित अवधारण बन गयी है। ऐसे हरित क्षेत्र पर्यावरण सुधारते हैं। ‘राम वन-गमन पथ’ के आसपास का हरित क्षेत्र धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ पेड़-पौधों का जीवंत संग्रहालय, कई पशुपक्षियों का आवास तथा पर्यावरण सुधार का एक प्रतीक बन सकता है। (सप्रेस)

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