हेमलता म्हस्के

बडों की तरह जघन्य अपराध करते बच्चों की समस्या हमारे यहां नई नहीं है। कानून और अपराध-शास्त्र के आधार पर उससे निपटने की तजबीज भी बताई जाती रही है, लेकिन क्या ऐसा करने से कोई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं? क्या कानून में कुछ नई धाराएं जोडने या उनमें रद्दो-बदल करने से बच्चों को अपराध से विमुख किया जा सका है?

अपने देश में अब नाबालिग भी बालिगों जैसे आपराधिक वारदातों को अंजाम देने में बढ़-चढ़कर आगे आने लगे हैं। सरकार और समाज के लिए यह गहरी चिंता का विषय बन गया है कि आखिर हमारी संतानें और देश के भावी नागरिक किस दिशा में जा रहे हैं। नाबालिग सबसे अधिक यौन अपराधों को अंजाम देने लगे हैं। इसके अलावा लूटमार, चोरी, डकैती और हत्या जैसे गंभीर मामले में भी संलिप्त हो रहे हैं। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2019 में हर आठ घंटे में एक नाबालिग को किसी महिला या लड़की के साथ बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया। इस आंकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने देश में 18 साल से कम उम्र के किशोर या नाबालिग कहां जा रहे हैं।

नाबालिगों द्वारा किए जा रहे यौन अपराधों की शिकार महिलाएं और युवतियों के साथ बच्चियां भी हो रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक ‘भारतीय दण्ड संहिता’ के तहत दर्ज नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले अपराधों में 47 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। नाबालिग होते हुए भी वे बालिगों जैसी आपराधिक वारदातों को अंजाम देने लगे हैं और नाबालिगों को दी जाने वाली छूट का लाभ उठाकर और भी खूंखार अपराधी बनने की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

आमतौर पर देखा जाता है कि बालिग अपराधियों जैसे गंभीर अपराध करने के बावजूद नाबालिग अपराधी कठोर दंड से बच जाते हैं। वर्ष 2012 के ‘निर्भया बलात्कार कांड’ में, पीड़ित लड़की के साथ सबसे अधिक दरिंदगी करने वाला नाबालिग अपराधी मृत्युदण्ड से बच गया, जबकि इसी बलात्कार कांड में बाकी के सभी बालिग अपराधियों को फांसी दी गई। जाहिर है, नाबालिगों में बढ़ती आपराधिक प्रवृति को रोक पाना अकेले कानून के बस में नहीं है। इसके लिए समाज और शैक्षणिक सस्थाओं के साथ स्वयं मां-बाप को भी सक्रिय होना होगा, तभी हम अपनी औलादों को अपराध में संलिप्त होने से बचा पाएंगे और उन्हें देश का बेहतर नागरिक बना सकेंगे।

पिछले कुछ सालों में किशोर अपराध की दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ‘एनसीआरबी’ के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में वर्ष 2014 में 38,455, वर्ष 2015 में 33,433 और वर्ष 2016 में 35,849 किशोरों द्वारा किए गए अपराध के मामले दर्ज किए गए। इन आंकड़ों के अलावा मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस साल जनवरी की 12 तारीख को हैदराबाद में एक ऑटो चालक की हत्या के आरोप में दो नाबालिगों को पकड़ा गया। फिर ठीक एक महीने बाद पंजाब के लुधियाना में एक तेरह साल के लड़के को अपनी सात साल की बहन का बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया। पांच दिन बाद उत्तरप्रदेश के नोएडा के एक गांव में एक छात्र की हत्या के आरोप में दो नाबालिगों को गिरफ्तार किया गया। 4 मार्च को अलीगढ़ पुलिस ने एक दलित युवती से बलात्कार के आरोप में एक नाबालिग को गिरफ्तार किया। पांच मार्च को मध्यप्रदेश के जबलपुर के बालाखेड़ा गांव में एक दस साल के लड़के ने अपनी बहन के पंद्रह साल के दोस्त की हत्या कर उसकी लाश को नर्मदा नदी में फेंक दिया।

