चैतन्य नागर

शिक्षा अकादमिक विषयों की पढ़ाई तक सीमित होकर रह गयी है| खेल-कूद, और हॉबी क्लासेज के लिए ऑनलाइन पढ़ाई में कोई जगह नहीं रह गयी है| अब बच्चा संगीत कैसे सीखेगा बच्चा, खेल-कूद की बारीकियां कहाँ से सीखेगा, पेंटिंग और गायन जैसी ललित कलाएं कहाँ से सीखेगा? इनके लिए तो शिक्षक की भौतिक उपस्थति अत्यावश्यक है| हालाँकि संगीत और पेंटिंग जैसे विषय ऑनलाइन पढाये जा रहे हैं, पर यह सब कुछ कितना सीमित होगा यह कोई भी समझ सकता है| इससे जुड़ी और भी कई समस्याएं शिक्षकों के सामने हैं| ऑनलाइन शिक्षा ने शिक्षक को भी बहुत असुरक्षित बना दिया है| वह तनाव में रहता है और इसका असर उसके अध्यापन पर भी पड़ता है|

पहले स्कूल और शिक्षक और माता-पिता बच्चों को लगातार मोबाइल और लैपटॉप से दूर रहने की सलाह देते थे| मुख्यधारा के स्कूलों में तो यह हिदायत इतनी सख्त नहीं थी, क्योंकि वहां बच्चों के साथ शिक्षक थोडा वक्त ही बिताते हैं, पर वैकल्पिक शिक्षा के हिमायती स्कूलों में और ख़ास तौर पर रिहायशी स्कूलों में तो मोबाइल और कंप्यूटर के प्रयोग के खिलाफ बड़ी सख्त पाबंदी रहती है| विडम्बना है कि अब महामारी की वजह से शिक्षा लैपटॉप या स्मार्ट फ़ोन तक ही सिमट गयी है| शिक्षकों और बड़े बच्चों के अलावा ख़ास कर छह से बारह साल के बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई का बड़ा गंभीर असर पड़ता दिखाई है|
छोटे बच्चों को स्कूल जाने में रूचि इसलिए नहीं होती क्योंकि वे पढ़ना चाहते हैं| स्कूल जाने के उनके कारण बौद्धिक और तकनीकी न होकर भावनात्मक होते हैं| बच्चे उन शिक्षकों के कारण स्कूल जाते हैं, जो उन्हें प्यार देते हैं| हालांकि एक कक्षा में सत्तर या उससे अधिक बच्चों को पढ़ाने वाले बच्चों के शिक्षक के मन में तनाव ज्यादा प्यार कम ही बचता होगा, पर कुछ मुख्यधारा के स्कूलों में भी ऐसे शिक्षक देखा गए हैं जिन्हें देख कर ही बच्चे खुश हो जाते हैं, और अगले दिन भी उनसे मिलने की प्रतीक्षा में रहते हैं| गौरतलब है कि बच्चे अपने मन में किसी विषय और शिक्षक के बीच फर्क नहीं करते| जो शिक्षक उन्हें खुशी देता है और सुरक्षित महसूस कराता है, उसके विषय को वह जाने-अनजाने में पसंद करने लगते हैं|
दूसरा मुख्य कारण जो बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करता है, वह है दूसरे बच्चों का साथ और खेल-कूद| खेल कूद बच्चों के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि सांस लेना| इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं| शहर के छोटे फ्लैट्स और ख़ास कर ऐसे दिनों में जब लोग एक दूसरे को देख कर ही दूर छिटकते हैं, बच्चों को खेलना नसीब हो पा रहा| महामारी का यह बहुत ही क्रूर पहलू है जिसका शिकार छोटे बच्चे हुए हैं| शिक्षा अकादमिक विषयों की पढ़ाई तक सीमित होकर रह गयी है| खेल-कूद, और हॉबी क्लासेज के लिए ऑनलाइन पढ़ाई में कोई जगह नहीं रह गयी है| अब बच्चा संगीत कैसे सीखेगा बच्चा, खेल-कूद की बारीकियां कहाँ से सीखेगा, पेंटिंग और गायन जैसी ललित कलाएं कहाँ से सीखेगा? इनके लिए तो शिक्षक की भौतिक उपस्थति अत्यावश्यक है| हालाँकि संगीत और पेंटिंग जैसे विषय ऑनलाइन पढाये जा रहे हैं, पर यह सब कुछ कितना सीमित होगा यह कोई भी समझ सकता है|
इससे जुड़ी और भी कई समस्याएं शिक्षकों के सामने हैं| ऑनलाइन शिक्षा ने शिक्षक को भी बहुत असुरक्षित बना दिया है| वह तनाव में रहता है और इसका असर उसके अध्यापन पर भी पड़ता है| ऑनलाइन शिक्षा में एक शिक्षक यह महसूस करता है कि जब पढ़ाई इसी तरह होनी है, तो स्कूल या कॉलेज किसी बहुत ही मशहूर एवं शुद्ध रूप से पेशेवर शिक्षक की ऑनलाइन सेवाएँ भी ले सकता है और इस तरह नियमित शिक्षकों की तो छुट्टी ही हो जायेगी| यह डर बेबुनियाद नहीं| आप अखबारों में ऐसे स्तम्भ देखते हैं जिसे एक ही लेखक कई अख़बारों को भेजता है और सभी अखबार उसे इसके लिए पैसे देते हैं| इन सिंडिकेटेड स्तम्भों की तरह सिंडिकेटेड व्याख्यान भी हो सकते हैं एक ही अनुभवी प्रोफेसर एक ही विषय पर अपने व्याख्यान कई स्कूल और कॉलेज को दे सकता है, सबसे अलग अलग रकम वसूल करके| क्यों नहीं हो सकता ऐसा? और कौन सा शैक्षिक संस्थान यह नहीं चाहेगा कि उसके यहाँ दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षक उपलब्ध हों| अच्छे शिक्षक की तलाश में वह देश से बाहर ताकेगा और ऐसे कई कारोबारी शिक्षक उसे मिल जायेंगें| ऐसे में ख़ास कर निजी स्कूलों और कॉलेज में शिक्षकों को नौकरी जाने की चिंता बहुत सता रही है| लगातार अपनी नौकरी के बारे में चिन्तित शिक्षक पढ़ायेगा क्या? यह सवाल देर-सवेर हमारे सामने आएगा ही| निजी स्कूलों के लिए अपने शिक्षकों को नियुक्त करने, उनकी कई जिम्मेदारियां संभालने और उनकी अनुपस्थिति की समस्याओं से बचने का यह अच्छा अवसर होगा और वे तो इसका खूब फायदा उठायेंगें|

