पंकज चतुर्वेदी

देशभर में जलस्रोतों को जिस हिंसक क्रूरता के साथ ध्वस्त किया जा रहा है, उससे एक समाज की हैसियत से अपने आत्महंता होने की तस्दीक तो होती ही है। बेंगलुरु समेत मुम्बई, चेन्नई, पुणे, दिल्ली, कोलकता, इंदौर, भोपाल जैसे नगर-महानगर तालाबों की बर्बादी के नतीजे में साल-दर-साल डूबते-उतराते हैं। कमाल यह है कि इस बदहाली को सब जानते-समझते हैं, लेकिन मौजूदा विकास का नशा कुछ ऐसा है कि उन्हें कुछ भी करने को प्रेरित नहीं करता। पिछले कुछ सालों के विकास ने आखिर बेंगलुरु में क्या किया था? एक समय का प्रकृति-सम्पन्न बेंगलुरु आज क्यों बदहाल है?

वह तो एक तूफान आया, उससे कुछ कम दवाब निर्मित हुआ और दो दिन बरसात हो गई। कुछ ही घंटों में ‘साइबर सिटी’ य ‘सिलिकॉन सिटी’ कहलाने वाले बेंगलुरु में कारें सड़क पर तैरने लगीं। अभी आगे मानूसन सिर पर खड़ा है और साफ जाहिर है कि महानगर की आधुनिकता और विकास मानसून के आगे बेबस होंगे। असलियत तो यह है कि जिन तालाबों-जलनिधियों को आकार लेने में कई-कई सौ साल लगे, उन्हें बगैर सोचे-समझे विकास के नाम पर उजाड़कर कांक्रीट के जंगल उगाने का ही दुष्परिणाम था कि भारी बरसात के चलते तालाब उफनकर शहर के नालों से मिले व सड़कें दरिया बन गईं।

जब देश के प्रधानमंत्री आजादी के 75वें साल में हर जिले में 75 सरोवर बनाने की बात कर रहे हैं, तभी ‘बेंगलुरु विकास प्राधिकरण’ 12 मई 2022 को विज्ञापन छापकर डोडाबेट्टा-हल्ली गांव में चार एकड़ के तालाब पर आवासीय कालोनी खड़ी करने पर आम लोगों की आपत्तियों आमंत्रित कर रहा है। तभी 20 से 22 मई के बीच बरसात होती है और पूरा महानगर जल-भराव से ठिठक जाता है। हल्की सी बरसात में बेंगलुरु के पानी-पानी होने का असल कारण यही है कि जिन जलनिधियों में बेशुमार बरसात समा जाती थी, अब वहां कांक्रीट के जंगल खड़े हैं। तभी जो पानी झीलों में समाना था, वह घरों में घुसा।

किसी नगर के नैसर्गिक पर्यावास से छेड़छाड़ करने का खामियाजा समाज को किस तरह भुगतना पड़ता है, बेंगलुरु इसकी जीवंत बानगी है। एक दिन की बरसात में होसूर-रोड पर आई कयामत का कारण इस सड़क पर स्थित सभी सात झीलों – अराकेरी, बेगूर, पुत्तनहल्ली, लालबाग, माडीवला, हुलीमावू और सरक्की का लबालब होकर उफन आना था। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक नब्बे साल पहले बेंगलुरु शहर में 2789 ‘केरे’ यानी झील हुआ करती थीं। सन साठ आते-आते इनकी संख्या घट कर 230 रह गई। सन 1985 में शहर में केवल 34 तालाब बचे और अब इनकी संख्या तीस तक सिमट गई है। जलनिधियों की बेरहम उपेक्षा का ही परिणाम है कि ना केवल शहर का मौसम बदल गया है, बल्कि लोग बूंद-बूंद पानी को भी तरस रहे हैं। वहीं ‘इन्वायरनमेंटल मैंनेजमेंट एण्‍ड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (ईएमपीआरआई) ने दिसंबर-2012 में जारी अपनी रपट में कहा है कि बेंगलुरु में फिलहाल 81 जलनिधियों का अस्तित्व बचा है, जिनमें से नौ बुरी तरह और 22 बहुत कुछ दूषित हो चुकी हैं।

बेंगलुरु के तालाब सदियों पुराने तालाब-शिल्प का बेहतरीन उदाहरण हुआ करते थे। बारिश चाहे जितनी कम हो या फिर बादल फट जाएं, एक-एक बूंद नगर में ही रखने की व्यवस्था थी। ऊंचाई का तालाब भरेगा तो उसके ‘कलुवे’ (निकासी) से पानी दूसरे तालाब को भरता था। बीते दो दशकों के दौरान बेंगलुरु के तालाबों में मिट्टी भरकर कालोनी बनाने के साथ-साथ तालाबों की आवक व निकासी को भी पक्के निर्माणों से रोक दिया गया। पुत्तेनहल्ली झील की जल-क्षमता 13.25 एकड़ है, जबकि आज इसमें महज पांच एकड़ में पानी आ पाता है। ‘झील विकास प्राधिकरण’ को समझ में आ गया है कि पानी की आवक के राज ‘कलुवे’ के सड़क निर्माण में नष्ट हो जाने के कारण ऐसा हुआ है। जरगनहल्ली और माडीवला तालाब के बीच की संपर्क नहर 20 फीट से घटकर महज तीन फीट की रह गई है।

