प्रशांत कुमार दुबे

आपसी व्यापार-धंधे के चलते दुनियाभर के देशों ने तरह-तरह के समूह बनाए हैं। इन समूहों में कई बार गरीबी, प्रदूषण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को लेकर बातचीत और उन्हें बेहतर करने की पहल होती रहती है। इन दिनों जी-20 समूह के तहत भोपाल में एक दो दिवसीय बैठक जारी है। प्रस्तुत है, इस बैठक में शामिल प्रशांत कुमार दुबे का ‘सप्रेस’ के लिए लिखा विशेष लेख।

दिसम्बर 2022 में भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना वैश्विक जगत में भारत की बढती ताकत और स्वीकार्यता का प्रतीक है। यह न केवल दक्षिण-एशिया, बल्कि दुनिया के विकासशील देशों की ओर से आने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है। जहाँ भारत एक ओर तो विकसित देशों से घनिष्ठ रिश्ते रखता है, वहीँ दूसरी ओर विकासशील देशों के दृष्टिकोण को भी अच्छी तरह से समझता है और उनको अभिव्यक्त करता है। इसलिये यह माना जा सकता है कि अपनी अध्यक्षता के दौर में भारत एक महाशक्ति के रूप में भी उभरेगा और पर्यावरण सम्मत जीवन शैली को बढ़ाने की दिशा में एक सार्थक हस्तक्षेप कर सकेगा। अब यह भारत के हर एक नागरिक की जिम्मेदारी भी है कि इस वैश्विक भूमिका को आत्मसात करते हुए वह अपनी भागीदारी निभाये।  

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जी-20 का विशेष सम्मेलन 16-17 जनवरी 2023 को आयोजित हुआ। यह सम्मेलन इसलिए भी अहम है क्योंकि दुनिया के शक्तिशाली देशों के संगठन जी-20 की अध्यक्षता इस बार भारत कर रहा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की संस्था ‘रिसर्च एंड एनफार्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज’ की ओर से भोपाल के ‘कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर’ में इसका आयोजन किया गया।

पर्यावरण सम्मत जीवन शैली – नैतिक मूल्य तथा वैश्विक सुशासन पर आधारित जी-20 देशों के सम्मेलन की शुरुआत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमने प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन किया और अब हम कहते हैं कि पर्यावरण कैसे बचाएं? उन्होंने कहा कि सभी को सोचना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत मानता है कि प्राणियों में भी चेतना है, इसलिए हम गाय की पूजा करते हैं। यही चेतना हमने पेड़ों, पहाड़ों में मानी, इसलिए हम पेड़ों-पर्वतों की पूजा करते हैं।

उन्होंने कहा कि यह भी वैश्विक चिंता का विषय है कि दुनिया के 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग मुट्‌ठी भर लोग करते हैं। यह धरती सबकी है, फिर क्यों सबके लिए मकान न हों, साफ पानी न हो? मूलभूत सुविधायें तो होनी ही चाहिए। अगर कोई कमजोर है, तो उसकी क्षमता बढाए जाने पर जोर दिया जाना चाहिये, ताकि वह यह सब हासिल कर सके। उन्होंने कहा कि यह भी चिंता का विषय है कि सारी दुनिया के देश इस तरह की परिचर्चाओं में क्यों शामिल नहीं हैं? आखिर जी-20 ही क्यों? सारी दुनिया एक हो, एक फोरम बने और सारे देश उस फोरम पर साथ आ जायें।  

ज्ञात हो कि जी-20 ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष’ और ‘विश्वबैंक’ के प्रतिनिधियों के साथ 19 देशों तथा ‘यूरोपीय संघ’ का एक अनौपचारिक समूह है। जी-20 देशों में 60 प्रतिशत आबादी, वैश्विक ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) का 85 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत शामिल है। जी-20 के सदस्यों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, कोरिया-गणराज्य, रूस, सऊदी-अरब, दक्षिण-अफ्रीका, तुर्की, इंग्लेंड, अमेरिका और ‘यूरोपीय संघ’ शामिल हैं।

दिसम्बर 2022 से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 देशों की अध्यक्षता ग्रहण करते हुए कहा था कि यह अमृतकाल है और हमें समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और कार्रवाई-उन्मुख प्रतिक्रिया के लिए तैयार होना है। उन्होंने कहा था कि जी-20 देशों को शान्ति और सद्भाव के पक्ष में एक मजबूत सन्देश देना है और इसके लिए सभी को समान भूमिका निभानी होगी।  

