डॉ.ओ पी जोशी

आधुनिक ‘विकास’ और पर्यावरण एक-दूसरे के जानी दुश्मन माने जाते हैं और इस अखाडे में सरकारें विकास की तरफदार। ऐसे में पर्यावण सुधार के लिए बजट प्रावधान सुखद माने जा सकते हैं।

कोराना काल के बाद केंद्र सरकार ने एक फरवरी को बजट पेश किया था। कोरोना के समय देश-विदेश में किये गये अध्ययनों में बताया गया था कि जहां वायु-प्रदूषण अधिक था वहां कोरोना का संक्रमण एवं मृत्युदर भी ज्यादा थी। सम्भवनाः इसी को ध्यान में रखकर इस बजट में पर्यावरण सुधार के कार्यों पर काफी ध्यान दिया गया। बजट के ‘शहरी स्वच्छ भारत जल जीवन,’ ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन अभियान’ एवं पुराने वाहनों की ‘स्क्रेप नीति’ आदि मुद्दे पर्यावरण सुधार से जुड़े आयाम हैं। पिछले बजट की तुलना में इस बार पर्यावरण मंत्रालय को 42 प्रतिशत राशि बढ़ाकर 2.869 करोड़ रूपये आवंटित किये गये। लगभग 135 करोड़ रूपये पर्यावरण संरक्षण, प्रबंधन एवं सतत-विकास संबधित कार्यों तथा 1.41 लाख करोड़ कचरा प्रबंधन एवं दूषित जल उपचार पर खर्च किये जाता हैं।

देश के ज्यादातर महानगरों, नगरों एवं कस्बों में वायु-प्रदूषण की स्थिति खराब है। ‘वैश्विक वायु गुणवत्ता’ पर फरवरी’20 में स्विटजरलैंड में जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित हवा वाले देशों में भारत बांग्लादेश, पाकिस्तान, मंगोलिया तथा आफगानिस्तान के बाद पांचवें स्थान पर है। विश्व के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 18 हमारे देश के बताए गये हैं। कुछ अध्ययन दर्शाते हैं कि बढ़ता वायु-प्रदूषण राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत प्रभाव डालकर वहां के निवासियों की उम्र भी कम कर रहा है। वायु-प्रदूषण की इस खतरनाक स्थिति के मद्देनजर इसे नियंत्रित करने हेतु 22 करोड़ रूपये का प्रावधान बजट में किया गया है। देश के 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले 42 शहरों में वायु-प्रदूषण नियंत्रण के कार्य किये जाएंगे।

इसके साथ ही पूर्व में चलाया जा रहा ‘राष्ट्रीय स्वच्छ हवा अभियान’ भी चयनित शहरों में जारी रहेगा। इस कार्यक्रम के तहत इसमें शामिल शहरों में वर्ष 2024 तक वायु-प्रदूषण का स्तर 30 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है। दिल्ली एन.सी.आर. में भी 20 करोड़ की राशि अलग से दिया जाना प्रस्तावित है। वायु-प्रदूषण नियंत्रण हेतु आंवटित राशि नगरीय प्रशासन, परिवहन, कृषि, उद्योग, पर्यावरण व ऊर्जा विभाग को अलग-अलग दिये जाने का प्रावधान किया गया है। इसमें ‘प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ के क्षेत्रीय कार्यालयों को भी जोड़ा जाना था। ‘स्क्रेप नीति’ के तहत 20 वर्ष से पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने पर वायु-प्रदूषण 15 से 20 प्रतिशत तक कम होने की सम्भावना बतायी जा रही है। ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’ के तहत हाइड्रोजन को ‘ग्रीन एनर्जी सोर्स’ के रूप में उपयोग करने की पहल भी एक पर्यावरण हितैषी प्रयास है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन बताया जा रहा है।

‘शहरी स्वच्छ भारत मिशन’ के लिए 2021-24 के बीच 1,41,678 करोड़ रुपयों की राशि आंवटित की गयी है। इसके तहत शोधन के कार्य किये जाएंगे। केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद एक ‘राष्ट्रीय सफाई अभियान’ चलाया गया था। इस अभियान के तहत प्राकृतिक संसाधनों में प्रदूषण रोकना, कूड़े-कचरे की सफाई एवं प्रबंधन तथा खुले में शौच को रोकने के प्रयास किये गये थे। ‘यूनिसेफ’ के एक अध्ययन के अनुसार ये प्रयास शुरू में तो प्रभावशाली रहे, परंतु बाद में इनका प्रभाव कम होता गया।

‘जल जीवन मिशन’ के तहत बजट में शहरी क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। 2.86 करोड़ रूपये देश के 4,378 शहरी निकायों को दिया जाना प्रस्तावित है, ताकि नल कनेक्शन से साफ पानी प्रदान किया जा सके। 500 ‘अमृत योजना’ वाले शहरों में तरल अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की भी बात कही गयी है। वर्ष 2019 में इस मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गयी थी। ‘जल जीवन मिशन’ के तहत शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में साफ पानी पहुंचाने के प्रयास तो अच्छे हैं, परंतु इसके लिए पानी की उपलब्धता एवं गुणवता भी बढाने पर विचार किया जाना चाहिये। देश के ‘नीति आयोग’ की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि 60 करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं तथा 70 प्रतिशत पानी पीने के योग्य नहीं है। पिछले बजट में ‘जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण’ विभाग को 8960 करोड़ रूपये दिये गये थे। ‘नमामि गंगे योजना’ के तहत 800 करोड़ रूपये आंवटित किये गये थे। वर्तमान बजट इस प्रकार का आंवटन, विशेषकर ‘नमामि गंगा योजना’ के लिए स्पष्ट नहीं देखा गया।

वित्तमंत्री द्वारा डिजिटल बजट टेबलेट से पढ़कर इसे पेपर लेस बनाना भी एक पर्यावरण हितैषी पहल है, क्योंकि इससे काफी कागज की बचत हुई एवं परोक्ष रूप से कई पेड़ बच गये। सन् 2017 में किये गये एक अध्ययन अनुसार संसद सत्र के प्रश्नों के जवाब व सम्बंधित दस्तावेज होते हैं, एवं शाम तक इसका बड़ा भाग रद्दी बन जाता है। बेहतर होगा कि राज्यों एवं सम्बंधित विभागों को भी बजट साफ्ट-कॉपी या डीजिटल रूप में भेजा जाए।

स्वच्छ भारत, जलजीवन, स्वच्छ हवा एवं हाइड्रोजन अभियान तथा ‘स्क्रेप नीति’ आदि से जुड़े विभिन्न कार्य यदि समय-बद्धता के साथ जिम्मेदारी एवं ईमानदारी से किये जाएं तो पर्यावरण में धीरे-धीरे सुधार निश्चित रूप से होगा। (सप्रेस)

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