दीपमाला पटैल

जलवायु-परिवर्तन सरीखे वैश्विक संकटों के लिए जिस उद्योग को सर्वाधिक गरियाया जाता है वह कोयले को जलाकर पैदा की जाने वाली बिजली यानि ताप-विद्युत या थर्मल पॉवर है। हमारे राजनेता गरियाने की इसी रौ में वैश्विक मंचों से तरह-तरह के दावे-वादे करते रहते हैं, लेकिन क्या उनमें कोई दम भी होती है? उत्तरप्रदेश के ऊर्जा क्षेत्र को देखें तो ऐसा नहीं लगता।

भारत का लक्ष्य 2022 तक ‘अक्षय ऊर्जा’ यानी रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा के उदाहरण हैं–बायोगैस, बायोमास, सौर ऊर्जा इत्यादि) से 175 गीगावॉट बिजली उत्पादन करने का था। भारत सरकार ने भी 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश को हर साल लगभग डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है, लेकिन अभी इस क्षेत्र में सालाना 75 हजार करोड़ रुपए का ही निवेश हो पा रहा है। यह ‘अक्षय ऊर्जा’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नाकाफी है।

      भारत के प्रधानमंत्री ने 26 वें ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन’ (COP- 26) में घोषणा की थी कि भारत 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा। यही नहीं, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत ‘अक्षय ऊर्जा’ से पूरी करेगा और कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा। भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा और 2070 तक ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य हासिल करेगा। सवाल है कि ‘मैदान’ में क्या हो रहा है?  

     इसी माह की शुरुआत में उत्तरप्रदेश सरकार ने सोनभद्र जिले के ओबरा में 18,000 करोड़ रुपये की लागत से 800 मेगावाट की दो ‘अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल ओबरा-डी थर्मल-पावर परियोजनाओं’ को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य राज्य के लोगों को सस्ती बिजली प्रदान करना बताया जा रहा है। ऊर्जा मंत्री ने यह भी कहा है कि थर्मल-पावर उत्पादन के मामले में उत्तरप्रदेश की मौजूदा क्षमता 7,000 मेगावाट है और ये दो संयंत्र मौजूदा क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत योगदान देंगे।

     एक नयी परियोजना-1600 मेगावाट क्षमता वाली ओबरा–डी को 18000 करोड़ रुपये की लागत की मंजूरी दी गई। इस प्रस्तावित परियोजना के लिए सरकार द्वारा पहले ही 500 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई जा चुकी है और यदि आवश्यकता हुई तो और अधिक जमीन आवंटित की जाएगी। सरकार के इस निर्णय से क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

     इस प्रस्तावित परियोजना में राज्य सरकार और केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली बिजली जनरेटर ‘एनटीपीसी’ के साथ आधी-आधी साझेदार होगी। परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जहां 30 प्रतिशत इक्विटी दी जाएगी, वहीं शेष 70 प्रतिशत राशि की व्यवस्था वित्तीय संस्थानों से की जाएगी। इसका मतलब यह है कि बैंकों में जमा जनता का पैसा इस परियोजना पर लगाया जाएगा, जिससे थर्मल-पावर प्लांट के आसपास रहने वाली जनता का ही नुकसान होगा।

     ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में छपे एक लेख के अनुसार उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के सिंगरौली-सोनभद्र के कुछ इलाकों में लगभग 9 थर्मल-पावर प्लांट हैं। यहाँ 2019-20 में फ्लाई-ऐश बांध टूटने की तीन घटनाओं ने थर्मल-पावर प्लांट की राख के रख-रखाव पर सवाल खड़े किये थे। उसी क्षेत्र में बार-बार राख-बांध टूटने की घटनाएं और राख का ढेर, सिंगरौली-सोनभद्र में रहने वाले लोगों को कई वर्षों से वायु-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड रहा है। अतिरिक्त राख के कारण अक्सर ये बांध लीक या ओवरफ्लो हो जाते हैं, जिससे आसपास रहने वाले लोगों के लिए तबाही मच जाती है। इससे भूजल और सतही जल प्रदूषित भी होता है। इस क्षेत्र की पहचान ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की गई है।  

