राहुल धुर्वे

भोपाल में युवाओं के एक लोकप्रिय ‘अड्डे’ की हैसियत पा चुकी ‘यंगशाला’ उनमें विभिन्न धर्मों की समझ विकसित करने की जरूरी पहल कर रही है। इसमें युवाओं को तरह-तरह के धार्मिक स्थलों की यात्रा के अलावा, संभव हो तो उन धर्मों के धर्म-गुरुओं से बातचीत भी आयोजित की जाती है। यह दौर धर्मों की नासमझी से उपजी आपसी असहमति, नाराजी का है और ऐसे में ‘यंगशाला’ जैसी पहल कारगर साबित हो सकती है।

‘यंगशाला’ एक ऐसे स्थान की परिकल्पना है, जो सभी युवाओं का स्वागत करती है। यहाँ पर वे बेझिझक आ-जा सकते हैं, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं एवं उस जगह को अपना मान सकते हैं। ‘यंगशाला’ अपनी गतिविधियों के माध्यम से युवाओं के साथ मिलकर काम करती है। यहां युवा विद्यार्थी अपनी पढाई के साथ-साथ अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों को भी सीखते हैं।

‘यंगशाला’ द्वारा समय-समय पर विभिन्न नवाचारों के माध्यम से युवा साथियों के बीच संवैधानिक व सामाजिक विषयों की समझ विकसित करने हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं, जैसे – ‘यंगशाला की कल्चरल वॉक,’ जिसका मकसद युवाओं में बंधुत्व की भावना को बढ़ाना और समृध्द करना है। हमारे संविधान की प्रस्तावना में वर्णित बंधुता एक अहम सामाजिक मूल्य है एवम इस मूल्य को युवा साथियों तक लाने और उन्हें इससे जोड़ने के लिए ‘यंगशाला’ द्वारा योजना बनाई गई है। इसमें विभिन्न धर्मों, पंथों, सम्प्रदायों और धर्मस्थलों को करीब से जानने और समझने का मौका दिया जाता है।  

‘यंगशाला की कल्चरल वॉक’ के जरिए किसी भी धर्म-विशेष के धार्मिक-स्थल पर उनके धर्मगुरु के साथ चर्चा करने का अवसर भी युवा साथियों को मिलता है, ताकि वे समझ सकें कि सभी धर्म एक-दूसरे से भिन्न जरुर हैं, किन्तु समान हैं। इस प्रकार हमारे युवा साथी समानता के मूल्य को समझ और जान सकें कि सभी धर्म एक समान होते हैं। हमें एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए और प्रत्येक धर्म के प्रति गरिमा की भावना बढ़ाकर हीनता के भाव को दूर कर आपसी-सहयोग और सामाजिक एकता को बढ़ाना चाहिए।  

बंधुता और भाईचारा एक समृध्द और उन्नत समाज के निर्माण हेतु आवश्यक हैं, इसलिए इसे बढ़ावा देना अहम है। ‘यंगशाला’ ने इसी उद्देश से भोपाल के युवाओं को विभिन्न पंथों और धर्मों से जुड़ी संस्कृति और परम्पराओं से रूबरू कराने के लिए 2 जनवरी को एक ‘यंगशाला की कल्चरल वॉक,’  आयोजित की थी जिसमें भोपाल और उसके आसपास के 25 से अधिक युवा शामिल हुए थे। इस ‘कल्चरल वॉक’ के माध्यम से युवाओं को भोपाल में ही ‘श्रीकृष्ण प्रणामी पंथ,’ ‘बौद्ध धर्म’ और ‘जैन धर्म’ को करीब से जानने, समझने का अवसर प्राप्त हुआ।  इस दौरान युवा ‘श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर,’ ‘बुद्ध विहार’ और ‘जिनालय’ गए, जहाँ उन्होंने समझा कि किस प्रकार भारत में विभिन्न धर्मों का जन्म और विकास हुआ है।  

इस क्रम में सर्वप्रथम युवाओं को ‘श्रीकृष्ण प्रणामी संप्रदाय’ के मंदिर जाने का मौका मिला, जहाँ उन्होंने ‘प्रणामी संप्रदाय’ को समझा और जाना की किस प्रकार प्रणामी संप्रदाय हिंदू धर्म से भिन्न विशेषताएं रखता है। ‘प्रणामी मंदिर’ के महंत ने युवाओं को बताया कि इस संप्रदाय/पंथ की स्थापना देवचंद्र महाराज द्वारा हुई थी तथा महामति प्राणनाथ महाराज जी ने इसका प्रचार-प्रसार किया था। इस पंथ को मानने वाले अनुयायियों का समूह ‘निजानंद सम्प्रदाय’ या ‘परनामी संप्रदाय’ कहलाता है। उन्होंने बताया कि ‘प्रणामी पंथ’ को मानने वाले ‘श्रीराजजी’ (सद्चित आनंद) को अपना सर्वेसर्वा ईश्वर मानते हैं। ये लोग ग्रंथपूजा में विश्वास करते हैं। उनके अनुसार उनका धर्मग्रंथ ‘पांचवा वेद’ है, जिसे ‘तारतम सागर’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि उनके पवित्र ग्रंथ में 14 से अधिक विभिन्न ग्रंथों की विशेषताएं शामिल हैं। इसमें वेद, कुरान, बाइबल, श्रीमदभगवतगीता इत्यादि के अंश शामिल हैं।  

