पटना से फ़िरोज़ ख़ान की रिपोर्ट

पटना। ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था के बिहार पड़ाव ‘बापू के पदचिह्न’ का समापन 14 अक्टूबर को हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की शुरुआत 28 सितम्बर को अलवर, राजस्थान से हुई थी। बिहार में इस यात्रा का उप नामकरण ‘बापू के पदचिह्न’ रखा गया। बिहार इप्टा के महासचिव फीरोज अशरफ खां जानकारी देते हैं कि बिहार ने महसूस किया कि झूठ और प्रोपेगेंडा के इस समय में पूरी दुनिया को एक चम्पारण और गांधी की तलाश है। नील के रूप में की जा रही झूठ, प्रोपेगेंडा की खेती के खिलाफ ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा एक सत्याग्रह के रूप में चलाई जाए।

प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के राष्ट्रीय अभियान के अंतर्गत बिहार की पदयात्रा 7 अक्टूबर से शुरू हुई और लगातार आठ दिनों तक गली, मुहल्ले, गांव, शहर में पदयात्रा चलती रही। हाथों में लाठी, गले में खादी का सफ़ेद गमछा और कंधे से कमर तक लटका हुआ झोला पदयात्रियों की पहचान बना। अनवरत चलता हुआ जत्था ‘ढाई आखर प्रेम’, ‘तू खुद को बदल तो ये सारा ज़माना बदलेगा’, हम भारत से नफ़रत का हर दाग मिटाने आए हैं’ गीत गा रहा था।

पदयात्रा में सबसे आगे युवा लड़कियां खादी का बना बैनर हाथ में लिए हैं। ढाई आखर प्रेम का प्रतीक चिह्न, महात्मा गांधी की मुस्कुराती तस्वीर और बापू के पदचिह्न से मधुबनी पेंटिंग से सजा बैनर बरबस ही आकर्षित करता है। लगभग 45 – 50 पदयात्री समूह चल रहे हैं। इस समूह में युवा, युवती और प्रौढ़ सभी शामिल थे। ऐसा जैसे एक पूरा परिवार चल रहा हो। उस राह पर जो देश दुनिया और समाज के दुःख से दुःखी हैं। अपनी नहीं, अपने देश की चिंता है। नफ़रत, घृणा और हिंसा के सामने प्रेम, सत्य और अहिंसा खड़ी है। ये युवा, प्रौढ़ कलाकार – अभिनेता – गायक – संगीतकार हैं, लेखक – कवि – नाटककार हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्होंने असंख्य राष्ट्रीय मंचों पर देश और राज्य का गौरव बढ़ाया है। वे सभी सड़को-गलियों पर पैदल चलते हुए प्रेम, मोहब्बत के संदेश दे रहे हैं।

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा की चर्चा करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख़्तर बताते हैं कि यह साथ – साथ रहने, खेलने, पढ़ने और अपने जीवन को सबसे अच्छे ढंग से जीने के लिए सामाजिक महत्व का राष्ट्रीय अभियान है। देश के 22 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में यह अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान से राष्ट्रीय स्तर पर इप्टा, प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ जैसे संगठन जुड़े हैं और राज्य स्तर पर कई और संगठन जुड़े हुए हैं। यह संख्या 200 से अधिक हो जाती है और लगातार बढ़ती ही जा रही है।

ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की शुरुआत भगत सिंह के जन्मदिवस 28 सितम्बर से शुरू हुई और जत्था महात्मा गांधी के शहादत दिवस के अवसर पर अगले साल 30 जनवरी को समाप्त होगा। भगत सिंह और महात्मा गांधी के इस अभियान से जुड़ाव के महत्व को रेखांकित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कहते हैं कि यह अभियान सत्य, अहिंसा से अपने देश और देशवासियों से प्रेम का संदेश है। भगत सिंह ने बहरी ब्रितानी सरकार को सुनाने के लिए और गांधी ने कभी भी न झुकने वाली सरकार को नतमस्तक करने के लिए सत्याग्रह और जन भागीदारी का रास्ता चुना। आज जब देश में एक अजीब तरह की नफ़रत को बढ़ाया जा रहा है। युवाओं के अंदर घृणा भड़कानेवाला और हिंसक होने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। महिलाओं के साथ अमानवीय हिंसा हो रही है। दलितों, मुसलमानों को जाति -धर्म के नाम पर सताया जा रहा है, हिंसा की जा रही है। ऐसे में महात्मा गांधी और भगत सिंह एक बार फिर प्रसांगिक हो जाते हैं। युवाओं में भगत सिंह रवानी और महात्मा गांधी की समग्रता इस देश की ज़रूरत हैं।