     इसके बावजूद राज्य में 6600 मेगावाट की पांच परियोजनाएं–ओबरा-सी(1320 मेगावाट), जवाहरपुर सुपर थर्मल-पॉवर स्टेशन (1320 मेगावाट), घाटमपुर थर्मल-पॉवर स्टेशन (1980 मेगावाट), मेजा थर्मल-पॉवर स्टेशन (1320 मेगावाट) और पनकी थर्मल-पॉवर स्टेशन (660 मेगावाट) निर्माणाधीन हैं। यही नहीं, जुलाई 2014 में इलाहाबाद जिले में करछना थर्मल-पावर स्टेशन को स्वीकृति मिली थी जिसकी अनुमानित क्षमता 1320 मेगावाट थी। अभी तक इस पावर-प्लांट का निर्माण शुरू नहीं हुआ है। ‘ओबरा-D थर्मल-पावर परियोजना’ वर्ष  2027 में बिजली उत्पादन शुरू करेगी।

     रिजर्व बैंक ने 2022-23 में मुद्रा एवं वित्त पर एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें जलवायु से संबंधित अनेक आयामों को शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर भारत को 2070 तक कार्बन के शून्य लक्ष्य को हासिल करना है तो एनर्जी मिक्सिंग का दौर तेजी से लाना होगा, किन्तु कोयला आधारित नए बिजली संयंत्रों का निर्माण शुरू करने से ‘रिन्यूएबल ऊर्जा’ लक्ष्यों की प्राप्ति में और विलम्ब होगा। यह ‘रिन्यूएबल उद्योग’ के विकास को भी खतरे में डाल देगा।

     देश में 2022-23 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से बिजली उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 8.87% की वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2023-24 के लिए बिजली उत्पादन का लक्ष्य 1750 अरब यूनिट तय किया गया था, जिसमें से 75% से अधिक थर्मल स्रोतों, मुख्य रूप से कोयले से होने की उम्मीद है। ऐसे में भारत में बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता कम कैसे हो सकती है?

     उत्तरप्रदेश की बिजली उत्पादन की बात करें तो अप्रैल 2023 में ‘टाइम्स ऑफ़ इण्डिया’ में छपे लेख के अनुसार उत्तरप्रदेश सरकार ने दावा किया है कि राज्य के स्वामित्व वाले थर्मल-पावर प्लांट 39,691 यूनिट का उत्पादन करने में कामयाब रहे हैं जो अब तक का सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन का रिकॉर्ड है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में, राज्य के स्वामित्व वाले बिजली संयंत्रों जैसे अनपरा ओबरा, पारीछा और हरदुआगंज थर्मल परियोजनाओं ने कुल 3,969.10 करोड़ यूनिट बिजली पैदा की जो 2021-22 में 3502.20 करोड़ यूनिट के कुल सकल बिजली उत्पादन से 13.33% अधिक है।

     राज्य के बिजली संयंत्रों ने 76.44% ‘प्लांट लोड फैक्टर’ (पीएलएफ- औसत लोड और पीक लोड का अंश) पर काम किया है। यह 2019-20, 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 68.80%, 69.71% और 71.82% से अधिक था। अकेले अनपरा थर्मल-पावर स्टेशन की इकाइयों ने रिकॉर्ड 95.75% वार्षिक ‘पीएलएफ’ पर बिजली का उत्पादन किया। इस इकाई ने 838.80 करोड़ यूनिट का अब तक का सबसे अधिक सकल विद्युत उत्पादन किया।

     ओबरा जैसे कई पावर-प्लांट हैं जिनकी वजह से उस क्षेत्र की जमीन, वहां रहने वाले जीव-जंतु और समुदाय को सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान का सामना करना पड़ा है। थर्मल-पावर प्लांट से निकलने वाली राख हवा में घुलकर लोगों व जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य, जल-स्त्रोत, फसल को हानि पहुंचाती है। लोकहित और पर्यावरण सरंक्षण की दृष्टि से ओबरा-D थर्मल-पावर प्लांट पर किसी भी वित्तीय संस्था/बैंक द्वारा अपना पैसा नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करना जनता के साथ विकास के नाम पर खिलवाड़ करना होगा। (सप्रेस)

[block rendering halted]

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें