निजी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के नियमन के लिए दायर याचिका सर्वोच्च न्यायालय ने की स्वीकार

जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा दायर याचिका की दलीलों पर केंद्र को जारी किया नोटिस

सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर देश भर में क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 और क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट रूल्स, 2012 के सभी प्रावधानों को लागू करने का निर्देश देने की मांग की। जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा दायर याचिका (रिट याचिका (सिविल) 289/2021) में दावा किया गया है कि निजी स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल मरीजों का शोषण कर रहे हैं, और समान प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं।

याचिका में दलील दी गई है कि करीब दो दशक पहले केंद्र द्वारा राष्ट्रीय नीति लक्ष्य के रूप में अपनाए गए क्लीनिकल प्रतिष्ठानों में मानकों का विनियमन अभी तक पूरे देश में प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है। याचिका में क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 के क्रियान्वयन के माध्यम से निजी क्षेत्र सहित स्वास्थ्य सेवा के नियमन की मांग की गई है। याचिका में निजी अस्पतालों में न्यूनतम मानकों के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल शुल्क के नियमन के राष्ट्रव्यापी क्रियान्वयन की मांग की गई है। यह मांग उन सभी राज्यों के लिए की गई है जिन्‍होंने क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को लागू किया है या नहीं। साथ ही शिकायत निवारण तंत्र के साथ-साथ मरीजों के अधिकार चार्टर के क्रियान्वयन की भी मांग की गई हैं।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं। मरीजों से अधिक शुल्क लिया जा रहा है और छोटे क्लीनिकों या प्रयोगशालाओं में प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मी नहीं हैं। पारिख ने जोर दिया कि 70 प्रतिशत से अधिक रोगी देखभाल निजी क्षेत्र द्वारा प्रदान की जाती है और 30 प्रतिशत से कम रोगी सार्वजनिक क्षेत्र का उपयोग करते हैं। उपचार प्रोटोकॉल के साथ स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के लिए मानक दिशानिर्देश होने चाहिए।

पारिख ने कहा कि उनके मुवक्किल ने पहले ही सरकार को अभ्यावेदन भेजा था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। उन्होंने कहा कि 11 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों ने पंजीकरण प्रस्ताव को अपनाया है और अधिक शुल्क लेने और अस्पताल के अधिकारियों द्वारा मरीजों को अस्पताल की दवाएं और उपकरण खरीदने के लिए मजबूर करने के संबंध में शिकायतों को उजागर किया है।

पीठ ने कहा कि राज्यों के पास इन प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने और विनियमित करने के संबंध में कुछ तंत्र हैं। पारिख ने कहा कि अगर केंद्र के स्थायी वकील को नोटिस जारी किया जाता है तो इसका कार्यान्वयन संभव होगा। शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले में नोटिस जारी किया। सुनवाई को समाप्त करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की हमें उम्मीद है कि सरकार जवाब देगी।

जन स्‍वास्‍थ्‍य अभियान के सहसंयोजक अमूल्‍य निधि एवं अमिताव गुहा ने बताया कि याचिका में केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को याचिका का पक्षकार बनाया गया है। याचिका में मुख्य रूप से मांग की गई कि:

•     क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 और क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट रूल्स, 2012 के सभी प्रावधानों को लागू करने के लिए भारत सरकार को निर्देश जारी करना।

•     अस्पताल में दी जाने वाली प्रक्रियाओं और सेवाओं के लिए दरों को प्रमुखता से प्रदर्शित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने के लिए भारत सरकार को निर्देश दें। स्वास्थ्य सुविधाओं के न्यूनतम मानकों को बनाए रखने, मानक उपचार प्रोटोकॉल का पालन करने की आवश्यकता है, जैसा कि क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 की धारा 11 और 12 में क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट रूल्स, 2012 के नियम 9 में कहा गया है।

संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 47 के सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए उपरोक्त को लागू करने की आवश्यकता है।

•     संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 47 के अनुरूप या तो क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 के प्रावधानों को अपनाकर प्रतिवादियों को निर्देश जारी करना। या अपने कानूनों को उक्त अधिनियम और नियमों के अनुरूप लाना। यह प्रार्थना विशेष रूप से उन राज्यों में नियामक उपायों के कार्यान्वयन की मांग करती है जिन्होंने अब तक क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को नहीं अपनाया है।

•     राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा अधिसूचित मरीजों के अधिकारों का चार्टर को संविधान के अनुच्छेद 141, 142, 144 के तहत सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाए, जब तक कि क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 में मौजूद कमियों को उपयुक्त कानून द्वारा भर नहीं दिया जाता है।

•     एक उपयुक्त कानून द्वारा क्लिनिकल ईस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 में कमियों को दूर करने तक जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मरीजों के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र बनाने का निर्देश देने के लिए निर्देश जारी करना।

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