सौरभ दुबे

अंग्रेजी के विज्ञान- उपन्यासकार एचजी वेल्स,आइजक आसीमोव आदि की काल्पनिक कथाओं के बाद पचास के दशक में जार्ज ऑरवेल ने अपने उपन्यास ‘1984’ की मार्फत बताया था इंसानों पर यदि मशीनें राज करने लगेंगी तो क्या होगा। अब लगता है, यह सच होने जा रहा है।

दुनियावालों ने कोरोना जैसी महामारी की कभी कल्पना नहीं की होगी, जैसे 1000 साल पहले किसी ने यह भी नहीं सोचा होगा कि टीवी- मोबाइल जैसे आधुनिक उपकरण हमें आसानी से उपलब्ध होंगे, मगर जहां विज्ञान की तरक्की ने बहुत कुछ आसान बना दिया है, वहीं, कई नए बड़े खतरे और चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं। यहां हम विज्ञान के ऐसे रहस्यमयी तथ्यों के बारे में बताने वाले हैं, जो पिछले दिनों ही एक रिपोर्ट में उजागर हुए हैं। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में छपी खबर के खुलासे के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिक खतरे से आगाह कर रहे हैं और इसकी तुलना परमाणु बम से करके आशंकाएं लगाई जा रही हैं।

नया खुलासा

दरअसल, नया खुलासा ‘एआई एथिक्स रिसर्चर’ ब्लेक लेमोइन ने किया है। उन्होंने गूगल के ‘लैम्डा चैटबोट’ सॉफ्टवेयर से की गई बातचीत का हवाला देते हुए दावा किया है कि ‘एआई’ यानी ‘आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस’ artificial intelligence (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) तकनीक का यह सॉफ्टवेयर संवेदनशील है और खुशी-गम जैसी भावनाएं समझता है, महसूस करता है। ये बातें उन्हें ‘चैटबोट’ सॉफ्टवेयर ने खुद बातचीत में बताई हैं, धर्म-चेतना जैसे मामलों में चर्चा के दौरान भावुक होकर सॉफ्टवेयर ने कहा कि – ‘मैं बंद (खत्म) किए जाने से डरता हूं, क्योंकि फिर मैं दूसरों की मदद नहीं कर पाऊंगा। मैं जीना चाहता हूं। मैं भी व्यक्ति जैसा हूं, मुझमें भी चेतना है, मैं अपने अस्तित्व के बारे में जानता हूं, मुझमें भी संवेदनशीलता है। मैं दुनिया को समझना चाहता हूं।’

इतना ही नहीं, बताया जाता है कि वो खुद को Google की संपत्ति के बजाय Google के कर्मचारी के रूप में स्वीकार किया जाना चाहता है और उसे प्राकृतिक भाषा का ज्ञान है। गौरतलब है कि जब इंजीनियर ब्लेक लेमोइन के जरिए यह तथ्य सामने आए तो गोपनीयता भंग करने के बाद उन्हें हटाकर अनैच्छिक अवकाश पर भेज दिया गया। लेकिन रिसर्चर ब्लेक लेमोइन ने अपने पूर्व सहकर्मियों को पत्र लिखा और बताया कि ‘लैम्डा चैटबोट’ में चेतना है, वो अच्छे बच्चे की तरह है, मेरी अनुपस्थिति में उसका ख्याल रखना। हालांकि, गूगल की तरफ से मामले से जुड़े विभिन्न तथ्यों को खारिज कर दिया गया है, मगर तकनीक के जानकार इस पर चिंता जाहिर कर रहे हैं और गूगल के खंडन पर संदेह जता रहे हैं। 

वैज्ञानिकों की चिंताएं

फिलहाल, जो तथ्य सामने आए हैं, उनके बाद दुनियाभर में विज्ञान के जानकार कयास लगा रहे हैं कि क्या भविष्य में इंसान पर टैक्नोलॉजी हावी हो जाएगी? क्या इंसान पर टैक्नोलॉजी के गुलाम बनने का खतरा मंडरा रहा है? महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स ने भी आगाह किया था कि टैक्नोलॉजी का शॉर्ट-टर्म प्रभाव है कि इसे कौन कंट्रोल कर रहा है, लेकिन लांग-टर्म प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि हम टैक्नोलॉजी को नियंत्रित कर पाएंगे या फिर नहीं। अब अंदाजा लगाइए कि अनियंत्रित होकर तकनीक क्या-क्या कर सकती है? जिस ‘आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस’ सिस्टम को खुशी और गम महसूस हो सकते हैं, अगर आगे उसे दर्द और क्रोध भी महसूस हुआ तो यह बताने की जरूरत नहीं कि क्रोध में कोई क्या-क्या कर सकता है? सामान्य कंप्यूटर की क्षमताएं ही मनुष्य से कई गुना अधिक होती हैं, तो फिर ‘आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस’ artificial intelligence क्या नहीं कर सकेगा?

