3 दिसंबर : भोपाल गैस कांड की 36 वीं बरसी
दुनियाभर में सर्वाधिक भीषण मानी जाने वाली औद्योगिक त्रासदी को 36 साल हो गए है। इस त्रासदी में मारे गए हजारों निरपराधों, अब तक उसके प्रभावों को भुगत रहे लाखों...
भोपाल गैस कांड’ : 36 वां साल
‘भोपाल गैस कांड’ का यह 36 वां साल है, लेकिन लगता नहीं कि हम उससे कुछ जरूरी सीख ले पाए हैं। मसलन - अब भी तरह-तरह के नारे, नियम-कानून और मुहीमें पर्यावरण-प्रकृति के...
आंकडे बताते हैं कि कोविड-19 महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन में गंगा और यमुना सरीखी उसकी सहायक नदियां निर्मल हो गई थीं। इस भुलावे में रहकर कि महामारी के चलते गंगा साफ हो जायेगी, यह सवाल नागरिकों के...
इमारतों के निर्माण में रेत यानि सिलिका बहुत अहम भूमिका निभाती है, लेकिन क्या ‘जीडीपी’ में सर्वाधिक योगदान करने वाली इस गतिविधि को आम लोगों और उनके साथ पर्यावरण को उजाडने की छूट दी जा सकती है? इन दिनों...
रोजमर्रा के जीवन में उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक से बनी मामूली नली यानि स्ट्रा हमारे जीवन को कैसे प्रभावित कर सकती है? क्या कम वजन के कारण ‘री-साइकल’ नहीं हो पाने से स्ट्रा प्रदूषण में इजाफा भी करती...
तरह-तरह की योजनाओं, भारी-भरकम बजट और ढेर-सारे मानव व प्राकृतिक संसाधनों को लगाने के बावजूद पर्यावरण की सफाई का जो काम बरसों से नहीं हो पाया था, उसे ‘कोविड-19’ की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने सफलतापूर्वक कर दिया...
कई बार ‘फिसल’ पड़ने से भी ‘गंगा-स्नान’ हो जाता है। कुछ ऐसा ही डीजल की कीमतों के पैट्रोल की कीमतों से बराबरी करने से भी हुआ है। प्रदूषण के एक बडे कारण डीजल वाहन अब घटकर पैट्रोल वाहनों से...
सिर्फ सरकारों के भरोसे प्रकृति-पर्यावरण की रक्षा नहीं हो सकती, उसमें समाज को हाथ बंटाना पड़ता है। यह काम यदि किसी अच्छी, बरसों पुरानी सामाजिक परम्परा की मार्फत होने लगे तो जाहिर है, वे अधिक मजबूत और स्थायी होते...
मामूली आंधी-पानी में किसी भी आकार-प्रकार के शहरों के बाढ-ग्रस्त होने के अलावा तडा-तड गिरते पेड आजकल बडी समस्या बन गए हैं। हर बरसात में गाडी, मकान और इंसानों पर गिरे पेडों का दृश्य आजकल आम है। क्यों होता...
खगोलीकरण और जलवायु परिवर्तन का दौर हिमालयी समाजों तथा प्रकृति दोनों के लिए चुनौती और चेतावनी भरा है,ये खतरे हमारे जीवन संसाधनों उत्पादन और जीवन पद्वति के लिए घंटी बजा चुके हैं। ऐसे में इन सबके प्रभाव को सरकारों...