राजेंद्र सिंह

मानवता पर आए संकट का समाधान अब प्राकृतिक सुरक्षा में ही है। आज का हमारा आर्थिक ढांचा बहुत विस्तार पा गया है। इससे जलवायु परिवर्तन के संकट ने चारों ओर असुरक्षा पैदा कर दी है। इस प्राकृतिक सुरक्षा कवच की रक्षा करने की आज सबसे पहली जरूरत है।प्राकृतिक सुरक्षा कवच केवल ओजोन गैस से नहीं होगी; इसकी सुरक्षा जल से होगी। जल ही जलवायु है। ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला जल ही प्राकृतिक कवच है। अब जय-जगत और वसुधैव कुटुंबकम् की घोषणाएं जल शांति के बिना संभव नही हैं।

21 सितंबर 2023 विश्व शांति दिवस International Day of Peace के मौके पर ब्राजील के साउपोलो शहर में सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग के नेतृत्व में विश्व जल शांति अभियान World Water Peace Campaign की शुरुआत की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ UN ने वर्ष 2023 को जल शांति वर्ष घोषित किया है। 

International Day of Peace विश्व शांति दिवस (21 सितंबर) मानवता को शांति हेतु प्रेरित करता है। शांति का बीज प्रेम है। प्रेम जब शुरू होगा तो मानवता में शांति से रहना और जीना शुरू होगा। प्रेम के बीज सम्मान के पेड़ पैदा करता है; जिसके ऊपर पशु पक्षी एक साथ रह सकते हैं। पेड़ से भी प्राण चलते है। पानी की कमी से अब पेड़ और जंगल सूख रहा है, मानव उजड़ रहा है और धरती को नंगा किया जा रहा है इसलिए चिड़िया, लंगूर, बाघ और मानव सबका जीवन अब असंभव हो रहा है। ब्राजील का अमेजोन जंगल घटने लगा तो यहां सुखाड़-बाढ़ दोनों ही बढ़ने लगे हैं। ठीक इसी प्रकार अब पूरी धरती पर जल, जंगल और मानवता के लिए संकट बढ़ रहा है।

अब मानव ने जो जलवायु परिवर्तन संकट पैदा किया था, उसे ही भुगतना पड़ रहा है। मानवता पर आए संकट का समाधान अब प्राकृतिक सुरक्षा में ही है। आज का हमारा आर्थिक ढांचा बहुत विस्तार पा गया है। इससे जलवायु परिवर्तन के संकट ने चारों ओर असुरक्षा पैदा कर दी है। इस प्राकृतिक सुरक्षा कवच की रक्षा करने की आज सबसे पहली जरूरत है।

प्राकृतिक सुरक्षा कवच केवल ओजोन गैस से नहीं होगी; इसकी सुरक्षा जल से होगी। जल ही जलवायु है। ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला जल ही प्राकृतिक कवच है। ओजोन गैस (वायु) है, वह भी जरूरी है। परंतु जीवन की शुरुआत जल से ही है। यही वायु बनाता है। हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के योग से बना जल, जीवन को बनाने और चलाने वाला है।

कोई अकेली गैस जीवन को नहीं बनाती और ना ही चलाती है। जल बनाता और चलाता है। इसलिए सम्पूर्ण जीव – जगत् को जल से ही कवच (सुरक्षा) मिलती है। सुनिश्चित सुरक्षा ही शांति को जन्म देती है; असुरक्षा से शांति नहीं मिलती। असुरक्षा से लड़ाई , झगड़े, युद्ध बढ़ते हैं। लोग उजड़ते – विस्थापित होते है। युद्ध से विस्थापित लोगों को संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी सुरक्षा, प्रदान करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन विस्थापितों को शरणार्थी सुरक्षा प्राप्त नहीं होती।

हम इस अभियान में संयुक्त राष्ट्र संघ से जलवायु परिवर्तन विस्थापितों को भी शरणार्थी सुरक्षा मिले, इस हेतु निवेदन करते है। जलवायु परिवर्तन से सुखाड़-बाढ़ विस्थापितों को उन्हीं के स्थानों पर पुनर्वास सुविधाओं और सुरक्षा प्रदान करनी होगी। यह शांति ही अहिंसामय समाज का निर्माण करेगी।

अब जय-जगत और वसुधैव कुटुंबकम् की घोषणाएं जल शांति के बिना संभव नही हैं। मैंने दुनिया की यात्रा में देखा है कि पहले दो विश्व युद्धों के कारण मरने वालों और विस्थापित होने वाले लोगों से ज्यादा लोग अब जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होकर मर रहे है। इन मरने वालों की सूचनाएं पूर्ण रूप से दबाई जाती हैं। लीबिया जैसे बांध को टूटने से आने वाली बाढ़ में मरने वालों की संख्या तो प्रकाश में आती है। यह भी विकास के नामों से बने बांधों का विनाश है। जलवायु परिवर्तन विस्थापितों की यात्राओं के दौरान नित्य प्रति समुद्र में डूबने जंगलों में मरने वालों की संख्या प्रकाश में नहीं आ रही हैं।

अतः अब पूरे विश्व को ही विचार करना है। जल ,अन्न, रोजगार की तालाश में अपनी जगह ना छोड़े । मरता क्या नहीं करता, जब जीने के लिए जल, अन्न, रोजगार, वायु नहीं मिलेगी तो अपनी जगह से इंसान विस्थापित होता ही है। अब समय है कि जलवायु परिवर्तन विस्थापितों को उनके मूल स्थानों पर ही मदद पहुंचाएं। यह जिम्मेदारी, संयुक्त राष्ट्र संघ और समृद्ध देशों की बनती है। समृद्ध भी तब तक जीवित रहेगा; जब उसके चारों तरफ जीवन और शांति रहेगी। जीवन, जीविका और जमीर सभी के लिए प्रकृति ने बराबर बनाया है। हम इस बराबरी को न छोड़े।

समृद्ध विस्थापितों को समृद्ध जीवन, जीविका और जमीर के साथ अवसर देगा, तब ही शांति रहेगी। यही शांति अहिंसामय दुनिया बनाने का रास्ता है। जय-जगत कहने वाले विनोबा भावे ने गरीबों को जमीन दान में दिलवाकर, उनका जीवन, जीविका बनाने का रास्ता भूदान से शुरू किया था। आज पूरी दुनिया को जलदान से बचाया जा सकता है, लेकिन यह चुनौती की तरह हमारे सामने है। इसी चुनौती को स्वीकार करके, ब्राजील से “विश्व जल शांति“ अभियान का आगाज हुआ है।

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