चैतन्य नागर

देश में हर साल करीब पौने दो करोड़ लोगों को कुत्ते काट लेते हैं| इनमें से अठारह से बीस हज़ार इंसानों को हर साल रेबीज़ Rabies होता है| रेबीज़ कुत्तों से इंसानों में होने वाला गंभीर रोग है| यह बिल्ली और बन्दर के काटने से भी हो सकता है| रेबीज़ के कई मामले गाँव में होते हैं और उनके आंकड़े सामने नहीं आ पाते| दुनिया में रेबीज़ से जितनी मौतें होती हैं, उनका 36 फीसदी सिर्फ भारत में हैं|

1950 के दशक में जापान के कुछ वैज्ञानिकों ने समुद्री द्वीपों पर रहने वाले बंदरों पर अध्ययन किया था| बंदरों में से अचानक एक बंदर ने एक दिन शकरकंद को पानी में धो कर खाना शुरू किया और उसके बाद उसकी देखा देखी धीरे धीरे सभी बंदर उस द्वीप पर शकरकंद को धो कर खाने लगे| यही नहीं, करीब दो से तीन साल बाद दूसरे द्वीपों पर भी बंदरों को यही करते देखा गया| वैज्ञानिकों की इस खोज को पिछली सदी के आखिर में फिर से चर्चा में लाया गया| यह पाया गया कि किसी प्रजाति के कुछ सदस्य यदि कोई नई बात सीख लें तो धीरे धीरे यह बात प्रजाति के अन्य सदस्यों में भी आ जायेगी| भले ही वह किसी अन्य भौगोलिक परिस्थिति में रहते हों|

भारत में सड़क के आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं के देख कर लगता है कहीं उनके साथ वही तो नहीं हुआ जो जापान में बंदरों के साथ हुआ था| अचानक जैसे समूचे देश के कुत्ते लोगों को काटने लगे हैं| करीब रोज़ ही देश के किसी न किसी भाग से इस संबंध में खबरें सुनाई देती हैं| वाघ बकरी जैसी बड़ी कंपनी के मालिक पराग देसाई के साथ इस हफ्ते जो हादसा हुआ वह सीधे आवारा कुत्ते के काटने से तो नहीं हुआ था, पर कुत्त्तों के हमले से बचने की कोशिश में ही वह गिर पड़े थे और उनके सर पर चोट आई| इससे उनका निधन हो गया|

देश में हर साल करीब पौने दो करोड़ लोगों को कुत्ते काट लेते हैं| इनमें से अठारह से बीस हज़ार इंसानों को हर साल रेबीज़ Rabies virus होता है| रेबीज़ कुत्तों से इंसानों में होने वाला गंभीर रोग है| यह बिल्ली और बन्दर के काटने से भी हो सकता है| रेबीज़ के कई मामले गाँव में होते हैं और उनके आंकड़े सामने नहीं आ पाते| दुनिया में रेबीज़ से जितनी मौतें होती हैं, उनका 36 फीसदी सिर्फ भारत में हैं| भारत में आवारा कुत्तों की संख्या डेढ़ करोड़ है और यह भी दुनिया में सबसे अधिक है| रेबीज़कुत्ते काटने के मामले में भारत दुनिया की राजधानी ही है|

कुत्ते के काटे जाने की घटनाएँ रोज़ के अख़बारों और खबरों का ऐसा हिस्सा बन गई हैं कि लोग इनके प्रति असंवेदनशील हो गए हैं| जब कभी कोई बहुत ही भयावह काण्ड होता है तभी हम फिर से जागते हैं| मसलन, राजस्थान के एक अस्पताल से कुत्ते एक बच्चे को घसीट कर ले गए और तेलंगाना में चार साल के एक बच्चे को कुत्तों ने मार डाला| ऐसा नहीं कि राज्य और केंद्र सरकारें, न्यायपालिका, नगर निगम और गैर सरकारी संगठन इस समस्या की गंभीरता को नहीं समझ रहे, पर फिर भी यह लगातार बनी हुई है| केरल में तो हाल ही में ऐसे हालात हो गए कि कोज़िकोड़े की एक पंचायत को अपने इलाके के सभी स्कूलों को बंद करवाना पड़ा क्योंकि कई बच्चों को आवारा कुत्तों ने काट लिया था|

मनुष्य के क्रमिक विकास के साथ श्वानों का एक गहरा, मैत्रीपूर्ण संबंध रहा है| पर यह भी सच है कि श्वान भेड़िये से विकसित हुए हैं और अपने इलाके को लेकर बड़े आक्रामक होते हैं| एक तरफ उनकी आक्रामकता और दूसरी तरह इंसान का उनके साथ पुराना दोस्ताना संबंध-ये दोनों मिलकर किसी व्यक्ति या सरकार को अजीब सी नैतिक दुविधा में डाल देते हैं| यह दुविधा हमारे देश में है| दुनिया के अधिकांश देशों में इस मुद्दे को लेकर स्पष्टता है| वहां आवारा पशुओं के कोई अधिकार नहीं| यदि उनका पंजीकरण हुआ है तो उनके मालिक उनके लिए ज़िम्मेदार हैं और नहीं तो सरकार| या तो उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए, और यदि वे बीमार हैं, मरणासन्न हैं तो जनस्वास्थ्य के मद्देनज़र उन्हें यूथेनेसिया या सुखमृत्यु दे दी जाती है|