‘श्रीकृष्ण प्रणामी संप्रदाय’ के महंत ने बताया कि भगवान को पाने अथवा जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष्य) पाने के लिए तीन सीढियां हैं। पहली सीढ़ी ‘प्रतीक पूजा,’ दूसरी सीढ़ी ‘ग्रंथ पूजा’ और तीसरी सीढ़ी ‘मानसिक पूजा’ होती है। इन तीनों को करने वाला ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। ‘प्रणामी’ अनुयायियों में ‘धामी’ और ‘प्रणामी’ शामिल हैं। ‘वॉक’ में शामिल युवा साथियों ने अनेक सवाल भी पूछे, जिन्हें महंत ने आदर से लेते हुए विन्रमतापूर्वक उनका उत्तर दिया। युवाओं ‘प्रणामी पंथ’ में महिलायों के स्थान, महत्व और तप के बारे में जानकारी मांगी और मंहत ने उनका जवाब देते हुए समझाया कि किस प्रकार महिलाओं को भी समान अधिकार प्राप्त हैं और वे भी आस्था से जुड़े ऊँचे पदों पर पुरुषों की भांति पहुँच सकती हैं।

इसके बाद सभी युवा ‘बौद्ध विहार’ गए जहां उन्होंने बौद्ध धर्म के उद्भव के बारे में जाना और समझा कि ‘धर्म’ और ‘धम्म’ में क्या अंतर होता है। ‘बौद्ध विहार’ के भंतेजी ने युवा साथियों को राजकुमार गौतम (बुद्ध) की विशेषताओं के बारे में बताया और समझाया की ‘धम्म’ क्या होता है। यह एक मार्ग है जो हमें सत्य व सुख प्राप्ति का रास्ता दिखाता है। इसकी आधारशिला मानवता व मनुष्य पर आधारित है। भंतेजी ने युवाओं को बौद्ध धर्म के दर्शन, शाखाओं और उसमें ध्यान के महत्व को समझाया।

युवाओं ने ध्यान के महत्व को समझते हुए जाना कि किस प्रकार ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन में सुख और शांति की तरफ बढ़ सकते हैं। भंतेजी बुद्ध के ‘अष्टांग मार्ग’ के बारे में बताया। युवाओं ने जानना चाहा कि बौद्ध परम्पराओं व हिंदू परंपराओं में क्या अंतर होता है? बौद्ध धर्म में विवाह संस्कार इत्यादि किस प्रकार होते हैं? बौद्ध धर्म में महिलाओं के संन्यास ग्रहण करने और उनके अधिकार क्या हैं? संविधान और बौद्ध अनुयायियों का जुड़ाव किस प्रकार हुआ और वे इसे इतना महत्व क्यूँ देते हैं?

भंतेजी ने बताया कि संविधान का संबंध धर्म विशेष से नहीं, बल्कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति से है और हम सभी को संविधान को दैनिक जीवन में अपनाना चाहिए। संविधान को भारत के प्रत्येक व्यक्ति तक आसान-से-आसान शब्दों में पहुंचाना और आम चर्चा का विषय बनाना चाहिए। युवा साथियों ने ध्यान के महत्व और उसमें छिपे गहन चिंतन को समझा। भंतेजी ने बताया कि वर्तमान में युवा अवसाद, तनाव और चिड़चिड़ापन आदि के शिकार होते जा रहे हैं। इन सबसे बचने के लिए ध्यान और चिंतन के महत्व और उपयोग पर भी उन्होंने युवाओं को समझाया।

इसके बाद हम सब जैन मंदिर गए जहां युवाओं को जैन धर्म को समझने का अवसर मिला। ‘जिनालय’ जाकर जैन धर्म के जन्म, मुनियों के जीवन, दिनचर्या और उनके तप के बारे में जाना। जैन मुनियों द्वारा किए जाने वाले आहार, निहार और विहार के महत्व को भी समझने की कोशिश की। इसके बाद युवाओं को आदित्यसागर महाराज जी से भी बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने युवाओं को बताया कि किस प्रकार जैन मुनि दीक्षा ग्रहण करते हैं और किस प्रकार वे समाधि लेते हैं। इसके अलावा महाराज जी बताया कि हमारे जीवन में पाप और पुण्य का कितना महत्व है और किस प्रकार हम तप और त्याग के माध्यम से सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने जैन धर्म में अहिंसा के सिध्दांत और आत्मा के महत्व को भी समझाया।

युवाओं ने महाराज जी के साथ चर्चा में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अपने सवाल रखे? जैसे जैन मुनि वस्त्रों का त्याग क्यूँ करते हैं? जैन धर्म में महिलाओं और बच्चों की स्थिति क्या है? तथा उनके अधिकार क्या हैं? गभर्पात के अधिकार और महिला-पुरुष के अधिकारों और कर्तव्यों पर भी सवाल किये गए? जिनके जवाब उन्होंने बहुत ही नम्रता के साथ दिए।

इस प्रकार ‘यंगशाला की कल्चरल वॉक’ के माध्यम से युवाओं ने विभिन्न पंथों व धर्मों को जाना और समझा कि कोई धर्म सर्वश्रेष्ठ नहीं है, बल्कि सबकी अपनी-अपनी आस्थाएं, रीति-रिवाज, एवम मर्यादाएं हैं जिसका सम्मान हम सभी को करना चाहिए और आपसी सहयोग, सद्भाव और एकता के साथ मानवता का भाव जीवित रखना चाहिए। (सप्रेस)

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