बिहार पड़ाव की शुरुआत

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा का बिहार पड़ाव बांकीपुर जंक्शन (वर्तमान में पटना जंक्शन) पर 7 अक्टूबर को प्रारंभ हुआ। प्लेटफॉर्म नंबर एक पर बापू के बिहार आगमन की याद में लगाए गए शिलापट्ट पर इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, बिहार प्रगतिशील लेखक संघ महासचिव रविन्द्र नाथ राय और बिहार इप्टा के अध्यक्ष मंडल सदस्य समी अहमद के नेतृत्व में माल्यार्पण किया गया। जंक्शन परिसर में पदयात्रियों ने गीत गाए और ढाई आखर प्रेम का संदेश दिया। कलाकारों ने रहीम, कबीर के पदों से प्रेम का ताना बाना बुना।

पटना यूथ हॉस्टल से पदयात्रा प्रारंभ हुई और महात्मा गांधी और भगत सिंह को प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर भिखारी ठाकुर रंगभूमि, दक्षिणी गांधी मैदान पहुंची। अस्थाई रूप से तैयार इस रंगभूमि पर पदयात्री कलाकारों ने जनगीत गाएं। कबीर की पदावली पर आधारित भाव नृत्य प्रस्तुत किया और नाटक का मंचन किया।

उपस्थित दर्शक समूह को संबोधित करते हुए इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा ने कहा कि ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा एक ओर कबीर, रैदास, रहीम, मीरा, रसखान के पद्यों के बहाने इस राह को पहचानने की कोशिश है जो प्रेम करना सिखाता है। आदमी से आदमी को जोड़ता है। वहीं दूसरी ओर गांधी के सत्याग्रह को झूठ बोलने, नफ़रत करने की राजनीति के खिलाफ़ निडरता के खड़े होने आग्रह है।

प्रख्यात चिकित्सक डॉ सत्यजीत ने कहा कि पदयात्रा शहर से गांव को कनेक्ट करने और साझे सांस्कृतिक विरासत को मज़बूत बनाने के लिए है। सामाजिक कार्यकर्ता रूपेश ने कहा कि कलाकारों, साहित्यकारों ने हर दौर में अपनी भूमिका सुनिश्चित की है। चाहे बंगाल का अकाल हो या आज़ादी की लड़ाई, आपातकाल के खिलाफ़ जन संघर्ष हो या नफ़रत के खिलाफ़ मोहब्बत का कारवां कलम और संगीत ने जनता के पक्ष को चुना है।

समापन समारोह का गवाह बना गांधी संग्रहालय

14 अक्टूबर को दोपहर बाद गांधी स्मृति संग्रहालय परिसर में ढाई आखर प्रेम बिहार पड़ाव का समापन समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आगाज ‘हम है इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा’ के गायन से किया गया।

समापन समारोह को संबोधित करते हुए लखनऊ से आए वरिष्ठ पत्रकार नासीरुद्दीन ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आज हर देश को गांधी की ज़रूरत है। चाहे वो हमारा देश हो या फिलीस्तीन, इस्राइल, कनाडा। सबको गांधी के सत्याग्रह की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि आज देश दुनिया को एक बार फिर से एक चम्पारण और गांधी की ज़रूरत है। वो गांधी जो निडर होकर सच बोलने और प्रेम करना सिखाए। हिंसा, नफ़रत और युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। बच्चे पढ़ना चाहते हैं। युवा को रोजगार की गारंटी चाहिए और सबको सत्ता, समाज और विकास में समानुपातिक हिस्सेदारी चाहिए। इसलिए आदमी से आदमी का प्रेम करना और सच को निर्भीकता से कहना ही सत्याग्रह है।