अमेरिका में करीब तीस लाख के आस पास कुत्तों और बिल्लियों को हर साल सुखमृत्यु दी जाती है| कुत्तों को लोग खरीदते-बेचते भी हैं और उनकी ब्रीडिंग भी बड़े पैमाने पर करवाते हैं| ऐसे में आपूर्ति मांग की तुलना में कहीं ज्यादा हो जाती है| जो बिक नहीं पाते, उन्हें सड़क पर डाल दिया जाता है और वे आवारा की श्रेणी में आ जाते हैं| आवारा पशुओं को मारने का सवाल भी हमारे देश में पेचीदा है| खासकर जिन कुत्तों को मारा भी जाता है, उसका तरीका बहुत ही क्रूर होता है| कभी उन्हें करंट से और कभी जहरीली गैस से मार दिया जाता है| इसे लेकर पशु क्रूरता के खिलाफ काम करने वाले एक्टिविस्ट नाराज़ हो जाते हैं और उनकी नाराज़गी समझी भी जा सकती है| ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसके तहत आवारा कुत्तों को कायदे से किसी शेल्टर होम में फिर से स्थापित किया जा सके और उनका ख्याल रखा जा सके|

भारत ने 2030 तक रेबीज़ ख़त्म करने का फैसला किया है, पर आवारा कुत्तों और रेबीज़ फैलाने वाले अन्य पशुओं के बारे में स्पष्ट नीति बनाये बगैर यह लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा| एक संतुलित नीति की जरुरत है, जिसके तहत कुत्तों का बंध्याकरण हो, उनकी आबादी पर नियंत्रण हो, उनके लिए शेल्टर होम बनें, और जो आक्रामक हैं या रेबीज़ के शिकार हो गए हैं, उन्हें नगर निगम बगैर किसी दर्द के, सुख मृत्यु दे दे| शहरों और गावों में एक ऐसे स्पेस को तैयार करने की जरूरत है जहाँ सड़क के पशु और इन्सान दोनों ही सुरक्षित महसूस करें, एक दूसरे के लिए खतरा न बनें और साथ साथ रह सकें|

कोविड महामारी के दौरान कई लोगों ने सड़क के कुत्तों को नियमित तौर पर खाना देना शुरू किया| कई लोग अब भी रोजाना ऐसा करते हैं| वे किसी निश्चित जगह पर अपनी कार या स्कूटी रोकते हैं, किसी बड़े बर्तन से भोजन निकाल कर कुत्तों को देते हैं| उन्हें देखते ही बड़ी संख्या में कुत्ते इकठ्ठा हो जाते हैं| जहाँ कुत्तों को नियमित तौर पर भोजन मिले, उसे वे अपना इलाका मान लेते हैं| उस इलाके में कोई दूसरा जानवर या कभी कोई अजनबी इंसान भी जाता है तो वे अपने इलाके में इसे अनावश्यक अतिक्रमण मानते हैं और उस पर हमला बोल देते हैं| रिहायशी बंद कॉलोनी में भी कुत्तों के काटने की जो कई घटनाएँ होती हैं वे भी इसी कारण होती हैं क्योंकि उस सोसाइटी के कुत्ते अपनी जगह को बचाने के लिए आक्रामक हो जाते हैं| इसी तरह कचरे का सही प्रबंधन न होना भी कुत्तों के एक जगह इकठ्ठा होने का कारण है| जहाँ कचरा हमेशा रखा जाता है वहां कुत्तों के इकठ्ठा होने की संभावना अधिक है क्योंकि कचरे के ढेर में वे भोजन ढूंढते हैं| इस घटना का तकलीफदेह पहलू यह है कि कुत्तों के काटने की अधिकांश घटनाओं के शिकार छोटे बच्चे या वे गरीब होते हैं जिन्हें अपनी जीविका के लिए पैदल या साइकिल पर इधर-उधर घूमना पड़ता है| जिस देश में हर 100 लोगों पर एक आवारा कुत्ता हो, वहां यदि लोगों को रेबीज़ या कुत्ते के काटने का सामान्य इलाज न मिल पाए तो यह बात ज्यादा दुखदायी हो जाती है|

अभी जो परिस्थितियां हैं, उनमें सबसे सही उपाय यही है कि सड़क पर चलने वालों को सतर्क रहना चाहिए, और कुत्तों का झुण्ड दिखे तो अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए| ख़ास करके जो लोग तडके मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं, उन्हें ज्यादा सतर्कता की जरूरत है| साइकिल चलाने वालों को भी सजग रहना चाहिए और हो सके तो उन रास्तों से अलग ही हट जाना चाहिए जहाँ बड़ी संख्या में श्वान रहते हों| सरकारी नीतियों पर कब अमल होगा, कौन करेगा, इसका इंतज़ार और इस बारे में शिकायत करना अलग बात है| तब तक अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी को खुद ही लेनी पड़ेगी|

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