हमारे यहां समाज, संस्‍कृति और श्रम की एक धुरी हस्‍तशिल्‍प भी रही है। इसीलिए आजादी के पहले और बाद में भी हथकरघा उत्‍पादन स्‍थानीय संसाधनों के उपयोग, निजी श्रम और आपसी लेन-देन की खातिर अहमियत पाते रहे हैं। अब...
‘सिविल सोसाइटी’ के बढ़ते ‘संस्थानीकरण’ के दौर में काम को ‘सुव्यवस्थित’ रूप से करने का चलन बढ़ा है। इसका अर्थ यह है कि ‘सिविल सोसाइटी’ अब एक सुरक्षित माहौल में काम करना चाहती है, पर दबे-कुचलों की आवाज़ उठाना...
सूर्य ग्रहण और चन्द्रग्रहण पर एक पिता का पुत्रवधू को लिखा एक खुला पत्र अभी हाल ही में पिछले माह 5 जून से 5 जुलाई 2020 के बीच तीन ग्रहण - एक सूर्य ग्रहण और दो चन्द्रग्रहण पडे। इन ग्रहणों...
दुनिया का सुनहरा भविष्य कहे जाने वाले तकरीबन 43 करोड़ बच्चे भारत में रहते हैं। जो भारत की कुल आबादी का एक तिहाई और दुनिया की कुल बच्चों का बीस फीसदी है। देश ने आज से पच्चीस बरस पहले...
अनिल त्रिवेदी बहत्तर साल के लोकतंत्र में भारत के नागरिकों में लोकतांत्रिक नागरिक संस्कार और नागरिक दायित्वों की समझ और प्रतिबध्दता का स्वरूप कैसा हैं? इस सवाल का उत्तर ही तय करेगा भारत के नागरिक अपने जीवनकाल में नागरिक दायित्व...
‘लॉक डाउन’ को देर-सबेर निपट जाने वाला संकट न मानते हुए इस दौर में कुछ अच्‍छी आदतें सीख लेना यूं तो कोई बुरा भी नहीं है, लेकिन रोजमर्रा की आम-फहम आदतों की तब्‍दीली कई बुनियादी सवालों की तरफ इशारा...
देशभर के वन विभागों की बुनियाद मानी जाने वाली ‘वैज्ञानिक वानिकी’ कई बार कितनी असमाजिक, अवैज्ञानिक साबित होती है, यह झारखंड राज्य के निर्माण की इस सच्ची कहानी से समझा जा सकता है। कैसे छोटा-नागपुर इलाके के संथाल, उरांव...
कोरोना के बाद विश्‍व को टिकाने का रास्ता प्रकृति अनुकूलन ही है। प्रकृति के विपरीत समाजवाद में भी पूंजी की परिभाषा अच्छी नहीं थी, इसलिए पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में ही प्राकृतिक आस्था नहीं है और प्राकृतिक संरक्षण सिमटा है। जब भी विश्‍व में प्रकृति के विपरीत ही सब काम होने लगे तो प्रकृति का बडा हुआ क्रोध महाविस्फोट बनता है और उससे प्राकृतिक आपदाएं निर्मित होती है। कोरोना को आपदा भी मान सकते है। महामारी केा प्रलय भी कहा जा सकता है। भारत इस महामारी से अपने परंपरागत ज्ञान आयुर्वेद द्वारा बहुत से कोरोना प्रभावितों को स्वस्थ बना सका है। बहुत लोगों के प्राण बचे है। इस आधुनिक आर्थिक तंत्र ने आयुर्वेद जैसी आरोग्य रक्षण पद्धति को सफल बनने का मौका ही नहीं दिया गया। उसने आर्थिक लाभ के लिए केवल चिकित्सा तंत्र को ही बढावा है।
कोरोना के प्रकोप ने हमारे सामने, भले ही परोक्ष रूप से, विकास की वैश्विक अवधारणा का एक बेहद जरूरी सवाल खडा कर दिया है। यानि विकास के नाम पर आज तक हम जो और जैसा करते रहे थे, वह...
कोरोना वायरस ने इन दिनों दुनियाभर में खलबली मचा दी है। अमीर-गरीब, ऊंचा-नीचा, काला-गोरा, गरज कि हर नस्‍ल और फितरत के इंसान को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है। इससे कैसे निपटा जाए? यह सभी को बार-बार...

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