2 अक्‍टूबर : गांधी जयंती पर विशेष

अनिल त्रिवेदी

आज के समय में सर्वाधिक उपयुक्‍त,सक्षम और सर्वजन-हिताय विचार महात्‍मा गांधी की कथनी और करनी से लिए जा सकते हैं। गांधी के विचार केवल भारत या भारतीय उपमहाद्वीप भर के लिए नहीं हैं, उनके विचारों को आज दुनियाभर की सर्वग्राही समस्‍याओं से निपटने के लिए कारगर बताया जा रहा है। क्‍या थे गांधी और उनके विचार?

पोरबन्दर में दो अक्टूबर 1869 को जन्‍मा बालक मोहनदास करमचंद गांधी डेढ़ सदी बाद भी समूची मनुष्यता के लिये प्रेरक-पुंज की तरह निजी और सार्वजनिक जीवन के सवालों में किसी-न-किसी रूप में मौजूद है। कौन था, यह गांधी? इसे समझने के लिए गांधी की कथनी-करनी के ही कुछ उदाहरण लेते हैं। एक है – एक बार साबरमती आश्रम में एक चोर घुसा। आश्रमवासियों ने उसे पकड़कर एक कमरे में बन्द कर दिया। सुबह प्रार्थना के बाद आश्रमवासी उसे गांधीजी के पास लेकर गये और कहा कि ये रात को चोरी के इरादे से आश्रम में घुसा था। जबाव में गांधीजी ने पूछा कि इनको सुबह का नाश्ता दिया कि नहीं? उन्हें लाने वाले आश्रमवासी हैरान ! उन्‍होंने कहा कि बापू ये तो चोर है, चोरी करने आया था, इसे नाश्ता क्‍यों? गांधीजी ने कहा-ये भी आपके जैसा ही एक मनुष्य है। आपने नाश्ता किया तो इसे भी सुबह का नाश्ता देना चाहिए था। सुनकर उस चोर की आंखों में आंसू आ गये। उसका मन ऊर्जा से भर गया और बाद में वह गांधीजी के साथ आजादी की लड़ाई में पूरी तरह जुट गया।

इसी तरह #गांधीजी स्वयं वकील थे, लेकिन उन्‍होंने 1909 में लिखी पुस्तिका ‘हिन्द स्वराज्य’ में लिखा कि मेरे सपनों का भारत वह होगा जब देश के वकील और डाक्टर काम-धन्धा न मिलने के कारण भूख से तड़पने लगेंगे। यानी मेरे सपनों का भारत, वह भारत है जिसमें एक भी विवाद न हो और कोई भी बीमार न हो। विडम्‍बना है कि गांधी के सपने को अपना मानने वाला भारत अंतहीन विवादों वाला देश बनता जा रहा है। एक भी बीमार न हो की बजाय अंतहीन बीमारों का देश बनता जा रहा है।

गांधी हम सबके लिये सवाल नहीं, समाधान हैं। जीवन की जटिलता को विपन्न से लेकर सम्पन्न सभ्यताओं के लिये वे सरलतम समाधान सुझाते हैं। ईश्वर को लेकर कई मत-मतांतर हम सबके दिल-दिमाग में बसे हैं, साकार-निराकार की बहस भी कायम है, पर गांधीजी ने सिखाया कि सत्य ही ईश्वर है। सवाल है कि सत्य क्या है? तो गांधीजी ने न केवल समझाया वरन निजी और सार्वजनिक जीवन जीकर भी दिखाया कि सत्य सनातन, सहज व्यवहार है।

सत्य से परे मानव व्यवहार जीवन का संकुचन है। जैसे प्रकृति प्राणवायु-मय है वैसे ही सत्य मनुष्य की जीवनी-शक्ति है। शायद इसी समझ को लोगों को समझाने के लिये गांधी ने अपनी आत्मकथा को ‘सत्य के प्रयोग’ कहा। सत्य और अहिंसा जीवन के प्राकृतिक वैभव हैं, जैसे पत्ते फूल और फल वृक्ष का वैभव हैं। इनके बिना वृक्ष ठूंठ कहलाता है। वैसे ही सत्य और अहिंसा के बिना मानव महज हड्डियों का ढांचा है, निष्प्राण है। सत्य और अहिंसा मानव समाज की सहजता का विचार है।

गांधी की सादगी, सरलता, सत्य और अहिंसा को हम जटिलतम सिद्धांत समझने लगे हैं। जीवन को जीने का सहज, सरल व्यवहार बनाने की बजाय उधार की कसरत से पहलवान बनने का सपना देखने लगे हैं। गांधी भारत के साधनों से ग्राम-स्वराज्य लाने का रास्ता दिखा गये, पर हम बाहरी चकाचौंध के लालच में परावलम्बी विकास की दिशा में बढते जा रहे हैं।

गांधीजी को बचपन में अंधेरे से भय लगता था। उस उम्र में प्राय: सभी के मन में अंधेरे का भय होता है, पर गांधीजी ने सबके मन से भय को दूर करने के लिये सत्याग्रह के रूप में सत्य और अहिंसा के साधन से मन में निर्भयता लाने का व्यवहारिक उपाय समूची दुनिया को समझाया। न डरेंगे, न डरायेंगे। असत्य न बोलेंगे, न सत्य को कभी छोड़ेंगे। साधारण से साधारण मनुष्य के मन में निर्भयता से जीवन को सत्यनिष्ठ बनाने और सत्यनिष्ठा से समाज में निर्भयता लाने का सिद्धांत गांधीजी ने लोगों के दिल-दिमाग में उतारा।

