अशोक शरण

जल संरक्षण-संवर्धन के भांति-भांति के तौर-तरीकों के बाद अंतत: हम भूजल की शरण में ही आते हैं, लेकिन उसके प्रति हमारा आम, दैनिक व्यवहार क्या है? क्या हमारे मौजूदा दुर्व्यवहार के चलते भूजल बच पाएगा? और क्या ऐसे में हम बच पाएंगे?

वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के दोहन से पृथ्वी पर जीव-जंतुओं के साथ-साथ वनस्पति, यहां तक कि मनुष्य के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। जीवन जल, वायु, अग्नि, मिट्टी और आकाश इन पांच तत्वों से मिलकर बना है। अग्नि को छोड़कर चारों तत्व सीधे तौर पर मनुष्य द्वारा इतने प्रदूषित कर दिए गए हैं कि वह स्वयं अपने जीवन को लील रहा है और आगे आने वाली पीढ़ियों पर अस्तित्व का भयंकर संकट मंडरा रहा है।

इन चारों तत्वों के प्रदूषित होने के कारण पांचवां तत्व भी मनुष्य और पर्यावरण के प्रतिकूल होता जा रहा है। विश्व भर में जंगल में लगी आग मनुष्य और पर्यावरण को कितना नुकसान पहुचा रहे हैं, सभी जानते हैं। इस विषम होती परिस्थिति में विभिन्न देशों, संस्थानों एवं लोगों का ध्यान सामूहिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर इस ओर गया है और  विश्व भर में पर्यावरण को बचाने के प्रयास चल रहे हैं। 

Ground water भूजल स्तर में गिरावट और उसका प्रदूषित होना खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। जलस्तर में गिरावट और उसके रोकथाम के लिए कई प्रयास चल रहे हैं। भारत सरकार देश के 33 लाख वर्ग किलोमीटर भूगर्भीय जल का अध्ययन कर रही है। सरकार ने 13 फरवरी 2023 को राज्यसभा में जानकारी दी कि दिसंबर 30, 2022 तक 24.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भूजल मापन कार्यक्रम के अंतर्गत पूरा कर लिया गया है और बाकी का कार्य मार्च 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसका उद्देश्य भूगर्भीय जलस्त्रोत,  इसकी विशेषता आदि को पहचान कर स्थानीय समूहों के साथ मिलकर जल-प्रबंधन का कार्यक्रम संचालित करना है।

विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता भारत

भारत विश्व में Ground water भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है तथा प्रति वर्ष 253 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) की दर से भूजल का दोहन किया जा रहा है। यह वैश्विक भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% है। भारत में लगभग 1123 बीसीएम जल-संसाधन उपलब्ध हैं जिनमें से 690 बीसीएम सतही जल और शेष 433 बीसीएम भूजल है। भूजल का 90% सिंचाई के लिए और शेष 10% घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट ‘समग्र जल-प्रबंधन सूचकांक’ (सीडब्ल्यूएमआई) के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने की संभावना है। इससे लाखों लोगों के लिए गंभीर जल अभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और देश के ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) में 6% की हानि हो सकती है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान के साथ-साथ गुजरात, पंजाब, हरियाणा के कुछ हिस्सों में जल की अभूतपूर्व कमी है।

हालांकि जल ‘राज्य सूची’ का विषय है और जल-प्रबंधन, संरक्षण, पुनर्भरण उसका काम है, फिर भी ‘राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन योजना’ (नेशनल अक्विफर मैपिंग एण्‍ड मैनेजमेंट प्रोग्राम, एनएक्यूयूआईएम) ‘जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार’ देश के संपूर्ण भूजल स्तर के मापन, मानचित्रण और प्रबंधन ‘केंद्रीय भूजल बोर्ड’ के माध्यम से कर रहा है। 

भूगर्भीय जल स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसका पुनर्भरण होता रहे जो अधिकतम बरसात के पानी और नदियों, नहरों से होता है। भारत की राजधानी दिल्ली की बात करें जहां केंद्र और राज्य दोनों सरकारें शहर की देखभाल करती हैं वहां भी भूगर्भीय जल का अधिक दोहन होता है। ‘केंद्रीय भूगर्भीय जल बोर्ड’ के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दिल्ली के कुल 34 ब्लॉक में से 17 ब्लॉक में अत्यधिक दोहन, बाकी 14 ब्लॉक गंभीर स्थिति में और केवल 3 ब्लॉक सुरक्षित स्थिति में हैं।

एक वर्ष में भूगर्भीय जल का उपयोग 70% तक बढ़ा

इसी रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2012 से जनवरी 2021 के दशक के औसत भूगर्भीय जल की तुलना यदि जनवरी 2022 से करें तो यह स्तर 70% बढ़ा है। भूगर्भीय जलस्तर कम-ज्यादा होता रहता है इसलिए इसे वर्ष में चार बार जनवरी, मई, अगस्त और नवंबर में मापा जाता है। ‘केंद्रीय भूजल बोर्ड’ के अनुसार कृत्रिम रीचार्ज के लिए दिल्ली में 12 चैक डैम, 22706 रीचार्ज शाफ्ट और 304500 छतों द्वारा वर्षा जल संचयन की आवश्यकता होगी। 

भूगर्भीय जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण भारी धातु का अधिक मात्रा में होना है। एक लीटर पानी में यूरेनियम की प्रतिबंधित सीमा 30 माइक्रोग्राम है, परंतु दिल्ली के कई स्थानों में यह 4% से अधिक पाया गया है। इसी प्रकार कई स्थानों पर प्रतिबंधित सीमा से अधिक मैंगनीज, आयरन, नाइट्रेट और फ्लोराइड पाया गया है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विशेषज्ञों की राय के अनुसार पानी में भारी धातु की मात्रा त्रुटिपूर्ण पुनर्भरण और अनुपचारित सीवेज की वजह से होता है। शहरों में संदूषित भूजल अनुपचारित अपशिष्ट जल की वजह से होता है। यह समस्या केवल दिल्ली शहर की नहीं है, बल्कि पूरे भारतवर्ष के शहरों की है।(सप्रेस)

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