अरुण कुमार त्रिपाठी

राहुल जीते जागते सौम्य समझदार गंभीर वृत्ति के मजबूत कद काठी के नेक दिल इंसान है जैसा कि उनसे यात्रा में मिले कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ का यह अनुभव है। लोग उनसे प्रभावित भी होते है। उनको अपने बीच आम वेशभूषा और सादगी में देखकर लोगों का प्रभावित होना स्वाभाविक भी है। सैकडों किमी चलने के बाद भी राहुल के चेहरे पर थकान का नामो निशान नहीं हैं।

राहुल गांधी की यात्रा जैसे – जैसे दक्षिण भारत से देश के ह्रदय मध्य प्रदेश की ओर हौले होले कदम बढ़ा रही थी वैसे – वैसे सत्ताधारी बीजेपी सरकार की धड़कने तेज हो रही थी। अब जब कि वे प्रदेश के पूर्वी निमाड़ सूबे से निकल कर मालवा में प्रकट हो चुके हैं सत्ता, संघ और बीजेपी से अब सीधा राजनीतिक आमना- सामना  शुरू हो रहा है। शांत चित्त भाव भंगिमा ,थकान रहित अथक पथिक, पांव-पांव वाले बाबा (पहले कभी शिवराज सिंह पांव-पांव वाले मामा कहलवाये जाते थे, अब इनके और इनकी सरकार के लिए कहा जाता हैं कि  इनके पांव जमीन पर नहीं हैं) की तरह पहचाने जाने वाले राहुल बरबस लोगों को  आकर्षित करने लगे हैं। यह इसी से स्पष्ट है कि  स्वाभाविक सहज,सरल,निश्चल सामाजिक सरोकार वाले राजनीतिक रूप से  वजनदार होते राहुल के कदमों की आहट ने संघ, सरकार और सत्ताधारी संगठनों की बैचेनी और भागदौड़ बढ़ा दी हैं।

पांव पांव वाले बाबा के बढ़ते कदम
सवाल मन में आता है कि चुनावी साल में सरकार के चेहरे से सत्ता का 20 साला नूर क्यों उतरता जा रहा हैं…कई वारों से घायल एक बेजान कहे जाने वाले विपक्ष से सत्ता को किस बात का डर… ऐसे कई सवाल हैं जो जन जिज्ञासा बढ़ा रहे हैं।  इसकी कई वजहें हैं। अव्वल तो विपक्ष के  युवा नेता  का इस तरह मैदान  में उतरना कल्पना के बाहर था। राहुल के इस कदम ने सबको चौंकाया। फिर सड़कों पर उतरकर जनता से जुड़ना और जनता का भी राहुल के प्रति जिज्ञासुभाव होना राजनीति में हलचल पैदा कर रहा हैं।

दरअसल देश में 2014 से और प्रदेश में बीते करीब 19 वर्षो से विपक्ष को हर तरह से निश्तेज करने के हर संभव  प्रयासों की उठापटक में लगी बीजेपी सरकारें उनके अनुशांगिक संगठन अब तक विपक्ष से पूरी तरह निश्चिंत थे। यकायक मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के युवा नेता पांव-पांव वाले बाबा की तरह,  सड़कें नापते-नापते असल जन नेता की तरह स्थापित हो सकते हैं ऐसी कल्पना भी सत्ता प्रतिष्ठानों को नहीं थी ! यह  राहुल का ट्रंप कार्ड बीजेपी के सारे सत्ता शक्ति केंद्रों  के लिए नींद उड़ाने वाला सबब बन गया है।

बढ़ते कदम बढ़ती बेचैनी
अव्वल तो दक्षिण से महाराष्ट्र तक विविध भाषा बोली के बावजूद राहुल के साथ बड़ा जन समूह जुड़ता चला गया । इसने दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियों और बीजेपी की परेशानी  बढ़ा दी। जबकि दक्षिण भारत के लोगों से राहुल के लिए संवाद कायम करने में मुश्किलें पेश आई । बिना दुभाषिए के बात रखना आसान नहीं रहा। अब जबकि राहुल हिंदी भाषी मप्र के पूर्वी निमाड़ में आ गए हे जनता से सीधे हिंदी में बतियाना सहज सरल हो गया है। वे अब जनता के समक्ष अपनी बात सरलता से रख पाएंगे। जनसंवाद सीधे होगा। सत्ता पक्ष के संगठनों के कुप्रचार पर मौन रहकर राहुल अपनी चाल चले जा रहे हैं ।