जी-20 की इस साल की थीम ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। जी-20 के प्रतीक-चिन्ह के रूप में खिला हुआ कमल और उसकी सात पंखुड़ियां हैं, जो कि विश्व के सात महाद्वीपों और सात सुरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। साथ ही यह जीवन के सभी मूल्यों-मानव, पशु, पौधे और सूक्ष्मजीव तथा पृथ्वी और व्यापक ब्रह्मांड में उनकी परस्पर संबद्धता की पुष्टि करता है। 8 नवंबर 2022 को प्रतीक चिन्ह (लोगो) लॉन्च किए जाने के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था – “जी-20 के ‘लोगो’ में कमल का प्रतीक इस दौर में आशा का प्रतिनिधित्व करता है। जी-20 दुनिया को सदभाव सहित एक साथ लाएगा।

इस ‘लोगो’ में कमल का फूल भारत की पौराणिक विरासत, हमारे विश्वास तथा हमारे ज्ञान को दर्शा रहा है। भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता “अमृतकाल” का भी प्रतीक है। यह ”अमृतकाल” आजादी की 75वीं वर्षगांठ, 15 अगस्त 2022 से शुरू होकर आजादी के सौवें वर्ष तक की 25 साल की अवधि है और अपने मूल में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ भविष्यवादी, समृद्ध, समावेशी और विकसित समाज की दिशा में अग्रसर यात्रा है।

भोपाल-सम्मेलन की प्राथमिकता में वैश्विक विकास में नई जान डालने, जलवायु परिवर्तन और सशक्त वैश्विक स्वास्थ्य संरचना जैसी अनेक चुनौतियों के लिए रचनात्मक और सर्वसम्मति पर आधारित समाधान तैयार करने के मुद्दे शामिल हैं। खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता बनी है, क्योंकि महामारी ने लाखों लोगों को गरीबी की खाई में धकेल दिया है।

इस सम्मेलन में 10 से ज्यादा समानान्तर कार्यशालाएं और 6 से ज्यादा सामूहिक बैठकें की गईं जिनमें मुख्य रूप से टिकाऊ जीवन शैली, बच्चों के लिहाज से लचीले और सुरक्षित शहर, आर्थिक मामले, तकनीक में नैतिकता के मुद्दे, महिला और युवा आधारित विकास के मुद्दे, हरित ऊर्जा और जीवनशैली, औद्योगिक रुपान्तरण और ‘जीडीपी’ से आगे बढ़कर लोगों के जीवन में खुशहाली को आधार मानते हुए किये जाने वाले विकास पर चर्चा हुई।  

इस पूरे सम्मलेन में सबसे ज्यादा इस बात को प्रमुखता दी गई कि ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास एजेंडा’ (एसडीजी) – 2030 को हासिल करने का समय बहुत नज़दीक आ रहा है, ऐसे में ‘एसडीजी’ में तेजी लाना आवश्यक हो गया है। कोविड-19 महामारी, यूक्रेन-रूस युद्ध, असमान आर्थिक विकास और अत्यधिक महंगाई ने वैसे ही ‘एसडीजी’ की रफ्तार कम कर दी है।

ज्ञात हो कि ‘एसडीजी’ में गरीबी, खाद्य और पोषण सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, रोज़गार और जलवायु परिवर्तन जैसे परस्पर 17 सम्बद्ध मुद्दे शामिल हैं। इस सम्मलेन में खाद्य (अ)सुरक्षा पर बातचीत करते हुए कहा गया कि भूख और कुपोषण से निपटने के लिए कृषि को पर्यावरण की दृष्टि से अधिक टिकाऊ बनाने पर जोर देना होगा।

इस पूरे सम्मेलन में इस बात को भी रेखांकित किया गया कि बच्चों के मुद्दों को और सघनता से देखना होगा। बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, तस्करी और अन्य बाल संरक्षण विषयों को कोविड महामारी ने प्रतिकूल तरह से प्रभावित किया है। ऐसे में देश और दुनिया को बच्चों के मुद्दों में निवेश करने की जरूरत है, क्योंकि दरअसल यह भविष्य में निवेश करना है। (सप्रेस) 

(लेखक ‘आवाज’ संस्था के निदेशक हैं और जी-20 सम्मेलन में नागर समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।)

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