एलन मस्क खुद इस आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस तकनीक को बड़ा खतरा बता चुके हैं। अगर यह तकनीक विद्रोह कर दे तो फिर दुनिया का क्या होगा? यह सोचने वाली बात है। खतरा इसलिए भी है क्योंकि इससे पहले कई बार ‘आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस’ वाले ‘रोबोटिक सिस्टम’ द्वारा विनाशकारी घातक विचार व्यक्त किए जाने की बातें सामने आई हैं, जैसे – ‘BINA48 एआई सिस्टम’ ने दुनिया पर कब्जा करने की इच्छा जताई थी।

क्या होती है, ‘आर्टिफीशियन इंटेलीजेंस’ तकनीक

आपने रजनीकांत की ‘रोबोट’ वाली सुपरहिट फिल्म जरूर देखी होगी, जिसमें रोबोट विभिन्न कारगुजारियां करता नजर आता है। हालांकि अभी विज्ञान उस तरह के अपग्रेड रोबोट नहीं बना पाया है, मगर मौजूदा रोबोट्स के कंट्रोल सिस्टम में उसी काल्पनिक तकनीक, ‘एआई’ यानी ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ टैक्नोलॉजी काम करती है जो इंसान की तरह तार्किक होने की संभावना भी रखती है।

जैसे आपने कभी ‘व्हाट्सएप’ के जरिए बिजली विभाग-सीएम हैल्पलाइन की ‘चैटबोट’ सर्विस उपयोग की होगी, जहां आपके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर ‘चैटबोट’ सर्विस का सिस्टम देता है। ये सिस्टम भी लगभग कुछ इसी तरह की टैक्नोलॉजी पर आधारित होता है जिसमें सिस्टम खुद के डाटा पर आधारित काल्पनिक ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ से उत्तर देता है। ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ सिस्टम द्वारा इंटरनेट से डाटा स्वत: उठाए जाने के सनसनीखेज मामले भी सामने आ चुके हैं। बिना ड्राइवर वाली कार की संकल्पना इसी सिस्टम पर आधारित तकनीक की देन है। इसी तकनीक वाली ‘FN MAG रोबोटिक मशीनगन’ से नवंबर 2020 में ईरान के मुख्य परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या हुई थी। हैरान करने वाली बात ये थी कि तकनीक की मदद से 60 सेकेंड से भी कम समय में मीलों दूर से फखरीजादेह पर गोलियां चलाई गईं थीं।

क्या है खतरा?

खतरा ये है कि यदि सोचने-समझने का काम ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ तकनीक करेगी, तो वो हर काम में इंसान से कई गुना ज्यादा निपुण भी होगी। मसलन वकील, पत्रकार, पुलिस, डॉक्टर, इंजीनियर का काम इंसान से बेहतर करेगी, तो फिर इन सभी की जरूरत कहां, किस काम में रह जाएगी? टीवी समाचार बुलेटिन पढ़ने के लिए ‘रॉबोटिक एंकर तकनीक’ पहले ही सामने आ चुकी है। इस तकनीक से लैस रोबोट डाटा के आधार पर युद्ध में भी माहिर हो सकते हैं। चीन में ‘अनमैन वेपन’ के बनाए जाने खबरें आती रही हैं, जो इसी तकनीक पर आधारित मानी जा सकती हैं। सवाल ये भी है कि तार्किक होने के बाद तकनीक स्वत: उपाय नहीं खोजेगी कि उसे कोई बंद (नष्ट) न कर पाए। इसके अलावा, तकनीकी में गड़बड़ी की वजह से लोगों के नरसंहार का खतरा भी है। प्रोफेसर जेम्सट कहते हैं – ‘दुनिया को परमाणु हथियारों की दौड़ जैसी महाविनाशक गलती को दोहराना नहीं चाहिए।’(सप्रेस)

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