विकल्प संगम

वैकल्पिक विकास पर विश्वास करने वाले व्यक्तियों, आंदोलनों और संस्थाओं के नेटवर्क ‘विकल्प संगम’ ने हाल ही में पेश किये गए देश के आम बजट का पर्यावरण की नज़र से विश्लेषण किया है।‘विकल्प संगम’ के विश्लेषण का ईशान अग्रवाल द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद।

पिछले महीने संसद में पेश किए गए आम बजट से पर्यावरण को लेकर एक नकारात्मक छवि ही उभरती है। इसमें कुछ ही बिंदु राहत देते हैं। जैसे – कृषि और जलवायु को लेकर जो आवंटन हुए हैं, वे थोड़ा-बहुत सोच के बदलाव को दर्शाते हैं। पर्यावरण क्षेत्र में नाम मात्र को बजट में वृद्धि भी की गयी है, पर यह वृद्धि आधारभूत संरचना या इंफ्रास्ट्रक्चर में किये जा रहे भारी निवेश के मुकाबले कुछ भी नहीं है। इसका अर्थ है कि देश के प्राकृतिक संसाधनों का विनाश अबाध गति से चलता रहेगा।

जलवायु परिवर्तन की दिशा में हमें सकारात्मक आवंटन दिखाई देता है, पर उससे प्रभावित होने वाले करोड़ों लोगों के लिए बजट में कुछ भी नहीं है। वायु प्रदूषण, जो कि एक राष्ट्रीय आपदा है, उस पर भी बजट में कोई ध्यान नहीं है। वित्तमंत्री के बजट भाषण में प्रकृति, वन्यजीव, पर्यावरण, इकोलॉजी, इकोसिस्टम, प्रदूषण, संरक्षण जैसे शब्द एक बार भी नहीं आए हैं। हम अर्थव्यवस्था को एक वास्तविक टिकाऊपन या स्थिरता की स्थिति में लाने का एक और मौका चूक गए हैं।

ध्यान से देखें तो पर्यावरण के लिहाज से आम बजट का विश्लेषण तीन बिंदुओं के आधार पर हो सकता है –

पर्यावरण क्षेत्र को सीधे किया गया आवंटन –

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन का बजट आवंटन केवल 2870 करोड़ से 3030 करोड़ तक बढ़ाया गया है। यह बढ़ोत्तरी इतनी कम है कि महंगाई दर से ही यह फर्क मिट जाएगा। ज़्यादा बड़ी समस्या यह है कि पर्यावरणीय सरोकारों का बजट पूरे बजट का मात्र 0.08 % है। कई सालों से ये हिस्सा घटता जा रहा है और इससे हम सरकार की मंशा का अंदाज़ा लगा सकते हैं। वायु प्रदूषण से लड़ने का बजट कम कर दिया गया है। वानिकी और वन्यजीव क्षेत्र में आवंटन बढ़ाया गया है, पर इस क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर पर किये जाने वाले खर्च से पड़ने वाले दबाव का इतना असर पड़ेगा कि इस बढे हुए आवंटन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। 

जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और जोखिम घटाने के लिए किये जाने वाले प्रयासों के लिए और लोगों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बदलाव करने के लिए बजट में बेहद नाकाफी प्रावधान किये गए हैं। ‘राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजना’ का बजट मात्र 30 करोड़ है जो कि पिछले साल से भी कम है। साथ ही जो मज़दूर कोयला या अन्य फॉसिल ईधन की खदानों, खानों या कुओं में काम करते हैं, वैकल्पिक ऊर्जा के आने से उनकी नौकरियों में कमी आने वाली है। ऐसे मज़दूरों को अपनी आजीविका में एक न्यायपरक बदलाव की प्रक्रिया में ले जाने के लिए भी निवेश की आवश्यकता थी, जो कि इस बजट में नदारद है।  

‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना’ पर खर्च जो 2021-22 में 450 करोड़ था, उसको घटाकर आधा करके 235 करोड़ पर ला दिया गया है। ‘ग्रीन एकाउंटिंग,’ जो पूरी अर्थ व्यवस्था के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर एक कारगर आंकलन दे सकती थी, इस बजट में भी उसे लागू नहीं किया गया है। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को सस्टेनेबिलिटी के चश्मे से देखा जा सकता था।

गैर-पर्यावरणीय क्षेत्र में किया गया आवंटन 

प्राकृतिक खेती, जैविक खेती और परंपरागत अनाजों पर सरकार का काफी स्पष्ट ध्यान है, जो कि पर्यावरण की दृष्टि से एक अच्छी बात है, हालाँकि इसको लेकर अलग से बजट प्रावधान नहीं दिखाई पड़ते हैं। इस खेती को कामयाब बनाने के लिए बाजार और उत्पादक सामग्रियों को लेकर कोई दृष्टि बजट में दिखाई नहीं देती, न ही इस खेती को छोटे और सीमान्त किसानों के लिए बचाकर रखने का कोई प्रावधान किया गया है। ऐसा बहुत संभव है कि यह अवसर भी बड़े किसानों या कॉर्पोरेट के पक्ष में ही रहे। वर्षा आधारित खेती पर भी बजट में अलग से ध्यान नहीं दिया गया है जो कि सिंचाई वाली खेती के मुक़ाबले ज़्यादा पर्यावरण-सम्मत है। विडम्बना यह है कि सरकार ने 1,05,222 करोड़ रुपए की रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर दी जाने वाली सब्सिडी जारी रखी है और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए बजट में ड्रोन से छिड़काव का भी प्रावधान किया है। 

जलवायु पर बजट में काफी ध्यान दिया गया है। बायोमास से बिजली बनाने, बैटरी निर्माण को बढ़ावा देने, ‘वंदे भारत ट्रेनें’ और बड़ी वाणिज्यिक इमारतों को ऊर्जा के सम्बन्ध में किफायती बनाने और वैश्विक ‘ग्रीन बांड्स’ के बारे में बजट में बात की गयी है जो कि पर्यावरण के लिए अच्छा हो सकता है, पर जब अधिकतर अर्थव्यवस्था के लिए वही पुरानी नीतियां रहेंगी, तो इन पहलों का कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा। ऊपर से सौर-ऊर्जा या पवन-ऊर्जा संयंत्रों के मेगा पार्कों , नाभिकीय ऊर्जा और विशाल जल-विद्युत् परियोजनाओं से न सिर्फ विस्थापन, लोगों की चारे और जलावन की लकड़ी की आवश्यकता, ग्रामीण आजीविका, पर्यावरण और वन्य-प्राणियों सम्बंधित समस्याएं बढ़ने का पूरा अंदेशा है। किसानों को सौर-ऊर्जा चलित पम्पों के लिए प्रावधान किए गए हैं जो कि स्वागत योग्य हैं। 

दूसरे क्षेत्रों में किये जाने वाला पर्यावरण के लिए नुकसानदायक निवेश

बजट में आधारभूत संरचनाओं जैसे कि सड़क, हवाई अड्डों, उद्योगों पर बहुत ज़ोर दिया गया है जो कि पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है। ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण’ में कुल 81,000 करोड़ रुपयों का निवेश किया जाना है, उससे जंगलों, नदियों और चरागाहों की शामत आने का अंदेशा है। हमने समुदाय आधारित आधारभूत संरचनाओं की संभावना को एक बार फिर नकार दिया है। 