छह मार्च को चंडीगढ़ में छह साल की बच्ची की हत्या के आरोप में एक बारह साल के लड़के को गिरफ्तार किया गया। इसी दिन अलीगढ़ में तेरह साल के किशोर के साथ कुकर्म करने वाले दो नाबालिगों सहित अन्य वयस्कों को भी पकड़ा गया। नौ मार्च को राजस्थान के झालावाड़ में पंद्रह साल की लड़की का अपहरण कर आठ दिनों तक बलात्कार करने के आरोप में दो नाबालिगों सहित अन्य 4 लोगों को पकड़ा गया। दस मार्च को लुधियाना में मोबाइल पर वीडियो बनाने के साथ तेज रफ्तार से कार चला रहे नाबालिग लड़के ने सड़क पर पानी पी रहे दो बच्चों को कुचल दिया, जिनमें एक बच्चे की मौत हो गई। 14 मार्च को लुधियाना में आठ साल के बच्चे से कुकर्म करने के आरोप में 3 नाबालिग छात्रों को बाल-सुधारगृह में भेजा गया। 15 मार्च को हरियाणा के जींद जिले में एक नाबालिग को अपनी बहन का बलात्कार कर गर्भवती बना देने के आरोप में पकड़ा गया।

इन आपराधिक मामलों से समझा जा सकता है कि हमारे देश के किशोर कैसी-कैसी बर्बर वारदातों को अंजाम देने लगे हैं। नाबालिग ना सिर्फ यौन अपराध, बल्कि हत्या जैसे गंभीर अपराध करने से भी संकोच नहीं कर रहे हैं। हकीकत यही है कि किसी भी आरोप में गिरफ्तार किए गए नाबालिग पर नियमित अदालतों में नहीं, बल्कि ‘किशोर न्याय कानून’ के तहत केस चलाया जाता है, जिसमें कम सजा का प्रावधान है। नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले अपराधों में लगातार हो रही बढ़त पर शोध-पर-शोध और अनेक अध्ययन किए जा रहे हैं, ताकि अपनी जिंदगी की शुरुआत करने वाले नाबालिग अपराधी कैसे सुधरें और खूंख्वार अपराधी नहीं बनें। इसी कारण उन्हें बालिग अपराधियों की तरह दंडित करने से परहेज़ किया जाता रहा है, लेकिन ‘निर्भया कांड’ के बाद सभी की नजर जाग गई।

पिछली 16 मार्च को संसद की गृह मामलों की समिति ने केंद्र सरकार से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत बालिग होने की उम्र 18 से घटा कर 16 वर्ष करने की सिफारिश की है। समिति का कहना है कि यौन अपराध संबंधी छोटी घटनाओं के मद्देनजर नाबालिग अपराधी को उचित सलाह दिए बगैर और बगैर कार्रवाई के छोड़ देने पर किशोर यौन अपराधी अधिक गंभीर और जघन्य अपराध कर सकते हैं। इसलिए उनके लिए कुछ सजा तो होनी चाहिए।

जानकारों के मुताबिक नाबालिगों द्वारा बढ़ते अपराध की वजह मौजूदा शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया से निर्मित संवेदनहीन माहौल है। ऐसे माहौल के कारण ज्यादातर परिवार अपने बच्चों को काबू में रखने में विफल हो रहे हैं। निजी आजादी में बढ़ोतरी से नैतिक मूल्य बिखरने लगे हैं। अधिक प्रतिस्पर्धा के कारण बच्चों की स्वाभाविकता छिन गई है। वे गुस्सैल और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। कम्प्यूटर और इंटरनेट ने नाबालिगों को समाज और परिवार से अलग-थलग कर दिया है। वे अवसाद के शिकार होने लगे हैं और अपराध की दुनिया में भी छलांग लगा लेते हैं। इन कारणों से नाबालिग अपराध के क्षेत्र में सक्रिय रहने लगे हैं। उन्हें अपराध से मुक्त बनाए रखने के लिए केवल सरकार के भरोसे रहना भारी भूल होगी। समाज और घर परिवार को भी सचेत होने की जरूरत है।(सप्रेस)

[block rendering halted]

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें