पंडित कुमार गंधर्व का जन्‍मशती वर्ष

ध्रुव शुक्ल

पंडित कुमार गंधर्व का सौवां वर्ष 8 अप्रैल 2023 से आरंभ हो गया। शती-आयोजनों की श्रृंखला ‘कालजयी’ नाम से देश के अनेक केंद्रों में आयोजित हो रहे है। इसी ऋखंला में 29-30 जुलाई 2023 को भारत भवन में एक आयोजन होने जा रहा है। इस आयोजन के संदर्भ में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार ध्रुव शुक्ल की टिप्‍पणी।

ध्रुव शुक्ल

Pandit Kumar Gandharva पण्डित कुमार गंधर्व भारत के हृदय प्रदेश के देवास शहर में सुदूर कर्नाटक से संयोगवश उस तीस जनवरी को बसने आये जिस दिन महात्मा गांधी की क्रूर हत्या की गयी। वे तपेदिक से जूझ रहे थे और वर्षों तक देवास की आबोहवा  के बीच एक पुराने घर के एकांत में मालवा की लोकधुन पर ध्यान लगाकर अपने धुन उगम रागों का अन्वेषण करते रहे। फिर वह संगीत अवतरित हुआ जिसे पूरी दुनिया ने सुना और भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास कुमार गंधर्व से पहले और उनके बाद पढ़ा जाने लगा।

क्या भारत भवन के न्यासियों को इस कलाओं के घर की कहानी याद नहीं रही? किसी समय भारत भवन का परिसर कुमार गंधर्व की सादगी से भरी गरिमामय उपस्थिति और उनकी आवाज से गूंजा करता था। वे उसके प्रथम न्यासी थे और मध्यप्रदेश की संस्कृति सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे। मध्यप्रदेश की सरकार उन्हें अनेक राजकीय सम्मानों से नवाजते हुए उनके प्रति प्रणम्य बनी रही। देवास कुमार गंधर्व के अप्रतिम सांगीतिक योगदान से भारत का तीर्थस्थल बन गया।

Kumar Gandharva कुमार गंधर्व विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी के शिखर पर विराजी भगवती चामुण्डा के मंदिर की तलहटी में अपने संगीत का न्यारा घर बसाकर रहे। आज जब मध्यप्रदेश सरकार मंदिरों के भव्य कारिडोर करोड़ों की लागत से बना रही है, उसे संगीत का तीर्थ बन गये पण्डित कुमार गंधर्व की जन्मशती पर एक अविस्मरणीय आयोजन करने में संकोच है। 29-30 जुलाई 2023 को भारत भवन में जो आयोजन हो रहा है, वह एक खानापूर्ति भर है। उसका निमंत्रण पत्र देखकर मन खिन्न हो गया।

क्या भारत भवन के न्यासी, जिनमें संगीतकार भी हैं, उन्हें नहीं मालूम कि कुमार गंधर्व के शिष्यों में उनके सुपुत्र मुकुल शिवपुत्र के अलावा मधुप मुद्गल और सत्यशील देशपाण्डे आज भी संगीत साधना और शिक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं। कुमार जी के प्रति गहन श्रद्धा रखने वाले अनेक उत्तम संगीतकार भी देश में हैं, जिन्हें इस जन्मशती आयोजन में शामिल करने से समारोह की गरिमा बढ़ती। संगीत के उन जानकार सुधी समीक्षकों को बुलाया जाता जो केवल संत कबीर पर भाषण नहीं, तुलसीदास, मीरा, सूरदास, तुकाराम से कुमार गंधर्व के गहन सांगीतिक रिश्ते पर विमर्श करने में समर्थ हैं।

फिलहाल संतोष के लिए यह ठीक है कि इस दो दिन के बेमन से किये जा रहे जन्मशती आयोजन का शुभारंभ कुमार गंधर्व की पुत्री कलापिनी और पौत्र भुवनेश के गायन से हो रहा है पर कुमार गंधर्व की महिमा का गुणगान केवल इतने से न हो पायेगा। लगता है कि भारत भवन और सरकार के संस्कृति विभाग में श्रेष्ठ सलाहकारों का अभाव है। याद आते हैं वे दिन जब भारत भवन पण्डित कुमार गंधर्व और उस्ताद मोहिउद्दीन डागर जैसे संगीतकारों के मशविरे से अपनी संगीत सभाओं और संगीत-विमर्श की रूपरेखा इस तरह तैयार कर पाता था कि भारतीय संगीत व्यापक रसिक समाज की स्मृति में अपनी जगह बनाये रख सके।

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