डॉ.ओ.पी.जोशी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राजधानी दिल्ली से लगे नोएडा इलाके में दो बहुमंजिला इमारतों को हाल में ढहाया गया है। वजह है, इन इमारतों का भ्रष्ट तरीकों से अवैध निर्माण। एक विशालकाय इमारत की देश में पहली बार हुई जमीदोजी ने उसके ध्वस्त करने के तरीकों पर अनेक सवाल खडे कर दिए हैं।

नोएडा के सेक्टर – 93/ए में स्थित ‘एपेक्स’ एवं ‘सियान’ नामक दो टावर महज नौ मीटर की दूरी पर जुड़वा बच्चों की तरह थे एवं इसीलिए ‘ट्विन टावर’ कहे जाते थे। 32 एवं 29 मंजिले ये टावर बगीचे एवं कुछ व्यावसायिक भवनों के स्थान पर 16 मीटर की जगह 09 मीटर दूरी पर बनाये गये थे। लगभग 10 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद पिछले वर्ष अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिराने का आदेश दिया था। इसी आदेश के तहत ये टावर 28 अगस्त को गिराये गए।

ध्वस्त किये गये इन टावर्स के निर्माण एवं ध्वस्त किये जाने के कार्यो से पर्यावरण पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से विपरीत प्रभाव हुआ। 105 मीटर ऊंचे तथा 900 फ्लेट्स के इन टावर्स के निर्माण में कितना सीमेंट, सरिया, इंटें, रेत तथा पानी लगा होगा, उसकी गणना की जानी चाहिये। ‘आभासी जल’ (जो दिखाई नहीं देता है) पर अध्ययन कर रहे जानकारों का कहना है कि एक टन सीमेंट एवं सरिया के निर्माण में क्रमशः 4,500 तथा 20,000 लीटर पानी की खपत होती है। ‘ट्विन टावर’ के मलबे में 4,000 टन सरिया बताया गया है।

एक ईट को पकाने में लगभग 300 ग्राम कार्बन डाय-आक्साइड वायु-मंडल में जाती है। पूरे देश में 200 अरब ईटों के बनाने हेतु प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़ टन अच्छी मिट्टी का उपयोग किया जाता है। रेत के लिए भी नदियों के ज्यादा दोहन से उन पर पैदा विपरीत प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता। पूरे निर्माण कार्य में करोड़ों लीटर भू-जल का उपयोग किया गया होगा तो आसपास के कई क्षेत्रों में इसकी भारी कमी हो गयी होगी।

लगभग 400 करोड़ रूपये के टावर में 3.7 टन विस्फोटक 9642 छेदों में भरकर ध्वस्त किया गया। ध्वस्त करने वाली ‘एडीफाइस’ एवं ‘दक्षिण अफ्रीकी जेट डिनोलेशन एजेंसी’ ने इस कार्य के लिए 17.55 करोड़ रूपये लिए। टावर्स 12 सेकंड्स में जमीदोज हो गये। पहले 5 सेंकड में विस्फोट हुए एवं शेष 7 सेकंड में विस्फोटक पदार्थ जले।

टावर्स के ध्वस्त होने से पैदा वायु-प्रदूषण के आंकलन हेतु ‘रीयल लाईन मशीनें’ भी लगाई गयी थीं। इस मशीन की गणना के अनुसार 93/ए सेक्टर में 27 अगस्त को ‘वायु गुणवत्ता सूचकांक’ (एक्यूआई) बढ़कर 141 एवं 338 हो गया था। इसी प्रकार टावर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित ‘पार्श्वनाथ प्रेस्टीज सोसायटी’ में ‘वायु गुणवता सूचकांक’ 28 अगस्त को 338 तक पहुंच गया था एवं 29 अगस्त को घटकर 187 हो गया था।

टावर ध्वस्त होने से पैदा धूल-धुंए का गुबार पहले आधा किलोमीटर के क्षेत्र में फैला, बाद में धीरे-धीरे पांच किलोमीटर में फैला, क्योंकि उस समय हवा की गति 12 किलोमीटर/प्रतिघंटा की रही थी। इस धूल-धुंए के गुबार में विस्फोटक से पैदा विषैली गैसें व कई प्रकार के ‘कणीय पदार्थ’ शामिल थे। साथ ही टावर्स को ध्वस्त करते समय तेज धमाकों से जो शोर पैदा हुआ उसकी तीव्रता 101.2 डेसीबल आंकी गयी जो सामान्यतः 70 के आसपास रहती थी।

ध्वस्त करने के पूर्व यह संभावना बतायी गयी थी कि लगभग 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैला वायु-प्रदूषण एक सप्ताह तक बना रहेगा। इससे सांस के मरीजों व सामान्य लोगों को परेशानी रहेगी, परंतु प्रकृति की मेहरबानी से या वहां से 6-7 घंटे के लिए हटाये गये 7000 लोगों के सौभाग्य से सोमवार 29 अगस्त को एक घंटे में हुई तेज बारिश ने वायु-गुणवता काफी सुधार दी। इस एक घंटे की बारिश ने वायु-प्रदूषण भले ही कम कर दिया हो, परंतु यहां के रहवासियों को अभी आगे और कुछ समय तक इसका सामना करना होगा।

इसका कारण यह है कि टावर के ध्वस्त होने से पैदा 60 हजार टन (कहीं 80 हजार टन भी बताया गया है) मलबे का 11-12 मीटर ऊंचा ढेर अभी वहां पड़ा है जिसमें सीमेंट, सरिया, विस्फोटक एवं ईंट के टुकड़े आदि शामिल हैं। प्रस्तावित योजना के अनुसार इसे हटाने में लगभग तीन महिने का समय लगेगा। पहले मलवे को तोड़ने एवं छटाई का कार्य मशीनों से होगा। जिससे वायु एवं ध्वनि- प्रदूषण पैदा होगा। रात के समय प्रतिदिन 25 कवर्ड डम्परों में भरकर इसे हटाया जायेगा। वैसे भी ज्यादातर डम्पर पुराने एवं डीजल-संचालित होते हैं जो काफी आवाज एवं धुंआ पैदा करते हैं।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि मलबा हटाते समय सावधानियां एवं सुरक्षा उपाय नहीं अपनाये गए तो प्रदूषण निश्चित रूप से बढ़ेगा। मलबा हटाते समय पैदा धूल को नियंत्रित करने हेतु फिर हजारों लीटर पानी का उपयोग किया जाएगा। डेनमार्क में पुराने भवनों के सामान एवं मलबे को रिसायकिल कर विभिन्न स्थानों पर उपयोग किया जा रहा है। ऐसे ही प्रयास ‘ट्विन टावर’ से पैदा मलवे पर भी किये जाने चाहिये। ‘ट्विन टावर’ को ध्वस्त करना भ्रष्टाचार के साथ-साथ एक बड़ी पर्यावरणीय और प्राकृतिक संसाधनों की हानि को भी दर्शाता है। (सप्रेस)

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