एक और गंभीर चुनौती शिक्षकों के सामने है और वह यह कि ऑनलाइन शिक्षा में उन्हें बेहतर तरीके से पढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरुरत होगी| ऐसा इसलिए क्योंकि जिन स्त्रोतों का उपयोग अभी तक वे करते आये थे वे अब बच्चों को भी उपलब्ध हैं| पहले शिक्षक आराम से यू ट्यूब, और अलग-अलग वेबसाइट्स से मदद लेकर अपने व्याख्यान तैयार करते थे, और अब ये सभी छात्रों को भी सरलता से उपलब्ध हैं| तो एक तरह से छात्र के सामने दोनों विकल्प हैं, शिक्षक भी और वे स्त्रोत भी जिसका शिक्षक उपयोग करता है| अब वह किसे चुने? इससे शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधरी है, बल्कि शिक्षक ज्यादा असुरक्षित हो गया है|    
अब इस समस्या का एक और पहलू देखें| महानगरों को छोड़ कर देश के कई हिस्सों में बिजली की सप्लाई अनियमित है, बिजली है भी तो बगैर पूर्व सूचना के बीच-बीच में कटती रहती है| छोटे शहरों और गाँवों में लोग अपने फ़ोन तक चार्ज नहीं कर पाते| ऑनलाइन कक्षाओं के लिए स्मार्ट फ़ोन चाहिए या फिर लैप टॉप| गरीब बच्चों के पास लैप टॉप नहीं होता| घर में हो सकता है एक ही स्मार्ट फ़ोन हो, जो कि अक्सर उस पिता के पास होता है, जो काम पर गया होता है| बच्चा कैसे पढ़ेगा? या तो फ़ोन नहीं, लैपटॉप नहीं, या तो बिजली नहीं| ऐसे बच्चे क्या करेंगें, यह एक बड़ा सवाल है| यदि सब कुछ है भी तो फिर डेटा का खर्च अलग से होगा| ब्रॉड बैंड के लिए हर महीने अलग से बिल आएगा, और डेढ़ जीबी के आस पास रोज़ मिलने वाला डेटा एक ही कक्षा में ख़त्म हो जाएगा| फिर बच्चे क्या करें? स्कूल की फीस भी भरें और डेटा पर भी खर्च करें हर माह? घर में पढने वाले एक से अधिक बच्चे हुए तो एक ही फ़ोन या कंप्यूटर को लेकर रोज़ होने वाले झगड़ों से घरेलू तनाव भी अधिक बढ़ेगा| इन सवालों से जूझना पड़ेगा ऑनलाइन शिक्षा की नयी पद्धति को| बच्चों को लगातार स्क्रीन को ताकते रहने के  खतरे अलग से झेलने होंगें| ख़ास कर छोटे बच्चों के समेकित विकास पर, उनके सामाजिक विकास पर इसके बहुत बुरे प्रभाव पड़ते दिखाई दे रहे हैं| छोटे बच्चों को लैप टॉप या मोबाइल के साथ अकेले छोड़ने के भी कई दुष्परिणाम हैं| उनकी देख-रेख के लिए किसी वयस्क पारिवारिक सदस्य को लगातार उनके साथ रहना पड़ता है| बच्चों को लगातार किसी वयस्क की मदद की जरुरत भी पड़ती है मोबाइल या लैप टॉप का सही ढंग से उपयोग करने के लिए| महामारी की वजह से बड़ों को भी घर से काम करना पड़ रहा है, ऐसे में कोई अपना काम करे, बच्चों की मदद करे या फिर उन्हें नयी तकनीक से परिचित कराये|

ज़ाहिर है इन परिस्थितियों में आतंरिक क्लेश बहुत बढ़ता होगा| ख़ास कर जब संसाधन सीमित हों और डिजिटल पढ़ाई के लिए पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं न हों| एक बड़ी समस्या उन छात्रों को लेकर भी है जिनकी विशेष जरूरतें हैं, मसलन दृष्टि बाधित या किसी और वजह से सीमित दैहिक क्षमताओं वाले बच्चे| वे इस नए सिस्टम में कैसे खुद को ढाल पायेंगे,  यह भी एक बड़ा सवाल है| मानसिक परेशानियों वाले बच्चे भी ऑनलाइन शिक्षा से फायदा नहीं उठा पायेंगें, क्योंकि उन्हें बहुत ही व्यक्तिगत स्तर पर पढ़ाने और सिखाने की जरुरत पड़ती है| उनके लिए शिक्षक भी ख़ास तौर पर प्रशिक्षित होते हैं|
गौरतलब है कि स्कूल सिर्फ अकादमिक विषयों की पढाई के लिए नहीं होते, वहां बच्चा आपसी संबंधों से बहुत कुछ सीखता है| अपने घर से निकलकर पहली बार वह अजनबियों के संपर्क में आता है और उसे कई नए, सुखद और दुखद अनुभव होते हैं| अपने घर की चारदीवारी में कैद होकर पढना शुरू में उसे दिलचस्प लग सकता है, पर धीरे-धीरे जब इसके दुष्प्रभाव उसपर पड़ेंगे तब नयी तरह की चुनौतियां परिवारों और समाज के सामने आयेंगीं|
यह सही है कि यह सब कुछ कोई खुशी-खुशी नहीं कर रहा, महामारी से जन्मी परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया है और इसलिए स्कूल वगैरह छोड़ कर बच्चों को घरों में कैद होना पड़ा है, पर इस पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरुरत है| एक समस्या का हल ढूँढने के फेर में हम कई नयी समस्याओं को न्योत रहे हैं, इस तथ्य को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता| थोड़ी सजगता और दूरदर्शिता हमें इसने निपटने की ऊर्जा अवश्य देगी| पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह मशीनों के जिम्मे हो जायेगी तो बच्चों के भी मशीन में तब्दील होने के खतरे बढ़ जायेंगें| पहले ही यह कम नहीं थे| (सप्रेस)   

2 टिप्पणी

  1. It’s true but doing any work is stressful for humans don’t enjoy their work. Going school was equally stressful as apart from Studies there were other Co curricular activities to ba taken care of . Online teaching the stress has shifted to network problem as there is continuous stress of whether the session will move smoothly or not and not on teaching.

  2. I have tried to highlight many aspects of online education which now seems to have become like a necessary evil. I don’t advocate conventional education which is imparted in schools either. We are just moving from one difficulty to another. That’s our predicament.

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