डॉ. ओपी जोशी

छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरे के लिए काटे जाने वाले जंगलों की कीमत आखिर क्या है? जिस तरह हीरे की कीमत उसकी कठोरता और चमक आदि के आधार पर तय की जाती है, ठीक उसी तरह पेडों की कीमत क्यों नहीं आंकी जानी चाहिए? और यदि यह कीमत आंकी गई तो बक्सवाहा में जंगल और हीरों में से क्या ज्यादा कीमती होगा?

परम्परागत एवं सोशल मीडिया के माध्यम से अब ज्यादातर लोग यह जान गए हैं कि मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील के गांव सगोरिया में बिरला समूह की ‘एस्सेल माइनिंग कंपनी’ को हीरा खनन के लिए मंजूरी दी गई है। यहां पडौस के पन्ना से 15 गुना ज्यादा हीरे मिलने की संभावना बतायी गयी है। इस योजना में 02 लाख 16 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इनमें पीपल, बरगद, गूलर, नीम, जामुन, सागवान, पलाश एवं आंवला के कई प्राचीन पेड़ शामिल हैं। इनके साथ तेदुआ, भालू, चिंकारा एवं चौसिंगा सहित लगभग एक दर्जन वन्य जीव भी प्रभावित होंगे।

इस परियोजना में पेड़ों की संख्या भ्रमित करती रही है। प्रारंभ में वन विभाग ने खनन क्षेत्र की जो रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजी थी, उसमें 4.85 लाख पेड़ों की कटाई बतायी गयी थी, जिसे बाद में विरोध के कारण घटाकर 2.16 लाख किया गया। एक वन अधिकारी ने तो करीब एक लाख पेड़ों की कटाई बतायी थी। वन्य जीवों से जुड़ी कुछ जानकारियां भी छिपायी गयीं। एक महत्वपूर्ण बात यह भी पढ़ने में आयी कि हीरा खनन का क्षेत्र ‘नौरादेही वन्यप्राणी-अभयारण्य’ एवं ‘पन्ना टायगर रिजर्व’ के बीच वन्य प्राणियों के आवागमन हेतु बनाये गए कोरीडोर में स्थित है। ऐसे स्थानों पर सामान्यतः निर्माण एवं खनिज कार्य प्रतिबंधित होते हैं। यहां किसी कार्य हेतु ‘नेशलन बोर्ड आफ वाईल्ड लाइफ’ तथा ‘नेशनल टायगर-कंजर्वेशन अथारटी’ से अनुमति लेना होती है। इस योजना में अनुमति ली गयी या नहीं यह स्पष्ट नहीं है।

जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग एवं कोरोना महामारी के संकट के समय इतने पेड़ों की कटाई उचित नहीं है। इस योजना में हीरों की कीमत यदि कैरेट के आधार पर लगायी गयी है तो पेड़ों के पर्यावरणीय मूल्यों की भी गणना की जानी चाहिये। कई साल पहले ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ के प्रोफेसर टीएम दास ने बताया था कि एक 50 वर्षीय पेड़ 15 लाख रूपये की पर्यावरणीय सेवा प्रदान करता है। काटे जाने वाले पेड़ों में यदि 1.5 लाख पेड़ 50 वर्षीय पुराने हैं तो उनका पर्यावरणीय मूल्यांकन हीरों की कीमत से ज्यादा होगा।

अवैध कटाई, अतिक्रमण, आगजनी एवं कई योजनाओं के क्रियान्वयन से वर्तमान में प्रदेश में वैसे भी वनों की हालत ठीक नहीं है। ‘केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ तथा ‘वन सर्वेक्षण संस्थान’ (देहरादून) की वर्ष 2015 एवं 2016 में रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में क्रमश: 178 तथा 238 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के वन घटे हैं। ‘फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार भोपाल सहित 28 जिलों में हरियाली कम हुई है। प्रदेश में हरियाली घटने एवं ज्यादा पेड़ कटाई के कारण ‘केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ ने प्रदेश के एक लाख 24 हजार हेक्टर वन क्षेत्र में पेड़ कटायी पर रोक लगायी थी।

