भारत डोगरा

बेशर्मी से केन्द्रित होती पूंजी और व्यापक रूप से फलती-फूलती गरीबी ने हमारे यहां जिस तरह की अश्लील गैर-बराबरी को खडा कर दिया है उससे निपटने की तजबीज आखिर कौन देगा? ‘ऑक्सफैम’ सरीखे वैश्विक एनजीओ मानते हैं कि अकूत सम्पत्ति के मालिकों पर भारी टैक्स लगाकर स्थिति को समतल किया जा सकता है।

सबसे धनी केवल 21 भारतीय अरबपतियों के पास कुल 70 करोड़ भारतीयों से अधिक संपत्ति है। यह तथ्य ख्यात वैश्विक एनजीओ ‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट से उजागर हुआ है। स्विट्जरलेंड के दावोस शहर में हर साल आयोजित होने वाले ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम’ (16 से 20 जनवरी, 2023) में पहले दिन जारी की जाने वाली इस साल की ‘सरवाईवल ऑफ द रिचेस्ट : द इंडिया स्टोरी’ रिपोर्ट में विषमता संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण आंकड़ों के साथ बताया गया है कि कोविड महामारी के आरंभ होने से नवंबर 2022 तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 121 प्रतिशत बढ़ी है। वास्तविक अर्थों में यह 3608 करोड़ रुपए प्रति दिन, यानि 2.5 करोड़ रुपए प्रति मिनट के हिसाब से बढ़ी है।

केवल 5 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की संपत्ति का 60 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत के पास देश की संपत्ति का मात्र 3 प्रतिशत हिस्सा है। ‘ऑक्सफैम’ की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के सबसे धनी व्यक्ति की संपत्ति वर्ष 2022 में 46 प्रतिशत बढ़ी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अरबपतियों के मुनाफे पर एकबारगी 20 प्रतिशत टैक्स लगाने से (2017-21 के दौरान) 1.8 लाख करोड़ रुपए प्राप्त किए जा सकते थे। यह धनराशि एक वर्ष के दौरान प्राथमिक विद्यालयों में 50 लाख अध्यापकों को रोजगार देने के लिए पर्याप्त है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2012-2021 के दौरान भारत में जो संपत्ति निर्मित हुई है, उसका 40 प्रतिशत ऊपर की मात्र एक प्रतिशत जनसंख्या को गया है, जबकि नीचे की 50 प्रतिशत जनसंख्या को मात्र 3 प्रतिशत हिस्सा मिला है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में अरबपतियों की संख्या वर्ष 2020 में 102 से बढ़कर वर्ष 2022 में 166 हो गई। भारत के 100 सबसे धनी लोगों की कुल संपत्ति 54 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई है, जिससे 18 महीने का केन्द्रीय बजट बन सकता है।

‘ऑक्सफैम (इंडिया)’ के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा – “जहां देश भूख, बेकारी, महंगाई व स्वास्थ्य आपदाओं से जूझ रहा है, वहां भारत के अरबपति अच्छा कमा रहे हैं। भूख से त्रस्त भारतीयों की संख्या वर्ष 2018 में 19 करोड़ थी, वर्ष 2022 में 35 करोड़ हो गई। कोविड के व्यापक दुख-दर्द को देखते हुए भारतीय सरकार को निर्धनता व अन्याय के विरुद्ध बड़े कदम उठाने चाहिए थे, पर यह नहीं हो सका व धनी वर्ग पर अधिक ध्यान दिया गया।”

रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे धनी 10 भारतीयों की कुल संपत्ति 27 लाख करोड़ रुपए है। पिछले वर्ष से इसमें 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह संपत्ति स्वास्थ्य व आयुष मंत्रालयों के 30 वर्ष के बजट, शिक्षा मंत्रालय के 26 वर्ष के बजट व मनरेगा के 38 वर्ष के बजट के बराबर है। रिपोर्ट कहती है कि आय व संपत्ति की विषमता बढ़ने के बीच भारत के गरीब लोगों को दुख-दर्द से राहत नहीं मिल पा रही है। सबसे अधिक, 22.8 करोड गरीब लोग इसी देश में हैं। अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव, खाद्यों व ऊर्जा कीमतों में वृद्धि से भी वे प्रभावित हैं।

केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को दिए अपने प्रस्तुतीकरण में बताया है कि वर्ष 2022 में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 65 प्रतिशत की मौतें कुपोषण के कारण हुईं। भूख से प्रभावित भारतीयों की संख्या वर्ष 2018 में 19 करोड़ थी, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 35 करोड़ तक पहुंच गया। 70 प्रतिशत भारतीय अच्छे स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित भोजन प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं व इस अभाव से जो रोग जुड़े हैं उनसे एक वर्ष में 17 लाख मौतें होती हैं।

इतना ही नहीं, यदि जनसंख्या के निचले 50 प्रतिशत हिस्से को देखें, तो राष्ट्रीय आय में उसका हिस्सा मात्र 13 प्रतिशत रह गया है, जबकि संपत्ति में उसका हिस्सा मात्र 3 प्रतिशत भर है। इतनी अधिक विषमता भारत जैसे देश में और भी चिंताजनक है जहां अधिकांश व्यक्तियों के रोजगार सुरक्षित नहीं हैं, जिनमें निश्चित वेतन व सामाजिक सुरक्षा होती है।  

‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2021 में औसतन प्रतिदिन 115 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। महामारी से उत्पन्न आर्थिक समस्याओं व महंगाई के कारण परिवारों का कर्ज बढ़ गया है। ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ के अनुसार वर्ष 2022 में, जून के अंत तक देश में व्यक्तिगत कर्ज 35.2 ट्रिलियन रूपए तक बढ़ गया था। इसी समय ब्याज दर बढ़ने लगी व खुदरा स्तर पर महंगाई 7.4 प्रतिशत तक पहुंच गई।

‘ऑक्सफैम’ रिपोर्ट के अनुसार अल्प-विकसित व विकासशील देशों में आय विषमता में जो तेज वृद्धि हुई है, उसे समतावादी कर-नीति से ठीक किया जा सकता है व अमीरी से हो रहे लाभ का बेहतर वितरण भी सुनिश्चित किया जा सकता है। सबसे धनी लोगों की संपत्ति पर कर लगाने का समर्थन ‘आक्सफैम’ वर्षों से करता रहा है। देश के सबसे धनी व मलाईदार तबके द्वारा अत्यधिक संपत्ति संचयन होता है जिस पर कर लगाने से सामाजिक क्षेत्रों को तेजी से आगे ले जाने के लिए अधिक संसाधन जुटाए जा सकते हैं। वेलर व राव (2010) ने ‘समतावादी कर नीति व आर्थिक स्थिरता’ शीर्षक के अनुसंधान पत्र में लिखा है कि ऐसी नीति समता व स्थिरता के लक्ष्यों को एक साथ प्राप्त करती है।

भारत व चीन जैसे देशों में कर ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) के 10 से 15 प्रतिशत के बराबर है जो पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है। अनेक अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि निर्धन वर्ग पर कर का बोझ कम करने से वस्तुओं व सेवाओं पर खर्च बढ़ता है व अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, जबकि कारपोरेट को मिली कर की छूट का लाभ प्रायः धनी वर्ग तक सिमट कर रह जाता है।

‘ऑक्सफैम (इंडिया)’ के सीईओ अमिताभ बेहर के मुताबिक -“धनी वर्ग के पक्ष में खड़ी व्यवस्था में दलित, आदिवासी, मुस्लिम, महिलाएं, अनौपचारिक क्षेत्र के मेहनतकश जैसे सीमान्त के लोग बढ़ती कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि धनी वर्ग पर टैक्स बढ़ाकर उनसे समुचित हिस्सा प्राप्त किया जाए। हम वित्तमंत्री से अपील करते हैं कि वे ‘संपत्तिकर’ व ‘इनहेरिटेंस टैक्स’ जैसे टैक्स लाएं जिससे विषमता कम हो।”