भारत की आजादी की लड़ाई के इसी तत्‍व ने सारी मनुष्यता को नया और अनोखा रास्ता दिखाया। सादगी और सरलता जीवन जीने के सहज उपाय है जिन्‍हें हम सब बिना किसी जटिलता के अपने जीवन में खुद ही निभा सकते हैं। गांधीजी ने जीवन की जरूरतों को कम-से-कम रखते हुए निजी और सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं को आत्मसात करके स्वराज्य के संकल्प को साकार बनाया था। प्रामाणिकता को व्यापक अर्थ देते हुए हमारे शब्द, आचरण और समय की प्रामाणिकता हमारी जिन्दगी में हर समय होनी ही चाहिये, तभी मनुष्य जीवन के साधन से जीवन का साध्य साकार हो पाता है।

गांधीजी न तो किसी काम को छोटा मानते थे और न ही मनुष्यों में किसी को छोटा या बड़ा। शरीर श्रम नियमित दिनचर्या का अंग है, श्रम करने से मन और तन दोनों तन्दुरूस्त बने रहते हैं – यह गांधी का आरोग्यशास्त्र है। खाने को अस्वादव्रत से जोड़कर गांधी ने ‘जीने के लिये खाना, न कि खाने के लिये जीना’ को आरोग्य की कुंजी निरूपित किया। स्थानीय साधनों से निर्मित भोजन, भवन और भूषा से टिकाऊ और प्राकृतिक स्वावलम्बन हर कोई खुद ही ला सकता है। गांधीजी विकेन्द्रीकरण से स्वावलम्बी समाज की जरूरतों को पूरा कर ग्राम स्वराज्य का विस्तार करना ही प्राकृतिक विकास का क्रम समझते थे। जो जहां है उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था यथासंभव स्थानीय साधनों से हो, तो हमारा समाज सदैव सुरक्षित और खुशहाल बना रहेगा।

यह जीवन देश के सात लाख गांवों को आत्मनिर्भरता के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने के रूप में कायम रखेगा। गांधीजी गांवों की मजबूती से समूचे देश को सदैव सतर्क, स्वावलम्बी और तेजस्वी बनाने के रास्ते पर चलने को ही देश की मजबूती का स्थायी कार्य समझते थे। गांधीजी कमजोर से कमजोर व्यक्ति की बेहतरी को केन्द्र में रखकर नीति और योजना बनाने की दृष्टि हम सबको दे गये। गांधीजी ने सरकार के लिये एक पैमाना दिया था कि जब भी कोई योजना बनाएं तो हमारा मापदंड, देश समाज के विपन्नतम नागरिक को उससे कोई लाभ हो रहा है या नहीं, होना चाहिये। यही मापदंड योजना लागू करने का भी होना चाहिए।

गांधीजी ने अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में सरल, सहज जीवन की जरूरतों को कम-से-कम रखते हुए श्रमनिष्ठ जीवन जीने का सरलतम रास्ता अपनाया। उनका मानना था कि आवश्यकता की सीमा को समझना और लालच से दूर रहने की समझ विकसित करना सरल और आनंदमय शाश्वत जीवन की बुनियाद है। गांधीजी स्वयं आत्मविश्वास से परिपूर्ण तो थे ही, साथ ही प्राणीमात्र पर पूरा विश्वास रख कर जीने के सनातन तरीके में विश्वास रखते थे। सेवा, सादगी और सत्य निजी और सार्वजनिक जीवन का मूल है। गांधी जी ने सुधार से ज्यादा व्यवहार से ही सबको अपना साथी सहयोगी माना।

गांधीजी मनुष्य की ताकत बढ़ाने वाले अनोखे संगठक थे। आजादी की लड़ाई में जो लोकसंग्रह गांधीजी ने किया वह मानव इतिहास की धरोहर है। उस कालखण्ड़ में देश के कोने-कोने में गांधी की दृष्टि को समझकर आजादी की लड़ाई में सत्यनिष्ठा से जुड़ने वाले लोग स्वयंस्फूर्त रूप से जुटने लगे थे। गांधीजी का आजादी के आन्दोलन में खड़ा किया लोकसंग्रह आजादी के आन्दोलन की सबसे बड़ी लोकशक्ति बना, जो वैचारिक रूप से सत्य और अहिंसा को आजादी पाने का साधन मानता था।

गांधी के जाने के बहत्तर साल बाद भी हम न तो खुद पर विश्वास कर पा रहे हैं, न ही हमें एक-दूसरे पर विश्वास है। ऐसी स्थिति के लिये ही गांधी ने कहा था, पानी की एक बूंद की अपनी कोई ताकत नहीं होती है, पर जब वह बूंद समन्दर में मिल जाती है तो समुद्र की ताकत बूंद की ताकत बन जाती है। हमारी भी अकेले मनुष्य की कोई ताकत नहीं है, पर हम सब भारत के विशाल लोकसागर में विलीन हो जावें तो सारे लोगों की सम्मिलित ताकत हमारी ताकत हो जाएगी। गांधी ने लोगों को अपने अंदर छिपी लोकशक्ति की ऊर्जा का भान कराया, लोग अपने अंदर छिपे सत्य, अहिंसा और आपसी विश्वास को जानें-समझें और मानें यही जीवन का सरल, सहज व्यवहार है। इसे गांधी ने अपने जीवन में जाना और आजीवन माना भी। यही हम सबके जीवन का व्यवहार बने तो भारत लोकऊर्जा का ऐसा देश बन सकेगा जिसमें न कोई बीमार होगा, न हमारे बीच कोई विवाद जन्म लेगा। गांधी के सरलतम विचार और व्यवहार ही हम सबके जीवन का प्राकृतिक आनन्द हैं। (सप्रेस) 

[block rendering halted]

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें