योगेश कुमार गोयल

मौजूदा दौर में इंसानों की पहचान का एक बेहद जरूरी संकेत उसका उपभोक्ता होना है। यानि आप कभी भी, कुछ भी, कहीं भी कर रहे हों, लेकिन अंतत: आप एक उपभोक्ता जरूर होते हैं। ऐसे में हम अपनी यह भूमिका सही तरीके से कैसे निभाएं?

सरकार उपभोक्ताओं से सदैव अपील करती है कि आप जब भी कोई सामान खरीदें तो सरकारी मानकों को पूरा करने वाले उत्पाद ही खरीदें, ताकि गुणवत्ता और सुरक्षा के मामले में धोखा नहीं खा सकें। उपभोक्ता अधिकारों, अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों में पूछताछ और जांच करने के लिए पुराने उपभोक्ता कानून में व्यापक बदलाव करते हुए उपभोक्ताओं के हित में उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ सरकार द्वारा एक सलाहकार निकाय के रूप में ‘केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण’ (सीसीपीए) की स्थापना की गई थी।

‘सीसीपीए’ उपभोक्ता हितों की रक्षा करने वाली एक वैधानिक संस्था है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, उनकी रक्षा करना और उन्हें लागू करना है। इसका गठन ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019’ के तहत 2020 में किया गया था। संस्था का कार्य कम्पनियों द्वारा भ्रामक विज्ञापनों और जनता को बेचे जा रहे उत्पादों पर किसी भी गलत जानकारी की पहचान करना है और यह उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन तथा अनुचित व्यापार प्रथाओं पर नजर रखने के लिए भी जिम्मेदार है।

उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए 24 दिसम्बर 1986 को भारत में ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986’ लागू किया गया था। कई वर्षों से भारत में प्रतिवर्ष इसी दिन ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस’ मनाया जा रहा है। चूंकि ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ लागू होने के बावजूद उपभोक्ताओं के शोषण का सिलसिला थमा नहीं, इसीलिए उपभोक्ता अधिकारों को मजबूती प्रदान करने के लिए निरन्तर मांग उठती रही और लंबी जद्दोजहद के बाद 20 जुलाई 2020 को देश में ‘उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019’ (कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019) लागू किया गया।

ग्राहकों के साथ आए दिन होने वाली धोखाधड़ी और किसी भी प्रकार की ठगी को रोकने के लिए इसमें कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए। कानून में खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करने वाली कम्पनियों और भ्रामक विज्ञापनों पर निर्माता तथा सेलिब्रिटी पर जुर्माने और सख्त सजा जैसे प्रावधान जोड़े गए, जिनके मुताबिक कम्पनी अपने जिस उत्पाद का प्रचार कर रही है, वह वास्तव में उसी गुणवत्ता वाला है या नहीं, इसकी जवाबदेही सेलिब्रिटी की भी होगी। विज्ञापन में किए गए दावे झूठे पाए गए तो उस पर भी कार्रवाई हो सकती है। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर ‘सीसीपीए’ को अधिकार दिया गया है कि वह जिम्मेदार व्यक्तियों को 2 से 5 वर्ष की सजा के साथ कम्पनी पर दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सके। बड़े और ज्यादा गंभीर मामलों में जुर्माने की राशि 50 लाख रुपये तक भी संभव है।

तेजी से पांव पसारते ऑनलाइन कारोबार को पहली बार उपभोक्ता कानून के दायरे में लाया गया है। किसी भी उपभोक्ता की शिकायत मिलने पर अब ई-कॉमर्स कम्पनी को 48 घंटे के भीतर उस शिकायत को स्वीकार करना होगा और एक महीने के भीतर उसका निवारण भी करना होगा। यदि कोई ई-कॉमर्स कम्पनी ऐसा नहीं करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह नियम उन कम्पनियों पर भी लागू है, जो भले ही विदेशों में पंजीकृत हों लेकिन भारतीय ग्राहकों को सामान और सेवाएं दे रही हों।

ई-कॉमर्स नियमों के तहत ई-रिटेलर्स के लिए मूल्य, समाप्ति तिथि,रिटर्न,रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी-गारंटी, वितरण और शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीकों के बारे में विवरण प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है। ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (ई-कॉमर्स) नियमावली-2020’ में स्पष्ट व्यवस्था है कि ई-वाणिज्य मंच का परिचालन करने वाली प्रत्येक कम्पनी को अपने उपभोक्ताओं के लिए मंच से जुड़े सामान विक्रेताओं द्वारा नियम-6 के उपनियम-5 के तहत प्राप्त सभी सूचनाओं को प्रमुख स्थान पर दर्शाने की व्यवस्था की जाए। इन नियमों के तहत सरकार द्वारा ई-कॉमर्स मंचों के लिए भारत में ‘शिकायत निवारण अधिकारी’ की नियुक्ति किया जाना अनिवार्य है।

‘उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019’ लागू होने के बाद ई-कॉमर्स कम्पनियों के खिलाफ सामान की गुणवत्ता, डिलीवरी में देरी, सामान बदलने में देरी इत्यादि को लेकर शिकायतों का अंबार लगा है। उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीओसीए) द्वारा ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन’ (एनसीएच) को नया रूप दिए जाने के बाद उपभोक्ताओं की शिकायतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन’ (एनसीएच) में उपभोक्ताओं की तरफ से उत्पाद को लेकर की जाने वाली शिकायतों में पिछले कुछ वर्षों से ई-कॉमर्स ही शीर्ष पर है, जिसकी एक तिहाई शिकायतें पहुंचती हैं। इसके बाद शीर्ष पांच में दूसरे नंबर पर बैंकिंग, तीसरे पर टेलिकॉम, चौथे पर इलैक्ट्रॉनिक्स उत्पाद तथा पांचवें पर डीटीएच सेवा व डिजिटल पेमेंट मोड हैं।

आंकड़े देखें तो उपभोक्ताओं की शिकायतों की संख्या बढ़ रही है। ‘एनसीएच’ में प्रतिमाह करीब 90 हजार शिकायतें दर्ज की जाती हैं। वित्त वर्ष 2021-22 में ‘एनसीएच’ को 744625 शिकायतें प्राप्त हुई थीं, जबकि 2022-23 में शिकायतों की संख्या 1005985 रहीं। 2021-22 के मुकाबले यह ढ़ाई लाख से भी ज्यादा रहीं। ‘डीओसीए’ के मुताबिक नवम्बर 2021में ‘एनसीएच’ को प्राप्त कॉल की संख्या 60806 थी, जो नवम्बर 2022 में तेजी से बढ़कर 90973 हो गई और नवम्बर 2023 में ऐसी कॉल की संख्या 132209 दर्ज की गई। इन शिकायतों में शीर्ष 10 राज्यों में महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, बिहार और मध्यप्रदेश शामिल हैं।

नया उपभोक्ता कानून लागू होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि यह जहां देश के उपभोक्ताओं को और ज्यादा ताकतवर बनाएगा, वहीं इसके तहत उपभोक्ता विवादों को समय पर, प्रभावी एवं त्वरित गति से सुलझाने में भी मदद मिलेगी। दरअसल कई अन्य देशों की तुलना में भारत में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता अपेक्षित रूप से पहले ही काफी कम है, इसलिए सरकार द्वारा इस मामले में यह ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है कि उपभोक्ता संरक्षण आयोगों तथा ट्रिब्यूनलों में पद खाली न पड़े रहें और उपभोक्ताओं की शिकायतों पर यथाशीघ्र सुनवाई करते हुए उनका तेजी से निपटारा हो, तभी उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय का सपना पूरा हो सकेगा।

दरअसल मामलों की सुनवाई में विलम्ब और फैसलों में अनावश्यक लंबी देरी से उपभोक्ताओं का हतोत्साहित होना स्वाभाविक है और इससे जहां उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान होता है, वहीं बहुत से उपभोक्ता न्याय प्रक्रिया को लंबी और उबाऊ मानकर अपने हितों के लिए आवाज उठाने में संकोच करते हैं। त्रुटिरहित न्याय प्रदान करने, आमजन में विश्वास बढ़ाने और उपभोक्ताओं की जागरूकता वृद्धि करने हेतु जरूरी है कि उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की किसी भी रूप में अनदेखी न हो। (सप्रेस)

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