‘आक्सफैम’ ने वित्तमंत्री से संस्तुतियां की हैं कि ऊपर के एक प्रतिशत धनी व्यक्तियों की संपत्ति पर स्थाई तौर पर कर लगाना चाहिए व अत्यधिक धनी व्यक्तियों से अधिक कर प्राप्ति पर समुचित ध्यान देना चाहिए। दूसरी तरफ, निर्धन व निम्न-मध्यम वर्ग के दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर जीएसटी की दर कम करनी चाहिए व विलासिता की वस्तुओं पर जीएसटी की दर बढ़ानी चाहिए।

‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति’ के अनुसार स्वास्थ्य के लिए आवंटन को वर्ष 2025 तक ‘जीडीपी’ का 2.5 प्रतिशत कर देना चाहिए, ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य मजबूत हो सके व लोगों पर बोझ कम हो सके ताकि वे स्वास्थ्य-संकट का सामना बेहतर ढंग से कर सकें। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों व क्षेत्रीय आधार पर स्वास्थ्य क्षेत्र में जो विषमताएं हैं, उन्हें दूर करना चाहिए।

जिला अस्पतालों से जुड़े मेडिकल कालेज खोलने चाहिए, विशेषकर पर्वतीय, आदिवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं व स्वास्थ्यकर्मियों की कमी न रहे। ‘प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों,’ ‘सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों’ व सरकारी अस्पतालों को बेहतर व मजबूत करना चाहिए, वहां पर्याप्त डाक्टरों व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की व्यवस्था व जरूरी साज-सामान उपलब्ध हो, ताकि उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवा तीन किलोमीटर के दायरे में उपलब्ध हो सके।

शिक्षा के बजट-आवंटन के बारे में मान्यता है कि यह ‘जीडीपी’ का 6 प्रतिशत होना चाहिए। इसे ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में भी मान्यता मिली है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार को योजनाबद्ध ढंग से आवंटन बढ़ाना चाहिए। शिक्षा में मौजूद विषमताओं को दूर करने के लिए इसके अनुकूल कार्यक्रमों को बढ़ाना चाहिए, जैसे कि अनुसूचित-जातियों व जनजातियों के छात्रों, विशेषकर छात्राओं के लिए मैट्रिक के पहले व बाद की छात्रवृत्तियां। कठिन दौर से गुजरते, महंगाई से जूझते मजदूरों की सुरक्षा बढ़ाने व उनकी आर्थिक स्थितियों को मजबूत करने के प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं। (सप्रेस)

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भारत डोगरा
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अनेक सामाजिक आंदोलनों व अभियानों से जुड़े रहे हैं. इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साईंस, नई दिल्ली के फेलो तथा एन.एफ.एस.-इंडिया(अंग्रेजोऔर हिंदी) के सम्पादक हैं | जन-सरोकारकी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से नवाजा भी गया है| उन्हें स्टेट्समैन अवार्ड ऑफ़ रूरल रिपोर्टिंग (तीन बार), द सचिन चौधरी अवार्डफॉर फाइनेंसियल रिपोर्टिंग, द पी.यू. सी.एल. अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स जर्नलिज्म,द संस्कृति अवार्ड, फ़ूड इश्यूज पर लिखने के लिए एफ.ए.ओ.-आई.ए.ए.एस. अवार्ड, राजेंद्रमाथुर अवार्ड फॉर हिंदी जर्नलिज्म, शहीद नियोगी अवार्ड फॉर लेबर रिपोर्टिंग,सरोजनी नायडू अवार्ड, हिंदी पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला केंद्रीय हिंदी संस्थान का गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार समेत अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है | भारत डोगरा जन हित ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं |

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