बेंगलुरु शहर की आधी आबादी को पानी पिलाना ‘टीजीहल्ली’ यानि थिप्पागोंडन-हल्ली तालाब के जिम्मे है। इसकी गहराई 74 फीट है, लेकिन 1990 के बाद इसमें अरकावती जलग्रहण क्षेत्र से बरसाती पानी की आवक बेहद कम हो गई है। अरकावती के आसपास कालोनियों, रिसोर्ट्स और कारखानों की बढ़ती संख्या के चलते इसका प्राकृतिक जलग्रहण क्षेत्र चौपट हो चुका है और जल गगरी ‘टीजीहल्ली’ को रीता करने वाले कांक्रीट के जंगल यथावत फल-फूल रहे हैं।

उल्सूर झील को बचाने के लिए खूब धन खर्च हुआ, लेकिन आज 11 वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र (केचमेंट एरिया) वाली इस झील पर कई छोटे-बड़े कारखाने जहर उगल रहे हैं। जाहिर है, यह गंदगी बेरोक-टोक झील में ही मिलती है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तालाब को बचाने के लिए इसमें जमा चार से पांच घन मीटर गाद व कचरे की सफाई तत्काल करनी होगी।

शहर के 43 तालाब देखते-ही-देखते मैदानों और फिर दुकानों-मकानों में तब्दील हो गए। पिछले दिनों आई बाढ़ का सबसे अधिक असर इन्हीं इलाकों में देखा गया। कई जगह तो झील के नाम के ही उपनगर बस गए हैं, जैसे – मरेनहल्ली, कलासीपाल्या, कोडुगांडाहल्ली, मुरगेशपाल्या, टिंबरयार्ड, विजयनगर आदि। महानगर की सबसे प्रतिष्ठित कही जाने वाली आवासीय परियोजना ‘बणशंकरी फेज-2’ ‘कडीरेनहल्ली सरोवर’ पर है। ‘सोनेहल्ली’ पर आस्टीन टाउन है, तो त्यागराज नगर ‘त्यागराज झील’ पर।

‘कर्नाटक गोल्फ क्लब’ के लिए ‘चल्लाघट्टा झील’ को सुखाया गया, तो ‘कांतीराव स्टेडियम’ के लिए ‘संपंगी झील’ से पानी निकाला गया। अशोकनगर का फुटबाल स्टेडियम ‘शुले तालाब’ हुआ करता था, तो ‘साईं हाकी स्टेडियम’ के लिए ‘अक्कीतम्मा झील’ की बलि चढ़ाई गई। ‘मेस्त्रीपाल्या झील’ और ‘सनेगुरवनहल्ली तालाब’ को सुखाकर मैदान बना दिया गया है। ‘गंगाशेट्टे’ व ‘जकरया’ तालाबों पर कारखाने खड़े हो गए हैं। ‘अगासना तालाब’ अब ‘गायत्रीदेवी पार्क’ बन गया है। ‘तुमकुर झील’ पर ‘मैसूर लैंप’ की मशीनें हैं।

याद करें, सन 2005 में भी लगभग इसी समय बंगलौर शहर में बाढ़ आई थी। उस बाढ़ के बाद सभी ने स्वीकारा था कि यदि महानगर की झीलों को सुखाया नहीं जाता, तो घरों में घुसा पानी तालाबों में ना केवल सुरक्षित रहता, बल्कि गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत से भी निजात दिलाता। दुर्भाग्य से यह हकीकत सरकारी फाईलों में कहीं जज्ब हो गई और उसके बाद पांच बार महानगर में पानी ने कहर ढ़ाया, जिसमें कई करोड़ का नुकसान होने के साथ-साथ कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। याद रहे, बेंगलुरु वह शहर है जिसे सन 2018 में दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन की तरह जल-हीन होने की संभावना वाले दुनिया के चुनिंदा शहरों में शामिल किया गया था। असल में बेंगलुरु की प्यास हो या बाढ़, दोनों का हल तालाबों को बचाने में ही छिपा है।

बीते दो दशकों के दौरान बंगलूरू शहर की कई बड़ी झीलों को पहले दूषित किया गया, फिर उन्हें पाटा गया और उसके बाद उनका इस्तेमाल शहरीकरण के लिए हो गया। इसी का परिणाम है कि थोड़ी सी बारिश में अब शहर में बाढ आ जाती है। शहर की अनेक झीलें देखते-देखते अपने नए अवतार में तब्दील हो गई हैं।

मसलन – (1) जहां मारेन हल्ली झील थी वहां अब मरेनाहल्ली कालोनी है, जहां (2) चैन्नागेरे झील थी वहां अब इजीपुरा कालोनी है, जहां (3) सारक्की अग्रहारा झील थी वहां डोरसानिपाल्या, जेपी नगर, फेज-4 कॉलोनी है, जहां (4) चलंगघट्टा ताल था वहां कर्नाटक गोल्फ क्लब है, जहां (5) दोमलुरू झील थी वहां दोमलुरू कालोनी, स्टेज-2 है, जहां (6) सिद्धपुरा झील थी वहां जयनगर, आई ब्लाक बस्ती है, जहां (7) गेद्दला हल्ली झील थी वहां आरएमवी स्टेज-2, ब्लाक-2 बस्ती है, जहां (8) नागेशेट्टीहल्ली झील थी वहां आरएमवी, स्टेज-2, ब्लाक-2 बस्ती है, जहां (9) कदिरेन हल्ली झील थी वहां बनशंकरी स्टेज-2 कॉलोनी है, जहां (10) त्यागराज नगर झील थी वहां त्यागराज नगर है, जहां (11) तुमकुर ताल था वहां मैसूर लैंप है, जहां (12) रामशेट्टी पाल्य था वहां केरे मिल्क कालोनी का खेल का मैदान है, जहां (13) अगसना झील थी वहां गायत्रीदेवी पार्क है।

जहां (14) कट्टेमारन हल्ली लेक थी वहां महालक्ष्मीपुरम है, जहां (15) गंगा शेट्टी लेक थी वहां मिनर्वा मिल्स और मैदान है, जहां (16) जकरया झील थी वहां कृष्णा फ्लोर मिल्स है, जहां (17) धर्मामबुधि झील थी वहां केंपेगोडा बस टर्मिनस है, जहां (18) अग्रहार होसेकेरे झील थी वहां चेलुवाडीपाल्या बस्ती है, जहां (19) कलासि पाल्या लेक थी वहां कलासि पाल्या कालोनी है, जहां (20) संपंगी लेक थी वहां कंटिरवा स्टेडियम है, जहां (21) शुले तालाब था वहां अशोकनगर फुटबाल स्टेडियम है, जहां (22) अक्कीतिम्मा ताल था वहां साई हॉकी स्टेडियम है, जहां (23) सुंकला लेक थी वहां कर्नाटक राज्य परिवहन निगम का वर्कशाप है, जहां (24) कोरामंगला झील थी वहां नेशनल डेयरी रिसर्च इन्स्टीट्यूट है, जहां (25) कोडीहल्ली झील थी वहां न्यू तिप्पेसंदरा/सरकारी भवन है।

जहां (26) हॉसकेरे रेसीडेंशियल तालाब था वहां रेलवे स्टॉक यार्ड है, जहां (27) सोन्नेनहली झील थी वहां आस्टीन टाउन(आरईएस कालोनी) है, जहां (28) गोकुला तालाब था वहां मोतीकेरे कालोनी है, जहां (29) विद्यारन्यापुरा झील थी वहां जालहल्ली ईस्ट कालोनी है, जहां (30) काडुगोंडाहल्ली लेक थी वहां काडुगोंडाहल्ली कालोनी है, जहां (31) हेन्नूर झील थी वहां नागावारा (एचबीआर लेआउट) है, जहां (32) बाणसवाड़ी तालाब था वहां सुब्बपाल्या एक्सटेंशन नगर है, जहां (33) चेन्नासंद्रा झील थी वहां पुल्ला रेड्डी लेआउट है, जहां (34) विजिनापुरा ताल(कोत्तुरू) था वहां राजराजेश्वरी लेआउट है, जहां (35) मुरगेशपल्या लेक थी वहां मुरगेशपल्या बस्ती है, जहां (36) परंगीपलया लेक थी वहां एचएसआर लेआउट है, जहां (37) मेस्ट्रीपलया झील थी वहां मेस्ट्रीपलया मैदान है, जहां (38) टिंबर यार्ड झील थी वहां टिंबर यार्ड लेआउट है, जहां (39) गंगोदनाहल्ली लेक थी वहां गंगोदनाहल्ली बस्ती है, जहां (40) विजय नगर कॉर्ड रोड झील थी वहां विजय नगर है, जहां (41) उदरापल्या झील थी वहां राजाजीनगर औद्योगिक क्षेत्र है, जहां (42) सानेगुरूवन हल्ली झील थी वहां शिवनहल्ली खेल का मैदान है और जहां (43) कुरूबरहल्ली झील थी वहां बसवेश्वर नगर है। (सप्रेस)

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