दुनिया भर के विरोध और शोध के विपरीत नतीजों के बावजूद ‘केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना’ को हरी झंडी दे दी गयी है और इसके लिए बजट से 40,000 करोड़ रुपयों की स्वीकृत की गयी है। पांच अन्य नदी जोड़ो प्रस्तावों को भी बढ़ाया गया है। टेक्सटाइल उद्योग में भी भारी निवेश प्रस्तावित किया गया है। इस विज़न में फिर से पारम्परिक और हथकरघा उद्योगों को कोई जगह नहीं दी गयी है। इसका अर्थ है कि इस क्षेत्र की बड़ी इकाइयों से होने वाला प्रदूषण अबाध गति से चलता रहेगा और हथकरघा उद्योग को बल देने से जो रोजगार मूलक बड़े कार्य हो सकते थे, वे हाशिये पर रहेंगे। ‘जल जीवन मिशन’ में बढ़ाया गया बजट प्रावधान बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकता है, पर अगर सारा पैसा सिर्फ पाइपलाइन बिछाने और नल लगाने में ही खर्च कर दिया गया तो संरक्षण के लिए कुछ नहीं बचेगा और पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता पर निवेश नहीं हो सकेगा। 

बजट में पॉम आयल के लिए 500 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है और मज़े की बात यह है कि ये अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और जेंडर बजट के अंतर्गत किया गया है। ये निवेश पूर्वोत्तर और अंडमान निकोबार के नाज़ुक पारिस्थितिक क्षेत्रों में किया जाना है। इंडोनेशिया और पूर्वी-एशिया के पॉम आयल के अनुभव को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसका भारत में बढ़ावा नैसर्गिक वनों और आदिवासियों के जीवन को बेहद नुक्सान पहुंचा सकता है। रोज़गार गारंटी योजना से यकीनन पर्यावरण को काफी लाभ हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में ‘हरे रोजगारों’ का भी सृजन हो सकता है, पर इस बजट में इस योजना में निवेश बढ़ाया नहीं गया है। 

बजट में कम-से-कम क्या होना चाहिए था?

भारत के पर्यावरण की नाज़ुक हालत को देखते हुए उसे बचाने के मद्देनज़र, बजट में निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए थे। 

1. बजट की कम-से-कम चार प्रतिशत राशि पर्यावरण को संरक्षित करने, साफ़ और विकेन्द्रीकृत ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने, प्रदूषण दूर करने के काम के लिए और समुदायों के जरिये जैव- विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए आरक्षित की जानी चाहिए थी। 

2. कम-से-कम एक प्रतिशत बजट स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन सम्मत आजीविका को अपनाने और आपदाओं से जूझने में मदद करने के लिए रखी जानी चाहिए थी। 

3. आधारभूत संरचनाओं के मेगा प्रोजेक्ट के बजाये विकेन्द्रीकृत यातायात और संचार प्रणालियों में निवेश की आवश्यकता थी। 

4. सार्वजनिक यातायात और उसमें भी बसों पर (मेट्रो पर कम) और साइकिल सवारों और पैदल यात्रियों पर बजट में ज्यादा ध्यान देना चाहिए था। 

5. रसायनमुक्त खेती को बढ़ावा देने के सरकार के संकल्प को चरितार्थ करने के लिए ये ज़रूरी है कि सरकार किसानों को रासायनिक खेती से रसायनमुक्त खेती की तरफ बदलाव करने के लिए मदद करे। न सिर्फ किसानों को, बल्कि कृषि से जुड़े हर क्षेत्र को इस बड़े बदलाव के अनुरूप अपने को तैयार करना होगा। धीमे-धीमे उर्वरकों और कीटनाशकों पर मिलती सब्सिडी ख़त्म करनी होगी और इसके बजाय किसानों को रसायनमुक्त खेती के अनुरूप लागत पर छूट देनी होंगी। ग्रामीण क्षेत्र में, खासतौर पर छोटे, मझोले और महिला किसानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनकी खाद्य सुरक्षा और खाद्य सम्प्रभुता की ओर काम किये जाने की आवश्यकता है। 

6.पर्यावरण कानून, नीतियों और नियमों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए संवैधानिक तौर पर एक पर्यावरण कमिश्नर के पद को सृजित किया जाना चाहिए जो इनके क्रियान्वयन पर नज़र रख सके। (सप्रेस)  

[block rendering halted]

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें