कमलेश सेन

लंबे बरस तक इंदौर के अखबार नईदुनिया में बेबाकी से काम करने वाले गुलाब जैन नहीं रहे। 24 फरवरी 2022 को अमेरिका में उन्‍होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ माह से बीमारी से जूझ रहे थै। वे 87 वर्ष के थे। 27 फरवरी को भारतीय समय अनुसार सुबह 5.30 बजे उनका अंतिम संस्‍कार अमेरिका में किया गया।

नईदुनिया के ज्ञान भंडार में मेरे साथी और कामकाज के गुरु श्री गुलाब जैन के सख्त मिजाज, उनकी कार्य प्रणाली और बेबाक व्‍यक्तित्‍व से उस दौर के सभी साथी वाकिफ थे। मुझे उनके साथ नईदुनिया में लगभग एक दशक तक काम करने का सौभाग्‍य मिला। वे अक्सर अपने परिचय में कहा करते थे कि ‘’मैं गुलाब जैन, जैसे गुलाब में कांटे होते है वैसे मेरे में भी कांटे है, पर मेरी खुशबू महका करती है।‘’ वास्तव में कामकाज के उतने ही शानदार इंसान थे। 1934 में खरगोन के लोनारा (निमाड़) में जन्मे गुलाब जी अक्सर कहा करते थे कि मेरा जन्म ‘लंदन’ में हुआ है, वे प्यार से ‘लोनारा’ को ‘लंदन’ कहा करते थे।

नईदुनिया की लायब्रेरी की तारीफ के पूल हिंदी पत्रकारिता जगत में बांधे जाते है, उसे सहेजने वाले साथियों में गुलाब जैन और अशोक जोशी अग्रणी थे। श्री दत्‍तात्रय सरमंडल जी की विरासत को सहेज कर आगे बढाने में गुलाबजी की ही सूझबूझ और दूरदृष्टि थी। सरमंडल जी ने गुलाब जी को प्राथमिक स्कूल में भी पढाया था और संयोगवश वे नईदुनिया की लाइब्रेरी में भी उनके कार्य के गुरु रहे।

दिल के साफ और नेक इन्सान थे

मितव्ययी जीवन शैली उनकी खासियत थी। खादी के प्रेस बंद कपडे और बगल में एक बैग उनकी ऑफिस आने की पहचान थी। वे कठोर बोलने वाले जरूर लगते थे, पर वास्तव में बहुत ही दिल के साफ और नेक इन्सान थे। वे बोलने के इतने सटीक थे कि उनकी बातों का कभी तोड़ नहीं होता था।

कस्‍तूरबा गांधी राष्‍ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट में पार्ट टाइम कार्य करने के लिए गुलाबजी तिलकपथ से नईदुनिया और फिर कस्तूरबाग्राम साइकिल से जाते थे। यह बात है – 1965 के दौर की।

गाँधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत, आजीवन खादी वरण की

तिलक पथ पर शैरलेकरजी के मकान में तलघर में एक कमरे और किचन में लम्बे समय तक रहने वाले गुलाबजी गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे। वे हमेशा खादी के कपडे ही पहना करते थे। उनके बडे भाईसाहब महेंद्रभाई के सान्निध्‍य में रहकर इंदौर में अध्‍ययन किया और गांधी-विनोबा विचार से जुडकर काम में सहयोग करना आंरभ किया था। सर्वोदय प्रेस सर्विस के शुरूआती दौर में भाईसाहब महेंद्रभाई के काम में सहयोगी रहे।   

गुलाबजी का निवास भले ही छोटा था पर इतना व्यवस्थित होता था कि प्रतिदिन के आने वाले समाचार पत्र भी तारीख के क्रम से जमे रहते थे। लैंडलाइन टेलीफोन भी हमेशा नयापन लिये ही दिखता था। घर की हर वस्तु व्यवस्थित रखी रहती थी। उनका निजी वाहन स्कूटर पुराना होने पर भी हमेशा चमकता रहता था। वे अपनी हर चीजों के प्रति बहुत ही सहनशील और सजग थे। उन्‍होंने घर पर ही एक छोटी से लायब्रेरी भी सजाकर रखी थी।

वे हर बात का जवाब इतने सलीके से देते थे कि उस बात का कोई जवाब ही नहीं होता था। उनकी बातें अक्सर कठोर होती थी पर वे नियम और व्यवस्था के पक्ष में होती थी। उनके सख्त तेवर की वजह से ही नईदुनिया की विशाल लाइब्रेरी सुरक्षित रह पाई। वे ऑफिस हमेशा 12 बजे बाद ही आते थे और 7 बजे तक नईदुनिया की लाइब्रेरी में कार्यरत रहते थे, वेवजह बात करना उन्हें पसंद नहीं था। वे लगातार बैठ पर कार्य करते रहते थे।

अनुशासन में काम करने और करवाने वाले इंसान

नईदुनिया की एक एक, ज़िम्मेदार ईंट खिसक रही है। जैन साहब हँसी मज़ाक के साथ घोर अनुशासन में काम करने और करवाने वाले इंसान थे।

ईदुनिया की समृद्ध लाइब्रेरी यदि उसके संस्थापकों का सपना थी, तो जैन साहब प्राणप्रण से उस सपने को साकार करने वाले समर्पित चीफ़ लाइब्रेरियन। उनकी दरियादिली, उनकी मेहनत, यहां तक कि उनका गुस्सा भी लाइब्रेरी की बेहतरी और सलामती की फिक्र के लिए होता था।

उनके साथ यादगार समय बिताया है। वही यादें । आज खामोश श्रद्धांजलि बन गई हैं। उन्हें हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सम्पूर्ण परिवार के लिए गहन संवेदना ।

कार्टूनिस्‍ट देवेंद्र शर्मा

उनके कामकाज के लोग भी तय रहते थे, स्कूटर कहा ठीक करवाना है, कपडे कहा सिलवाना है, चस्मा कहा बनवाना है, अदि अदि । काम के उनके मानक तय थे, वे उसी स्थान पर जाते थे। इन मापदंडों से वे काफी समझौता नहीं करते थे।

इंदौर के संवाद नगर में नया आशियाना लेने के बाद भी वे लम्बे समय तक तिलकपथ पर रहे। पत्नी सुमन भाभी और बेटे समर्पण के लावा वे किसी भी अन्य की कोई बात नहीं करते थे। बेटे की पढ़ाई को लेकर वे चिंतित रहते थे वहीं वे बेटे के स्वास्थ के प्रति भी काफी चिंतित रहते थे। वे होम्योपैथी में ही विश्वास रखते थे और प्रेमचंद जी घाटे साहब से ही इलाज करवाते थे। हर काम समय पर होना और समय के पाबंद रहने वाले इंसान थे। समय में लापरवाही वे बिलकुल भी बर्दास्त नहीं करते थे। उनकी सख्ती का आभामंडल ही जग जाहिर था। हमेशा ही इंक पेन से साफ और सुन्दर अक्षरों को लिखने वाले गुलाब जी की लिखावट इतनी साफ रहती थी कि मानो छपाई करवाई है।

वे लाइब्रेरी विज्ञानं के अध्ययन किये इंसान नहीं थे, पर लाइब्रेरी को सुसज्जित करने वाले व्‍यक्ति थे। स्व. राजेंद्र माथुर, अभय छजलानी, स्व. राहुलजी बारपुते, ड़ॉ. रणवीर सक्सेना, स्व. प्रभु जोशी, स्व. नरेंद्र तिवारी, बाबू जी लाभचंद जी छजलानी, नरेंद्र तिवारी, यशवंत व्‍यास और कई पत्रकारों के चहेते गुलाबजी लाइब्रेरी के प्रमुख थे। आपकी विषय चयन और संदर्भ सामग्री सहेजने की गजब की तकनीक थे, जिसे हर कोई सरलता से तलाश कर सकता था।

लाइब्रेरी में विषय अनुसार समाचार पत्रों से कतरने काटते रहते और उन्हें विषय अनुसार सहजेते रहने वाले गुलाब जी आज स्वयं भी कही खो गए। लोनारा में जन्मे और अमेरिका में अंतिम साँस लेने वाले गुलाब जी की यादें बस अब शेष है , उन्हें मेरा नमन।

(कमलेश सेन गुलाब जी के साथ एक दशक तक नईदुनिया लाइब्रेरी में कार्यरत रहे सहकर्मी ।)

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