प्रदेश में बीजेपी का 20 साला अति सत्ता दोहन का स्वर्णिम काल उसके पुनः सत्तारोहण में बाधक बन रहा हैं। इस सत्ता दोहन को आयाराम-गयाराम वाले विधायकों ने और प्रदूषित कर रहा हैं। इसलिए राहुल के पैदल कदमताल से यहां कांग्रेस की यदि अनुशासित सक्रियता पैदा होती हैं तो बीजेपी शासन के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं । क्योंकि माना जाता हैं कि अधिकतर बड़े विपक्षी नेता अपने किए धरे से बीजेपी सरकार की जेब में है। इस धारणा को राहुल की उपस्थिति तोड़ने में सफल हुई तो कांग्रेस पुनः मैदान में मजबूती से आ जायेगी । यह कदम बीजेपी के लिए सरकार बनाने की राह में बाधक हो सकता है। इस समय सरकार के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी का बढ़ना स्वाभाविक है। बदलते हालातों में राहुल के कदमताल से जनता के लिए विकल्प की राह खुल जाएगी। जनता बेलगाम ब्यूरोक्रेसी,बेहिसाब भ्रष्टाचार, बड़े से लेकर  छुटभैय्या  बीजेपी नेताओं की मनमानी इस पर चरमराती सरकारी सेवाएं, लचर और लाचार सरकारी तंत्र से जनता त्रस्त हैं।

गांव किसान में आक्रोश
कांग्रेस के लिए संभावना का सबसे बड़ा कारण किसानों और ग्रामीणों में व्यवस्था के खिलाफ बढ़ता आक्रोश है। खेती की जमीन को विकास के नाम पर अधिग्रहण / हथियाना, खाद, बीज, दवा,बिजली,पानी,राजस्व मामले आदि की समस्याओं का कोई समाधान नहीं होने से ग्रामीण आबादी परेशान हैं। कर्ज माफी, मुआवजा आदि के वादे अधर में लटके  है। राजनीति पर सरकारी खजाना लूटा चुकी और साढ़े तीन लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज के बाद भी निश्चित सरकार आर्थिक कारणों से राहत राशि नहीं दे पा रही हैं। लोगों को इससे मतलब नहीं रहा । नेताओं ने जनता को पहले चुनाव जिताऊ फ्री कल्चर का एडिक्ट बनाया अब यही सिरदर्द बन गया है। इस सबसे तंग हो चुके लोग विकल्प चाहेंगे तो हाल फिलहाल कांग्रेस के अलावा दूसरा कोई जनता की पासंग में नहीं बैठता है। इस कारण सत्ता को भय है कि विकल्प के लिए मजबूत भरोसा कायम करने में राहुल की यात्रा कांग्रेस के लिए मददगार साबित हो सकती हैं।
ग्रामीण और किसान वर्ग में वनवासी भी है। इनका परंपरागत रुझान कांग्रेस के प्रति रहा है। बीजेपी और जयस ने कांग्रेस से वनवासी वोट का बड़ा हिस्सा छीना। बावजूद इसके, वनवासी युवाओं की अपेक्षा अनुसार भाजपा सरकार उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। राहुल से यह वर्ग प्रभावित होगा।

सोशल मीडिया पर बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन  राहुल गांधी का मजाक बनाते रहे है। आभासी दुनिया के सोशल मीडिया में पप्पू कहकर कटाक्ष किए गए। उसके उलट राहुल जीते जागते सौम्य समझदार गंभीर वृत्ति के मजबूत कद काठी के नेक दिल इंसान है जैसा कि उनसे यात्रा में मिले कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह अनुभव है। लोग उनसे प्रभावित भी होते है। उनको अपने बीच आम वेशभूषा और सादगी में देखकर लोगों का प्रभावित होना स्वाभाविक भी है। सैकडों किमी चलने के बाद भी राहुल के चेहरे पर थकान का नामो निशान नहीं हैं। वे विरोधियों के किसी भी तरह के कटाक्ष का जवाब नहीं देते। लोगों को यह बात अपील करती हैं। 

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