अरुण डिके

समाज विज्ञानी और शिक्षा के कार्य में जुटे अंनत गंगोला का युवा बेटा अंबर पिछले दिनों इस दुनिया से अपना रिश्ता निभाकर किसी और यात्रा पर निकल गया। अंबर का जीवन खुशियां और प्रेम से भरपूर था, वहीं ऊष्मा,ऊर्जा और उमंग से भी भरपूर। अंबर की स्‍मृति के साथ अनंत गंगोला के शिक्षा रचनाकर्म को रेखांकित करता ये आलेख।

ओबैदुल्लागंज-भोपाल से नागपुर मार्ग पर कोई 40-45 किलोमीटर पर बसा हुआ कस्बई शहर। रविवार दिनांक 17 अप्रैल 2022  के दिन दोपहर ठीक ढाई बजे मैं जनपद पंचायत के हॉल में पहुँच जाता हूँ। अपने साथियों के साथ उदास बैठे अनंत ने मुझे देखा और वह मेरे पास आये। मैंने उसे गले लगाया और रो रोकर लाल हुई उसकी आँखों में झांककर मैंने कहा ‘अनंत मैं तुम्हारे साथ हूँ।‘

Ambar Gangola

हॉल धीरे – धीरे गंगोला परिवार के सदस्यों मित्रों और परिचितों से भर रहा था। स्क्रीन पर अनंत और सुषमा के सुंदर होनहार लेकिन खोए हुए बेटे अंबर की गाना गाते, योग करते अपने दोस्तों के साथ धिंगामस्ती करती हुई तस्वीरें दिखाई जा रही थी। बस अब यही तो शेष बचा था, अनंत सुषमा और अंबर की छोटी प्यारी बहन अवनी के लिये- अनंतयात्रा में विलीन हुए अंबर की यादें।

कौन है अनंत गंगोला? मेरा क्या रिश्ता है उससे जो अप्रैल की चिलचिलाती धूप में इंदौर से मुझे यहॉं खींच लाया? मेरी बड़ी बेटी कल्याणी और दामाद अमन मदान होशंगाबाद के अनूठी शैक्षणिक संस्था एकलव्य में थे और उनका बाद में मित्र बना अनंत।

कुछ साल पहले इंदौर अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के प्रमुख अनुराग बेहार के साथ अनंत इंदौर आया था। शिक्षण पर बस 15 मिनट उसका उद्बोधन सुन मैं समझ गया कि यह बंदा शिक्षकों की बिरली जमात का है। बच्‍चों के भविष्य का संज्ञान लेनेवाला !

एक दिन मैंने बातों बातों में कल्याणी को बताया तो उसने कहा कि अपने पिता और मित्रों के आग्रह पर अनंत ने शिक्षण पर अपने अनूठे प्रयोगों पर एक किताब लिखी है जो एकलव्य ने प्रकाशित की है। मैं आपको भेजती हूँ।

अनूठी शिक्षण और शिक्षक का लेखा जोखा

यह है वह किताब जिसे बिटवीन द लाईन पढ़कर मैंने मेरी छोटी सी दुनिया में अनंत को शामिल कर लिया। यह किताब एकलव्य की खोज में घूमते गुरु द्रोणाचार्य की कह सकते हैं आप। बताइये,के न्द्रीय शासन के उच्च अधिकारी का बेटा होशंगाबाद में पढ़ा लिखा 24 साल की उम्र में दिल्ली में समाजशास्त्र में एम फिल क्या करता है, आगरा में वृक्ष पुरुष चंडिकाप्रसाद भट्ट के शिष्यत्व में पी एच डी के लिये चयनित क्या होता है, किसी काम से भोपाल आते हुए एक वन संरक्षक के आग्रह पर रायसेन जिले के अत्यंत दुर्गम आदिवासी गॉंव में जाता क्या है और पूरा एक दशक वहॉ रुक क्या जाता है? सब अनोखा अद्भुत। किसी ने सच कहा है कि सत्य कल्पनाओं से भी ज्यादा विस्मयकारी होता है।

क्या मात्र उस दुर्गम निसर्ग प्रचूर नीलगढ गॉंव की टूटी- फूटी चिथड़ों में रह रही गॉंव की आबादी ने अनंत को इसलिए मोह लिया था कि जहॉं न सड़क है न बिजली है न स्कूल है न प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र लेकिन वहॉं की गरीबी में जी रहा गॉंव का मुखिया रमा दाऊ फिर भी हंसकर कहता है कि सब मजेदारी है साब हम तो जी लिए बस हमारे बच्चों को कोई पढाने वाला मिल जाए? अनंत ने शायद कुछ सोचकर ही कहा होगा कि ठीक है। पड़ोस के गॉंव की अपनी मित्र सुषमा के माध्यम से अनंत ने कोशिश भी की कि कोई मास्टर मिल जाए। जब कोई भी राजी न हुआ तो पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए अनंत वहीं रुक गया।

