कुलभूषण उपमन्यु

गांधी के विचारों की प्रासंगिकता हमारे समय में लगातार, रोज-ब-रोज बढती जा रही है। उनके विचार जो उनके ही मुताबिक उनके व्यवहार में से निकले थे, अब बहुत जरूरी होते जा रहे हैं। क्या इन्हें आज की दुनिया अंगीकार करना चाहेगी?

गांधी विचार ऐसा विचार है जो भारतीय चिन्तन परंपरा की कोख से जन्मा, सनातन संदेश लिए है और जिसकी खोज का मुख्य विषय मानव मात्र के लिए सुख, शांति, समृधि और संतोष पूर्ण जीवन की परिकल्पना को धरती पर साकार करना है। हर मानव, चाहे जहां का  भी हो अपने जीवन में सुख, शांति और समृधि तो चाहता ही है और संतोष उसे सामाजिक ईर्ष्या से बचाने का मन्त्र है।

दूसरे के सुख को छीनने की इच्छा ईर्ष्या से ही पैदा होती है। यहीं से एक कबीले द्वारा दूसरे कबीले पर किये जाने वाले आक्रमण शुरू होते हैं और आगे बढ़ते-बढ़ते जैसे-जैसे शासन व्यवस्थाओं का विकास होता है, वे एक राजा द्वारा दूसरे राजा पर आक्रमण करके उसकी समृद्धि छीनने की दिशा में बढ़ते जाते हैं।

आधुनिक समाज में इसका आक्रमण दो-धारी हो गया है, एक तो व्यापारिक दांव-पेंच का युद्ध और दूसरा आधुनिक परम विध्वंसक सैनिक शक्ति का उपयोग। कुछ लोग आज भी धार्मिक गठजोड़ बनाकर सारी दुनिया पर हुकूमत के सपने संजोते रहते हैं। इस तरह की सोच के चलते मानव जगत की बुनियादी आशा, सुख, शांति और समृद्धि से जीवन यापन कर सकने की कैसे पूरी हो, जबकि हर कोई दूसरे की सुख, शांति, समृद्धि को ईर्ष्यावश छीनने की योजनाओं में लगा हो।

मध्य-कालीन बर्बर आक्रमणकारियों से लेकर आज के सभ्य समाजों तक इस तरह के दमनकारी और लूट-खसूट पर आधरित तन्त्र सुख, शांति की स्थापना के नाम पर ही फलते-फूलते रहे हैं। लोगों को झूठे आश्वासनों की दम पर मूर्ख बनाकर छला जाता रहा है कि बस हमारे विचार की शासन व्यवस्था आ जाने के बाद स्वर्ग धरती पर उतरने वाला है। बस एक बार अपने से भिन्न लोगों का दमन कर लो। धर्म-युद्धों से लेकर औपनिवेशिक दमन और शीत-युद्धों तक यही लालच दिखाया जाता रहा है। हम और हमारा देश या धर्म जब अन्य का दमन कर लेगा तो स्वर्ग का साम्राज्य धरती पर उतर आएगा – इस तरह हर कोई, हर किसी का दमन करने में जुट जाता है।

यह होता है, हिंसक शक्ति के बलबूते पर। तर्क और विचार हिंसा के सामने हमेशा बौने ही साबित हुए हैं, लेकिन गांधी ने इस चिन्तन धारा से भिन्न रास्ता पकड़ा। गांधी ने कहा कि जैसा साधन आप समाज को गढने के लिए उपयोग करेंगे, वैसा ही समाज बन जाएगा। हिंसा से लाए गए परिवर्तन हिंसक समाज की ही रचना करेंगे, जहां सुख, शांति और समृद्धि खोजना बेमानी है। इसलिए गांधी ने अहिंसा को परिवर्तन का साधन बनाने की बात की। दूसरी बड़ी बात, जो सारी प्रचलित धारणाओं से हटकर थी कि राजनैतिक जीवन में भी सत्य ही व्यवहार का मार्ग होना चाहिए।

आम धारणा तो राजनीति में साम, दाम, दंड, भेद के उपयोग की है। जब हम किसी को धोखा देंगे तो वह हमें धोखा क्यों नहीं देगा? इसलिए आपसी विश्वास को दृढ़ करने और सुख, शांति समृद्धि की टिकाऊ प्राप्ति के लिए सत्य मार्ग ही श्रेयस्कर है। गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह अभिनव प्रयोग करने का साहस किया, अपने आप में यही बहुत बड़ी बात है। आज हम बहस कर सकते हैं कि आज़ादी की लड़ाई में गांधी का योगदान ज्यादा रहा या दूसरे क्रांतिकारी और सुभाष बोस के सैनिक प्रयासों का।

