17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर विमर्श

भोपाल, 8 जून। 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर आज सेमिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों से आए शिक्षाविद, पर्यावरणविद और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विश्‍लेषणात्मक वक्तव्य दिए। ‘‘हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ विषय पर आजादी के 75वें साल में भारतीय संस्कृति की विविधता पर भी चर्चा की गई।

सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज ने कहा कि हर गांव तक प्राथमिक स्कूल की पहुंच हो गई है, भले ही वहां कैसी भी शिक्षा हो, लेकिन आज भी जरूरत के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थान नहीं है। शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण, समानता और समावेशीकरण के लक्ष्यों को पाया जा सकता है, लेकिन उच्च शिक्षा का क्रियात्‍मक हिस्‍सा दयनीय स्थिति में है। स्कूली शिक्षा में भी कक्षा कक्ष से भेदभाव हटाने के लिए हमें प्रोग्रेसिव स्कूल की जरूरत है, जहां भाषा, पहनावा, लिंग एवं रंग के आधार पर भेदभाव न हो।

पर्यावरण को बचाने के लिए बड़ी योजनाएं पर लगे पूर्ण प्रतिबंध

शिमला से आए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओ.पी. भूरेटा ने कहा कि हिमालयन जोन बहुत ही संवेदनशील है। हम वहां जो भी विकास की पहल कर रहे हैं, उसका पूरे पर्यावरण पर असर पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व तक के हिमालयन राज्यों में विकास की योजनाएं बनाते समय हमें यह देखना होगा कि इसका असर पूरे देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के पर्यावरण पर पड़ता है। आज जो भी आपदाएं आती हैं, वे प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव जनित आपदाएं हैं। हमें इस क्षेत्र में बड़ी योजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए और आपदाओं के प्रति लोगों में जागरूकता, वनीकरण एवं सही नीति के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

कृषि की निजी कंपनियां लूट रही है किसानों को

इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के चेयर प्रो. एन. रघुराम ने कहा कि कृषि क्षेत्र की विदेशी निजी कंपनियों एवं ईस्ट इंडिया कंपनी में कोई अंतर नहीं है। ये सारी कंपनियां किसानों को लूटकर यहां की पूंजी विदेश ले जा रही है। आज कृषि क्षेत्र के कई समझौते पूंजीवादी पूंजी को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, इसका किसानों को कोई फायदा नहीं है। आश्चर्यजनक बात यह है कि देश में आजादी के बाद उत्पादन बढ़ा है, लेकिन भूखमरी खत्म नहीं हुई। यह वितरण प्रणाली के असफल होने के कारण है।

ग्रामीण आजीविका के लिए गैर कृषि क्षेत्रों में बढ़ाने होंगे अवसर

कोरोना काल में आजीविका को लेकर देशव्यापी संकट आया था, जिसमें रिवर्स माइग्रेशन में गांव लौटे मजदूरों के लिए गांव में कोई आजीविका नहीं थी। कृषि में भी रोजगार सीमित है। इस मसले पर पर्यावरणविद् एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डी. रघुनंदन ने एक अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में गैर कृषि रोजगार यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ाने की जरूरत है ताकि टिकाऊ आजीविका की ओर हम बढ़ सकें।

कल 9 जून को पहले सत्र में सुबह 9 बजे से मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विकास पर सेमिनार आयोजित किया जाएगा। समापन सत्र सुबह 11:30 बजे से आयोजित हैं, जिसमें नाल्सर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के कुलपति एवं संविधान विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफा, शिक्षाविद प्रो. आर. रामानुजम, आयशर पुणे के वैज्ञानिक प्रो. सत्यजीत रथ, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मुख्य वक्ता होंगे।

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