नीलगढ में न कमरा है न ब्लैक बोर्ड न पाठ्यक्रम न किताब न स्लेट लेकिन इन सबसे ताकतवर थी अनंत की कुछ कर गुजरने की चाह और अदम्य उत्साह।

खैर,गाय का गोठा साफ कर स्कूल(या अ-स्कूल?) के लिये जमीन तैयार की गई। हर दिन हर घरवाला मास्टरजी के लिये खाना लाएगा। बस यही मेहनताना। अपनी सहेली के माध्यम से अनंत पेन पेंसिल कुछ जरुरी किताबें जुटाता है। सबसे पहले खुले मैदान में एक गोल घेरा बनाकर बच्चों से संवाद साधता है। धीरे धीरे पढाई प्रारंभ होती है गति भी पकडती है। सभी प्रकार की विषमताओॅ का अनंत डटकर मुकाबला भी करता है। लेकिन बगैर किसी औपचारिक प्रशासनिक मान्यताओं के किसी सिरफिरे नवयुवक का यह असाधारण कार्य प्रशासन में यह भी तो शंका पैदा करता ही होगा कि यह कोई नक्सलवादी  तो नहीं है?

लिहाजा सडक पर अकेले देख पुलिस पकडकर थाने में ले जाती है। थानेदार की न सुनने न लिखने लायक भाषा सुन अनंत बोल पडता है कि अब मैं आपके किसी भी प्रश्न का जबाब नहीं दूंगा आप जो चाहे कर लीजिये।सच है जहॉं इतना आत्मबल होता है वहॉ वह चक्रधारी, द्रौपदी की निर्वस्त्रता बचाने पहुँच ही जाता है। नम्र पड़े थानेदार को अनंत कहता है कि मुझे बड़े अफसर से मिलवाइये और जब पुलिस विभाग के एस डी ओ के पास अनंत को ले जाते हैं तो वह निकलता है अनंत का दोस्त। बाकी कुछ बताने की जरुरत नहीं है।

Anant Gangola

अनंत के लिये वह मौका भी आया कि वन संरक्षक की कुटिया में अनंत रात सोया हुआ, शेर ने आकर दरवाजा भी खटखटाया लेकिन बाहर खड़ी गाय को मारकर वह रवाना भी हो गया।

पूरे दस साल रहकर अनंत ने नीलगढ़ के अंधेरे में साक्षरता की वह रोशनी जलाई कि वहॉं के नौजवान अपने पैरों पर खड़े हो गए। फिर उत्तराखंड, मध्यप्रदेश बिहार और छत्तीसगढ़ के कईं इलाक़ों में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के माध्‍यम से अनंत ने प्राथमिक शिक्षा का प्रसार किया।

हॉल अब पूरा भर चुका  लोग खड़े – खड़े अंबर के चित्र स्क्रीन पर देख रहे थे। इतने में रोती बिलखती सुषमाजी ने हॉल में प्रवेश किया और पूरा हॉल निस्तब्ध हो गया। सभी महिलाएँ बारी-बारी से सुषमाजी से लिपटकर रो रोकर उन्हें ढाढ़स बंधा रही थी। अंबर के सहपाठी, नीलगढ़ के अनंत के छात्र, उनके अभिभावक अपने अपने शब्दों में अंबर को श्रद्धांजलि दे रहे थे। अनंत और सुषमाजी को मिली अभूतपूर्व संवेदनाएँ बता रही थी कि दोनों ने कितनी निःस्वार्थ बुद्धि से शिक्षक पद को गौरवान्वित किया है। अनंत और सुषमाजी के काँपते हाथ मेरे काँपते हाथों में लेकर मैं बिदा हो गया।

रास्ते में आते आते सोच में डूब गया कि राजमार्ग छोड़ पगडंडी पकड़कर नीलगढ़ जैसे अत्यंत पिछड़े गॉंव के युवाओं को नई राह दिखाने वाले अनंत और उसका पूरा साथ निभाने वाली उसकी धर्मपत्नी सुषमा के साथ ये अनहोनी क्यूं हुई?

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