बाबा मायाराम

पक्षियों और आसपास के जीव-जन्तुओं को जानना-समझना इंसानी वजूद के लिए बेहद उपयोगी होता है, लेकिन आजकल की आपाधापी में हम इसे भूलते जा रहे हैं। पक्षियों से कैसे दोस्ती बनाए रखी जा सकती है? पक्षी-प्रेमी डॉ. लोकेश तमगीरे से बातचीत के आधार पर बता रहे हैं,बाबा मायाराम।

“जंगल, पहाड़, नदी, पोखर, झीलों और पेड़-पौधों की हरियाली मनुष्य को अपनी ओर सदैव आकर्षित करती रही है। जब भी कोई तनाव और उदासी होती है, मनुष्य प्रकृति की ओर खिंचा चला जाता है। प्रकृति को निहारना, पक्षियों को देखना, उनकी आवाजें सुनना भी बहुत सुकून देता है। यह बच्चों के साथ बड़ों को भी सिखाता है, संवेदनशील बनाता है।” यह कहना है नागपुर के पक्षी प्रेमी डॉ. लोकेश तमगीरे का।

लोकेश तमगीरे बतलाते हैं कि कुछ साल पहले जब वे छत्तीसगढ़ में ‘जन स्वास्थ्य सहयोग’ संस्था में कार्यरत थे, तब से जंगल में घूमना, परिवेश से जुड़ना, पक्षी देखना शुरू हुआ। यह संस्था स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती है और उसके उपकेन्द्र ‘अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य’ के पास शिवतराई व बम्हनी गांवों में हैं। इन गांवों का रास्ता जंगल के बीच से होकर गुजरता है। बम्हनी जाते समय मनियारी नदी भी कल-कल बहती है। बिलासपुर जिले के ‘अचानकमार अभयारण्य’ में घना जंगल तो है ही, रंग-बिरंगे पक्षी भी बहुत हैं।

वे आगे बतलाते हैं कि इसके बाद महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में ‘लोक बिरादरी प्रकल्प, हेमलकसा’ में काम किया। यह संस्था प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रकाश आमटे व उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे की है और स्वास्थ्य के अलावा सामाजिक क्षेत्र के कई काम करती है। तमगीरे बताते हैं कि एक दिन जंगल में साइकिल से घूमते-घामते अचानक पीले रंग का पक्षी देखा। इसे अंग्रेजी में ‘गोल्डन ओरिएल’ (पीलक) कहते हैं। यह बहुत ही आकर्षक व सुंदर था। इससे उनकी पक्षी देखने में दिलचस्पी बढ़ी। रोज़ सुबह-शाम सैर करना, साइकिल और कैमरा लेकर निकल पड़ना, फोटो खींचना और पक्षियों की पहचान करना – यह सब दिनचर्या का हिस्सा बन गया।

लोकेश बतलाते हैं कि ‘लोक बिरादरी प्रकल्प’ के स्कूल के विद्यार्थियों व संस्था के कार्यकर्ताओं को उन्होंने पक्षियों के बारे में बताना शुरू किया। डॉ. प्रकाश आमटे के साथ भी कई पक्षी देखे और प्रकृति, परिवेश व पर्यावरण के बारे में उनसे चर्चाएं कीं। वे हेमलकसा में करीब दो साल रहे। इस दौरान वहां पक्षियों के बारे में 4-5 वीडियो बनाए, जिसे काफी सराहा गया। वर्ष 2018 से यू-ट्यूब पर वीडियो डालना शुरू किया। इस बीच 94-95 पक्षियों की पहचान कर ली। जंगल में पक्षियों को कोई नुकसान न पहुंचाए, इस बारे में समुदाय के साथ चर्चा होती रहती थी। वहां के आदिवासी समुदाय का प्रकृति प्रेम भी प्रेरणा का स्रोत बना।

वर्ष 2019 में सेवाग्राम (वर्धा) आ गए। यह गांधीजी की कर्मस्थली है। गांधी के विचारों से प्रेरणा मिली। इस पहल में प्रकृति, पर्यावरण व जैव-विविधता का संरक्षण भी जुड़ गया। इस बीच कोविड-19 आ गया और देशव्यापी तालाबंदी हो गई। इस दौरान ‘भारत के बर्डमैन’ विख्यात पक्षी-विज्ञानी सालिम अली की किताबें पढ़ीं। यहां व्यवस्थित तरीके से वीडियो बनाना शुरू किया। सेवाग्राम में मेडिकल कॉलेज के पीछे आरोग्य धाम परिसर, डॉक्टर कालोनी, एमआईडीसी एरिया और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में पक्षियों के फोटो व वीडियो बनाना शुरू किया। इस बीच तकरीबन 97 पक्षी देखे।