सामाजिक कार्यकर्ता शरद कुमारी ने कहा कि प्रेम और बंधुता की सबसे बढ़ी वाहक हैं। हम प्रेम करती हैं और प्रेम बढ़ती हैं। लेकिन जो कुछ मणिपुर में हो रहा है और हुआ उससे विचलित हैं। आईए अपने घर, परिवार और समाज की महिलाओं से प्रेम करें।

बिहार इप्टा के कार्यवाहक महासचिव फीरोज अशरफ खां ने कहा कि ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था का बिहार पड़ाव महात्मा गांधी के पदचिह्न पर चलकर प्रेम का संदेश देने का प्रयास है। चम्पारण सत्याग्रह ने देश को अंग्रेजी गुलामी से मुक्ति की राह खोली थी और हम इस ढाई आखर प्रेम पदयात्रा से नफ़रत, हिंसा और घृणा से मुक्ति का आह्वान करते हैं। इस पदयात्रा में हम बांकीपुर जंक्शन (पटना जंक्शन) से मुजफ्फरपुर में बापू कूप (लंगट सिंह कॉलेज) पहुंचे और उसके बाद सात दिनों तक पूर्वी चम्पारण के गांव गांव में पदयात्रा घूमी। प्रेम के संदेश को जनगीत, नाटक और नृत्य में प्रस्तुत किया।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा के स्थानीय संयोजक अमर भाई से स्वागत करते हुए कहा कि यह पदयात्रा आदमी से आदमी को जोड़ने की यात्रा है। हर पड़ाव, हर चौराहे पर समुदाय के पदयात्रियों ने खाना खाया, पानी पिया और आराम की। गांव की महिलाओं, युवाओं और बच्चों ने पदयात्रियों के मिलाकर इसको सफल बनाया। यही इस पदयात्रा की सफलता का सूत्र है कि सारे रास्तों में हम बापू के जन बनाते गए और लोगों को जोड़ते गए हैं।

इस मौके पर ब्रजकिशोर सिंह (सचिव, गांधी संग्रहालय), डा० परवेज (अध्यक्ष, जिला शांति समिति), श्रीमती शशिकला (पूर्व प्राचार्य, जिला स्कूल), ई० गप्पू राय, बरकत खां, मुमताज़ आलम, गुलरेज शहजाद (पूर्व पार्षद), पारसनाथ (अवकाश प्राप्त शिक्षक), विनय कुमार सिंह (सह संयोजक, आयोजन समिति, ढाई आखर प्रेम), कपिलेश्वर राम, विनोद कुमार, इंद्रभूषण रमन बमबम, चांदना झा आदि ने भी भागीदारी की।

धन्यवाद ज्ञापन आयोजन समिति के सह संयोजक मंकेश्वर पाण्डेय के किया और गांधी स्मृति संग्रहालय और मोतिहारी के आवाम को आभार व्यक्त किया।

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1 टिप्पणी

  1. महात्मा गांधी और उनके विचार आज के वक्त की जरूरत हैं। राज सत्ता और राजनीति ने गांधी को केवल वोट के उपयोग किया है। वैचारिक रूप से महात्मा गांधी आज किसी भी राजनीतिक दल के दायरे में दूर-दूर तक नहीं दिखते हैं, लेकिन कलाकारों, साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गांधी और उनके विचारों को जन-जन के बीच स्थापित किये रखा है। इस प्रसंग में इप्टा और साहित्यिकी संस्थाओं का ‘ढाई आखर प्रेम’ की पदयात्रा कला-संस्कृति के एतिहासिक दायित्व के निर्वहन का द्योतक है।
    गाांधी को बार-बार याद किया जाना और उन्हें जनमानस के बीच बनाये रखना ही संकल्प होना चाहिए। आज गांधी हैं, तो दुनिया में मानवता है।

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