गांधी जी की भाषा में कहें तो एक पत्थर को तोड़ने में यदि सौ चोट घन की लगती हैं तो निन्यानवे चोटों ने उस पत्थर को कमजोर कर दिया था और सौवीं चोट से वह प्रकट में टूट गया। वह सौवीं चोट निःसंदेह गांधी के सत्य, अहिंसा के शस्त्र की ही थी। इससे अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों का गौरव कम नहीं होता, बल्कि सार्थक, सकारात्मक सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए एक नया शस्त्र हमें मिल गया।

गांधी ने कभी यह दावा नहीं किया कि उन्होंने कोई अंतिम सत्य खोज लिया है, बल्कि उन्होंने अपनी आत्मकथा को “मेरे सत्य के प्रयोग” कहा। यानि यह एक रास्ता है। इस रास्ते पर आगे से आगे खोज की जानी चाहिए। दुनिया में कई निहत्थे समाजों को शक्तिशाली साम्राज्यों से लड़ने की ताकत इस विचार ने दी। गांधी ने जो ठीक समझा उसे जीने का प्रयास किया, चाहे अस्पृश्यता के विरुद्ध उनका संघर्ष हो या आर्थिक पुनरुत्थान की बात हो। कुटीर उद्योगों को  हर हाथ को काम देने के मन्त्र के रूप में अपनाने पर जोर दिया।

गांधी ने तकनीक की राजनीति को समझा, कि मशीनीकरण से लोग बेरोजगार हो जाएंगे। इसलिए ऐसी मशीन को उन्होंने ठीक माना जो आदमी के हाथ का काम न छीने, परन्तु काम को आसान बना दे। शरीर श्रम को एक व्रत के रूप में जीवन में स्थान देने का आग्रह किया, ताकि श्रम और पूँजी का टकराव कम हो और शोषण-मुक्त समाज की रचना हो और अहिंसक अर्थव्यवस्था की नींव पड़े।

गांधी ने प्रकृति के सीमित संसाधनों में बेहतरीन जीवन जीने की कला विकसित करने की बात कही। उनका यह उद्घोष आज पर्यावरण रक्षा के लिए सबसे उत्तम सूत्र वाक्य है कि प्रकृति के पास सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, किन्तु किसी एक के लालच की पूर्ती के लिए कुछ भी नहीं है। जलवायु परिवर्तन और संसाधनों के लिए वैश्विक टकरावों को झेल रहा आज का वैश्विक समाज गांधी विचार में समाधान तलाश सकता है।

आज़ादी की लड़ाई में गांधी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि गांधी ने आज़ादी की लड़ाई को आम आदमी की अपनी लड़ाई बना दिया। बहुत से लोग आज गांधी को नीचा दिखाने के चक्कर में रहते हैं। कुछ गांधी के राजनैतिक वारिसों द्वारा की जा रही गलतियों या उनके नाम के दुरूपयोग के कारण ही आज की दलगत राजनीति में गांधी के नाम को घसीटने की कोशिश करते रहते हैं।

गांधी एक विचार है जिसका मूल्यांकन तर्क और सामयिक परिस्थितियों के सुधार की क्षमता के आधार पर किया जाना चाहिए। मतभेद हो, पर अपने नायकों को नीचा दिखाने की दुर्वृत्ति न हो। इससे अपने ही हाथों अपनी हानि करने की मूर्खता का ही पोषण होता है। गांधी के स्मरण के साथ सीखने योग्य को आत्मसात करने का प्रयास शुरू करें। (सप्रेस)

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कुलभूषण उपमन्यु
कुलभूषण उपमन्यु पिछले पांच दशक से पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक चेतना के लिये समर्पित हैं। कश्मीर से कोहिमा तक पदयात्रा करने वाले कुलभूषण उपमन्यु ने पर्यावरण को बचाने के लिए जेल की यात्रा भी है, बावजूद इसके जिन्दगी की ढलान पर भी वे पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक चेतना के लिए संघर्षरत हैं। जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के दौरान प्रभावित होकर इस आन्दोलन में कूद पड़े । 1980 के दशक में उत्तराखण्ड में चिपको आन्दोलन के दौरान प्रख्यात पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा के साथ देश भर में यात्राएँ की व वन संरक्षण नीति को बदलवाने के लिये आन्दोलन किये।

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