मौसम के बदलाव बाबद इकानामिक सर्वे (2018) के एक अध्ययन के अनुसार देश के 09 राज्यों के 60 से ज्यादा जिलों में वर्षा घटी है एवं तापमान बढ़ा है। इसमें मध्‍यप्रदेश के छतरपुर सहित 23 जिले शामिल हैं। इतने पेड़ कटने से छतरपुर के सूखाग्रस्त होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यहां भूजल स्तर भी काफी नीचे जा चुका है और इसी वर्ष महज जुलाई तक प्रदेश में जिन जिलों में अल्प-वर्षा हुई उनमें छतरपुर जिला भी शामिल है।

वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में आयोजित सम्मेलन में भारत ने कहा था कि वह 2030 तक अपना कार्बन उत्सर्जन कम करेगा। हीरा उत्खनन की इस योजना हेतु इतने अधिक पेड़ों की कटाई से कार्बन उर्त्सजन में वृद्धि होगी। ‘स्टेट फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के अध्ययन के अनुसार खदान क्षेत्र में आने वाले 2.20 लाख पेड़ एक लाख टन से ज्यादा कार्बन सोखने की क्षमता रखते हैं।

इस योजना में काटे जाने वाले पेड़ों के एवज में वन विभाग छतरपुर की राजस्व भूमि पर 3.83 लाख पौधे लगायेगा। यहां यह जानना प्रासंगिक होगा कि जंगल काटकर पेड़ों का समूह विकसित किया जा सकता है, जंगल कदापि नहीं। जंगल अपने आप में एक संतुलित पारितंत्र(इकोसिस्टम) होता है जिसके अपने पेड़, झाड़ियां, लताएं एवं अन्य पौधों के साथ शाकाहारी एवं मांसाहारी जीव होते हैं। कई कारणों से प्रदेश के वनों की 216 प्रजातियों में से 30-35 (शीशम, दहीमन, अंजन, सलई आदि) एवं 15 प्रजातियों के औषधीय-पौधे (काली, सफेद मुसली, शतावर व कालमेघ आदि) संकटग्रस्त बताये गये हैं।

वनों के अलावा प्रदेश के अन्य पर्यावरणीय हालात भी ठीक नहीं हैं। प्रदेश की कई सदानीरा नदियां मौसमी हो गयी हैं एवं कई सहायक नदियां सूख भी गयी हैं। वर्ष 2010 से 2020 के दशक में भूजल की मात्रा में 60 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट बतायी गयी है। ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइल साइंसेस’ के अनुसार मध्‍यप्रदेश की कृषि-भूमि में पोषक तत्वों की भी 60 प्रतिशत कमी पायी गयी है। वर्ष 2020 के प्रारंभ में जारी ‘ग्रीनपीस इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 231 प्रदूषित शहरों में मध्‍यप्रदेश के 14 शहर व कस्बे शामिल हैं।

वर्ष 2019 के अप्रेल के अंतिम सप्ताह में दुनिया के सबसे गर्म शहरों में म.प्र. के तीन शहर (खरगौन, खंडवा, बड़वानी) बतलाये गये हैं। प्रदेश में ही तैयार की गयी जलवायु-परिवर्तन की रिपोर्ट में यह संभावना बतलायी गयी है कि प्रदेश में 2030 तक 1.8 से 2.0 डिग्री सेल्शियम तापमान बढ़ सकता है। मध्‍यप्रदेश के वन एवं पर्यावरण की इन हालातों के मुद्देनजर बकस्वाहा की पेड़ कटाई पर प्रतिबंध लगाना न्यायोचित है। कीमती पत्थरों की चमक के पीछे हरित सोना नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। (सप्रेस)

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