कुमार कृष्णन

2020 में भारत सरकार ने प्रो.रामजी सिंह को पद्मश्री से सम्मानित किए जाने की घोषणा की थी। 8 नवंबर 21 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने पद्म सम्मान से अलंकृत किया। उनका व्यक्तित्व सभी सम्मानों से सर्वोपरि है। गांधी विचार और सामाजिक साधना सर्वोदय से जुड़े रहने के कारण प्रो.रामजी सिंह की ख्याति पूरी दुनिया मे गांधी विचार के गुढ़ अध्येता, व्याख्याकार और इंनसाइक्‍लोपीडिया के रूप में है।

प्रो. रामजी सिंह प्रख्यात गांधीवादी चिंतक हैं,जिनकी ख्याति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है। जिन्हें देखकर गांधी-विनोबा के दर्शन का साक्षात्कार होता है। गांधी के चिंतन और दर्शन को साक्षात इन्होंने अपने जीवन में उतारा है। पूरा जीवन गांधी के विचारों के प्रति समर्पित रहा है। वे न सिर्फ गांधीवादी चिंतक हैं, बल्कि चिंतन को अपने जीवन में उतारा है। उनकी सरलता और सहजता अपना प्रभाव छोड़ती है।

गांधी विचार के गुढ़ अध्येता, व्याख्याकार और इनसाइक्‍लोपीडिया



लंबा दुबला—पतला, खद्दरधारी कंधे में झोला लटकाए, चाल में किसी युवा से भी अधिक फुर्तीला, भारत के हर कोने में गांधी समागम में दिख जाने वाला, युवकों के साथ धुलने—मिलने और निराभिमानी व्यक्तित्व के धनी प्रो. रामजी सिंह का यही परिचय है। बिहार के मुंगेर में एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर उन्होंने विद्वता के जिस शिखर को छुआ है, वह प्रेरणापुंज की तरह है। पटना विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर, जैन धर्म पर पीएचडी, राजनीति विज्ञान के अंतर्गत विचार में डी.लिट कर प्रो. सिंह हिन्द स्वराज पर यूजीसी के इमरीटस फेलो रह चुके हैं। उनके जीवन में सारस्वत साधना और सक्रिय सामाजिक प्रतिबद्धता का अद्भूत समन्वय रहा है। पचास से अधिक ग्रंथों का लेखन एवं संपादन के अलावा उनके हजारों लेख देश—विदेश में प्रकाशित हुए हैं। गांधी विचार और सामाजिक साधना सर्वोदय से जुड़े रहने के कारण उनकी ख्याति पूरी दुनिया में गांधी विचार के गुढ़ अध्येता, व्याख्याकार और इंनसाइक्‍लोपीडिया के रूप में है। शिक्षकों के नेता के रूप में उन्होंने अनवरत संघर्ष किया। कभी व्यवस्था से टकराना पड़ा तो कभी खुद से।

जब चुनाव लड़ा तो एक पैसा भी खर्च नहीं किया

बिहार विश्वविद्यालयों के शिक्षक महासंघ के संघर्षशील अध्यक्ष और आचार्यकुल के संस्थापक सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कीं। जब वे भागलपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक थे, उन्हीं दिनों विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय हुए। शिक्षकीय दायित्व का निर्वहन करते हुए वे गंगा नदी पर कर रात में भूदान के कार्य में लग जाते थे। अपनी जमीन भी उन्होंने भूदान में दान की। शैक्षिक प्रयोजन से उन्होंने दुनिया के बीस से अधिक देशों की यात्रा की है। वेल्स के स्वानसी में राष्ट्रमंडलीय कुलपति सम्मेलन के साथ—साथ राष्ट्रपिता गांधी के 125वीं वर्षगांठ पर इंगलैंड में बर्मिधम से लंदन की यात्रा और 1907 में स्थापित हवाई विश्वविद्यालय में आयोजित प्रची—प्रतीची दार्शनिक सम्मेलन में शिरकत की। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ—साथ 1974—75 के छात्र आंदोलन में भी उन्होंने शिरकत की। लगभग बीस माह तक मीसा एक्ट के अंतर्गत बंदी रहे। 1977 में भागलपुर से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। अपने अल्प कार्यकाल में जीवन में काम के अधिकार पर विधेयक लाया। आज़ादी के आंदोलन से निकले रामजी सिंह ने जब चुनाव लड़ा तो एक पैसा भी खर्च नहीं किया।

वो कहते हैं, “मैंने जब चुनाव लड़ा तो अपराधियों के गढ़ तक में गए, लेकिन कभी किसी ने चोट नहीं पहुंचाईं बल्कि वो हमसे डरते थे. अब तो ये सब कुछ सपने जैसा लगता है। आज मैं चुनाव लड़ना चाहूँ तो लोग मेरी जात पूछेंगें।”