डॉ. लोकेश तमगीरे वर्ष 2021 में ‘नागपुर-एम्स’ (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस) में आ गए और ‘सामुदायिक आरोग्य विभाग’ के साथ जुड़कर आदिवासी बहुल क्षेत्र में काम करने लगे। ‘एम्स’ के पास मिहान क्षेत्र, तालाबों के किनारे, सड़क किनारे, अंबाझिरी पार्क, जैव-विविधता उद्यान, दहेगांव तालाब, गोरवाड़ा जैव-विविधता उद्यान, महाराजा बाग, रामटेक के पेंच के जंगल इत्यादि कई स्थानों पर पक्षियों को देखना और उन्हें पहचानना जारी रहा।

इस दौरान पक्षियों के व्यवहार, प्राकृतिक पक्षी आवास का अध्ययन किया। वे कैसे रहते हैं, पानी वाले, घास वाले, पलायन वाले, घने जंगलों में रहने वाले, नदी किनारे, शहरी क्षेत्रों में रहने वाले, मौसमी पक्षी इत्यादि का भी अध्ययन किया। जलीय व स्थलीय दोनों तरह के पक्षियों को देखा। इसके साथ, प्रजनन, रंग इत्यादि के बारे में भी जानकारी एकत्र की। पक्षी ज्ञान बेहतर बनाया। यहां करीब 40-50 वीडियो बनाए और अब तक 150 वीडियो बना लिए हैं। 50 पक्षियों की आवाजों के साथ वीडियो बनाए हैं।

डॉ. लोकेश तमगीरे वनविभाग द्वारा पक्षियों की गणना में भी शामिल हो चुके हैं। महाराष्ट्र के ‘पेंच टाईगर रिजर्व’ में दो बार पक्षी गणना, ‘मेलघाट टाईगर रिजर्व’ में पक्षी गणना, एशियन वाटर बर्ड सर्वे, ‘अचानकमार टाईगर रिजर्व,’ निसर्गानुभव (बुद्ध पूर्णिमा) इत्यादि में भागीदारी की है। इन सभी पक्षी गणनाओं के भी वीडियो बनाए हैं जिसकी सराहना वनविभाग ने की है। अब वे पक्षियों के प्रति जागरुकता लाने के लिए काम कर रहे हैं। स्कूली बच्चों से लेकर समुदाय में जागरुकता लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। सोशल मीडिया, विशेषकर यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से लगातार सक्रिय हैं।

पक्षी भी हमारी तरह प्रकृति का हिस्सा हैं, लेकिन इन दिनों वे संकट में हैं। जलवायु बदलाव से गर्मी ज्यादा बढ़ गई है, जिसे वे सहन नहीं कर पाते। शहरीकरण व औद्योगिकीकरण के कारण उनके प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं। पेड़-पौधे भी अब बहुत कम हो गए हैं। इसलिए भी उनके संरक्षण की जरूरत है। पक्षी परागीकरण में, खाद्य श्रृंखला में, फसलों के कीट नियंत्रण में बहुत उपयोगी हैं। जंगल को बढ़ाने के लिए भी पक्षियों का योगदान है। कई पेड़ों के बीज पक्षी खाते हैं और उनकी विष्ठा के माध्यम से ये बीज मिट्टी में मिल जाते हैं, जब नमी मिलती है, तब अंकुरित हो जाते हैं। इस तरह नया पेड़ बनता है। पक्षियों की विष्ठा खेतों को उर्वर बनाती है। कौआ, चील और गिद्ध अच्छे सफाईकर्मी की तरह काम करते हैं।

पंछियों की आवाज, पक्षी संगीत स्पष्ट रूप से किसी भी व्यक्ति की मनोदशा, मानसिक स्वास्थ्य और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। कई जगह देखा गया है कि इससे तनाव, चिंता और अवसाद काफी हद तक कम होता है। इस कारण आजकल मानसिक स्वास्थ्य के लिए ‘बर्डस साऊंड थैरेपी’ का इस्तेमाल किया जा रहा है। चातक जैसे प्रवासी पक्षियों से मौसम का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। उनके घोंसलों को देखकर वर्षा का अनुमान लगाया जाता है।

कुल मिलाकर, पक्षी अवलोकन कई तरह से उपयोगी है। परिवेश व पर्यावरण के प्रति जागरुकता तो इससे बढ़ती ही है, पक्षी प्रेम और उनके प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ती है। इससे जैव-विविधता व पर्यावरण का संरक्षण तो होता है, टिकाऊ विकास का नजरिया भी मजबूत होता है। मानसिक स्वास्थ्य में भी पक्षी संगीत मददगार है। विशेषकर, जलवायु बदलाव के दौर में यह पहल बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। जब गर्मी पड़ने के कारण पक्षियों का जीवन संकट में है, पीने के लिए पानी का अभाव है, तब पक्षियों के प्रति जागरुकता सार्थक व उपयोगी है। (सप्रेस)

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