स्वास्थ्य अधिकार कानून के लिए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय,स्वास्थ्य समूह की मांग

इंदौर, 4 अप्रैल। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े छ: राज्‍यों के स्‍वास्‍थ्‍य समूह संयोजकों ने संयुक्‍त रूप से जारी एक बयान में जनता के स्वास्थ्य के मुद्दे पर लाये गए स्वास्थ्य अधिकार कानून के लिए राजस्थान सरकार का स्वागत किया है। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े संगठनों का मानना कि राजस्थान सरकार द्वारा पारित स्वास्थ्य अधिकार कानून लोगों के स्वास्थ्य अधिकार को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह कानून मात्र स्वास्थ्य सेवा का अधिकार प्रदान करता हैं न कि स्वास्थ्य का, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए जरूरी अन्य सामाजिक – आर्थिक कारकों के संदर्भ में कोई बात नहीं करता हैं। सरकार ‘स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार’ के बजाए ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ सुनिश्चित करे।

दुर्भाग्य से कुछ मुद्दों पर पर्याप्त अस्पष्टता के चलते यह कानून लागू होते ही विवादों में घिर गया हैं। जरूरत है ऐसे तमाम मुद्दों पर सरकार ‘राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार कानून’ के प्रावधानों पर स्पष्टता  के लिए जल्द ही नियम बनाकर सभी हितधारकों को आश्वस्त करें कि यह कानून आमजन के स्वास्थ्य अधिकार की रक्षा करने के लिए बनाया गया न कि किसी वर्ग विशेष या संस्थानों की गैर जरूरी उपयोग या उन्‍हें मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए बाध्य करेगा।

प्रदेश के  चिकित्सकों द्वारा  राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानून को वापस लेने के लिए विरोध जताया जा रहा हैं, उनका मुख्य मुद्दा आपातकालीन परिस्थितियों में सेवाएँ प्रदान करने के प्रावधान को हटाने से जुडा है, जबकि स्वास्थ्य बिल में 95% सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को जवाबदेह बनाने पर ज़ोर दिया गया है। निजी अस्पतालों और चिकित्सकों की भी जिम्मेदारियाँ लोगों को गुणवत्ता आधारित स्वास्थ्य सेवा न्यूनतम शुल्क लेकर उपलब्ध कराने की है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ बिना पूर्व भुगतान लिए उपलब्ध कराना सबकी जिम्मेदारी है। 

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, स्वास्थ्य समूह द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह स्वास्थ्य अधिकार कानून पूरी पारदर्शिता और सहभागिता के साथ राजस्थान सरकार द्वारा तैयार किया गया था। साथ महत्वपूर्ण तथ्य यह भी हैं कि इस कानून के प्रमुख हितधारकों जैसे निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ भी उनकी चिंताओं के मुद्दों को सरकार ने पूरी तरह से सुना और प्रस्तावित कानून में बदलाव भी किए हैं।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ऐसे ही कुछ मुद्दों पर कानून के  प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए संशोधन की मांग करता हैं। मांग की गई है कि यह कानून राजस्थान के नागरिकों को आपातकालीन परिस्थितियों में बिना किसी पूर्व भुगतान के स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। यहाँ अपतकालीन परिस्थितियों को स्पष्टता के साथ परिभाषित करने की जरूरत हैं। साथ ही  मस्तिष्क, फेफड़े, यकृत, आदि को संभावित क्षति के कारण गंभीर आपात स्थिति में रोगी को स्थिर करने में अधिकांश क्लीनिकों और छोटे अस्पतालों की अक्षमता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

स्‍वास्‍थ्‍य समूह ने यह भी मांग की कि निजी स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने पर उनके खर्च की प्रतिपूर्ति समय पर और पारदर्शिता के साथ होना चाहिए। स्वास्थ्य अधिकार कानून को पूरी पारदर्शिता के साथ पूर्ण रूप से लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनो का प्रावधान किया जाना चाहिए। कानून के अंतर्गत विभिन्न शिकायत निवारण तंत्रों का उल्लेख किया गया हैं,इन शिकायत निवारण तंत्रों में शासकीय प्रतिनिधियों, चिकित्सकों के साथ ही राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक संस्थाओं का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित होना चाहिए।

इस अधिनियम को लागू करने के लिए सरकार निजी हॉस्पिटल के दवाब में आए बिना जिन हॉस्पिटल को सरकारी रियायतें दे रखी हैं बाजार मूल्य वसूल करने के स्पष्‍ट संकेत देकर अनावश्यक दवाब व मरीजों की परेशानियों को दूर करने पर जोर दिया जाना चाहिए। स्वास्थ्य बजट में पर्याप्त वृद्धि करने के साथ-साथ सभी स्तरों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सर्वांगीण सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिए।

स्‍वास्‍थ्‍य समूह के संयोजक सुहास कोल्हेकर (महाराष्ट्र) व अमूल्य निधि (मध्‍यप्रदेश) ने कहा कि हाल ही में आंदोलनरत चिकित्सकों और सरकार के बीच समझौता में सरकार ने सरकारी सहायता न लेने वाले अस्पतालों को स्वास्थ्य अधिकार कानून से बाहर करने का आश्वासन दिया हैं। स्‍वास्‍थ्‍य समूह की मांग है कि आपातकालीन परिस्थितियों में सभी अस्पतालों को ये सेवाएँ उपलब्‍ध कराई जानी चाहिए, इसलिए ऐसे अस्पतालों में भी आपातकालीन सेवाओं का प्रावधान कानून के अनुसार होना चाहिए। साथ ही निजी क्षेत्र के अस्पतालों, क्लीनिक्स द्वारा दी जा रही सेवाओं की गुणवत्ता, मानक और शुल्क तय होना चाहिए, इनके संस्थानो की निगरानी का प्रावधान होना चाहिए। इसलिए प्रदेश केंद्र सरकार द्वारा 2010 में पारित किए गए क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को भी लागू करना चाहिए। 

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, स्‍वास्‍थ्‍य समूह के जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, स्वास्थ्य समूह के कैलाश, मीणा (राजस्थान),अनील गोस्वामी, बसंत (हरियाणा),सुहास कोल्हेकर (महाराष्ट्र),अमूल्य निधि,राजकुमार सिन्हा,राकेश चांदौरे (मध्यप्रदेश),सुरेश राठोर(उत्तरप्रदेश),पूजा कुमारी,मुदिता विद्रोही (गुजरात),मधुरेश कुमार (दिल्ली), महेंद्र यादव (बिहार), आशीष रंजन,प्रफुल्ल सामंतरा (ओड़ीशा) ने राजस्थान सरकार से मांग की है कि जनता के हित में लाये गए इस स्वास्थ्य अधिकार कानून में सुझाए गए मुद्दों को शामिल करते हुए शीघ्र लागू करना चाहिए। झूठे और भ्रामक प्रचार के विरुद्ध मजबूत रणनीति के साथ कानून के सही प्रावधानों को जनता के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए जिससे कि देश प्रदेश की जनता इन तथाकथित निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की सच्चाई जान सके।

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