अहिंसक के आंदोलनों में विनम्र सत्याग्रही

वोधगया भूमि मुक्ति आंदोलन सहित देशभर के अहिंसक के आंदोलनों में विनम्र सत्याग्रही की तरह सहभागी रहे हैं। विनम्रता और सिद्धांतों के प्रति दृढ़ता एक व्यक्ति में किस प्रकार संगठित होती है, यह प्रो.रामजी सिंह के व्यक्तित्व में देखने को मिलती है। गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के विचारों के प्रखर प्रवक्ता के रूप में पूरी दुनिया में इनकी ख्याति है। बिहार सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष के रूप में बिहार के विभिन्न जिलों में भूदान किसानों की बेदखली को लेकर लगातार सत्याग्रह आंदोलन चलाया। गांधी विचार में यकीन रखने वाले सांसदों को संगठित का प्रयास हो या फिर राज्य के 391 वुनियादी विद्यालयों को गांधी विचार के अनुरूप संगठित  करने का सवाल हो, वे लगातार सरकार के साथ संवाद कर रहे हैं। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के कुलपतित्व काल में जब गांधी विचार के अध्ययन—अध्यापन का प्रस्ताव रखा गया तो प्रो. सिंह ने उन्हें कार्यरूप दिया। परिणामस्वरूप 1980 में भागलपुर विश्वविद्यालय में गांधी विचार की पढ़ाई आरंभ हुई और वे इस विभाग के संस्थापक विभागाध्यक्ष हुए। गांधी विचार विभाग के संस्थापक अध्यक्ष रहे प्रो. रामजी सिंह ने अपनी पांच हजार किताबें और हस्तलिखित फुटनोट्स विभाग को दे दी है। इन किताबों में अधिकतर दर्शन और गांधी विचार से जुड़ी हैं। वहीं, हस्तलिखित फुटनोट्स उनके व्याख्यान से जुड़े हैं। ये फुटनोट्स सेमिनार और अन्य आयोजनों में भाषण के दौरान बनाए गए थे। गांधी विचार विभाग में इन किताबों को व्यवस्थित करके डॉ. रामजी सिंह पीठ स्थापित की गई है। उन्हें जैन भारती विश्वद्यालय के कुलपति होने का भी गौरव हासिल है।

1989 भागलपुर का भीषण दंगा हुआ तो गांव—गांव जाकर  शांति के लिए काम किया। साम्प्रदायिकता की ज्वाला शांत हुई। अंखफोड़वा कांड के समय भी न्याय का साथ दिया और इस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय में उठाया जिसके कारण पीड़ितों को इंसाफ मिला। भूदान किसानों की बेदखली के सवाल पर इनकी लड़ाई जारी है। विवेकानंद के शिकागो भाषण के शताब्दी वर्ष पर शिकागो में आयोजित विश्वधर्म संसद में उन्होंने तेरापंथी जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। जबकि दक्षिण अफ्रीका के धर्म सम्मेलन में संतमत के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। सर्व धर्म समभाव में इनकी अटूट आस्था है। वे बारह वर्षो तक अखिल भारतीय दर्शन परिषद के मंत्री तथा अध्यक्ष रहे। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय दर्शन सम्मेलन के वाइटन के प्रमुख वक्ता और शिकागो 1993 तथा केपटाउन 2009 के विश्वधर्म सम्मेलन के प्रमुख वक्ता रहे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 113 जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें सम्मानित कर बिहार को गौरवान्वित किया। रामजी सिंह को 2019 में मुंगेर में आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान से परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने भी सम्मानित किया है।

गांधी को समझना है तो उनका साहित्य पढ़े

उनका मानना है कि गांधी विचार धारा भारतीय संस्कृति और वाग्मय का नवनीत है। गांधीजी ने अहिंसा के रास्ते छोटे-छोटे आंदोलन से पहले देश की जनता का मानस तैयार किया और फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया। देश आज़ाद ज़रुर हो गया लेकिन गांधीजी जिन—जिन मुद्दों पर ज़ोर देते थे वह बरकरार है। गरीबी और बेकारी के साथ गैर बराबरी की समस्या दूर होने पर ही भारत सच्चे अर्थों में स्वाधीन होगा।  गांधीजी एक गुप्त प्रस्ताव लेकर पाकिस्तान जाना चाहते थे। उस प्रस्ताव में दोनों देशों में कभी भी युद्ध ना करने और अपने अपने देश के अल्पसंख्यकों की रक्षा करना राज्य का जिम्मा होने की बात थी लेकिन वो कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। वे कहते हैं कि गांधी को समझना है तो उनका साहित्य पढ़े ना कि सुनी-सुनाई बातों पर अपना मत बनाए। गांधीजी के पूरे दर्शन को समझने के लिए एक ही किताब पढ़ी जानी चाहिए और वो है हिंद स्वराज।

उन्होंने कहा कि गांधीजी को आज विज्ञान का विरोधी बताया जाता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। गांधीजी आत्मज्ञान एवं विज्ञान के समन्वय पर बल देते थे। उनका कहना था कि आत्मज्ञान के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना आत्मज्ञान पंगु है।  देश के सामने सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी एवं विषमता है। आज देश में आर्थिक विषमता की दर 27 प्रतिशत पहुंच चुकी है। जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति के पास इतनी दौलत है जो 27 व्यक्तियों के पास नहीं है। आज जनता के हित की राजनीति नहीं हो रही है। केवल राजनीतिक दलों के प्रमुखों के दिशा-निर्देशों पर ही राजनीति हो रही है। यदि जनता की आवाज सुनी जाती तो निर्णय जनमत से लिए जाते। आज राजनीति में नीति नहीं है, सिद्धान्तहीन राजनीति का कोई आधार नहीं है। आज की राजनीति को बदलना होगा, यह राजनीति अंग्रेजों से उधार ली गयी राजनीति है।

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