प्रसून लतांत

पांच जून को गांधी विचार को मानने वाले देशभर के अनेक लोगों ने दो अक्‍टूबर, गांधी जयन्‍ती और ‘विश्‍व अहिंसा दिवस’ तक चलने वाले एक-एक दिन के उपवास की शुरुआत की थी। यह उपवास श्रमिकों, किसानों, ग्रामीण-अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार, समाज और स्वयं को झकझोरने, बदलने के मकसद से किया जा रहा है।

‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ की उपवास-श्रृंखला में गांधी के विचारों में विश्वास रखने वाले और उसके अनुरूप काम करने वाले लोग पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं। उनकी सक्रियता से अब गांधी, गांव और गरीब को लेकर कुछ खास कर गुजरने की सूरत भी निकलती दिखाई पड़ रही है। इस उपवास-श्रृंखला में पहले तो गांधीवादी संस्थाओं और संगठनों से मुक्त हुए लोग शामिल हुए थे, लेकिन जब से इसका नियमित और अविराम सिलसिला चल पड़ा है तो गांधी संस्थाओं और संगठनों से जुड़े लोग भी इसमें शामिल होने लगे हैं। पहली बार देखा जा रहा है उपवास के लिए अच्छी-खासी संख्या में युवा वर्ग भी शामिल हो रहा है।

गांधी जी के डेढ़-सौ वीं जयंती वर्ष के शुरू होने के पहले महात्मा गांधी की याद में बड़े-बड़े आयोजन करने के लिए सरकारी घोषणाएं हो रही थीं और केंद्र और राज्य स्तर पर समितियों का गठन किया जा रहा था। सरकारों से अलग-थलग होकर गांधी से जुड़ी संस्थाएं और संगठन भी अपनी सामर्थ्य-भर कुछ करने के लिए एकांगी पहल कर रहे थे। शताब्दी आयोजनों की शुरुआत भी हो गई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव आने और उसके बाद दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद देश भर में एक प्रकार की दुखद चुप्पी सी छा गई थी। गांधी जैसी बात करने वालों को भी देशद्रोही करार दिया जा रहा था। ऐसा लगने लगा था कि गांधी के देश में ही गांधी की बात करना गुनाह है।

गांवों और गरीबों की जरूरी बातें स्मार्ट शहरों के शोर में गुम हो गई थीं। वे संसद की चर्चा से भी गायब थीं, वे मीडिया सहित फिल्मों और धारावाहिकों में भी नहीं थीं। यह तो कोरोना वायरस के प्रकोप पर रोक लगाने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान देश के आम लोग जब सड़कों पर अपने गांवों की ओर निकल पड़े, तो शहरों के बढ़ते वैभव का खोखलापन उभर कर सामने आ गया और गांवों की चर्चा तेज हो गई। करोड़ों की संख्या में निकले आम लोगों ने पैरों से हजारों किलोमीटर चलकर गांव पहुंचने की हिम्मत दिखाकर देश की दिशा बदल दी है। गांव और गरीब इन दिनों चर्चा के केंद्र में हैं।

ऐसे में पिछले एक महीने से ‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ समूह से जुड़कर लोगों का व्यक्तिगत सत्याग्रह का सिलसिला शुरु होकर निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। नई सदी का व्यक्तिगत सत्याग्रह। पिछली सदी में जब ब्रिटिश हुकूमत भारत को दूसरे विश्वयुद्ध में झोंकने की कोशिश कर रही थी, तब उसके विरोध के लिए महात्मा गांधी ने आचार्य विनोबा से व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए कहा था। विनोबा के बाद दूसरे व्यक्तिगत सत्याग्रह करने वाले नेहरू थे। व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण ‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ समूह गांधी, गांव और गरीबों के कल्याण के मुद्दों पर लोकशाही की आवाज को बुलंद करने का मंच बन गया है। रोज नए-नए लोग इससे जुड़ रहे हैं। पिछले एक महीने से हरेक दिन एक-एक सत्याग्रही अलग-अलग राज्यों में बैठ रहे हैं।

व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत पांच जून, ‘विश्‍व पर्यावरण दिवस’ को बिहार के चंपारण से हुई थी। सत्याग्रही द्वारा ‘राष्ट्रीय उपवास श्रृंखला,’ दो अक्टूबर ‘विश्व अहिंसा दिवस’ और महात्मा गांधी जयंती तक चलेगी। पहले सत्याग्रही मोतीहारी (बिहार) के दिग्विजय कुमार, ‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ समूह की राष्ट्रीय समिति के संयोजक हैं। उन्होंने उपवास कर सत्याग्रह की शुरुआत कर दी है।

उपवास का मकसद श्रमिकों, किसानों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार, समाज और स्वयं को झकझोरना है, बदलना है। ताकि कोरोना वायरस से बच सकें और मजबूत हिंदुस्तान बन सके। अब तक इस उपवास श्रृंखला में मणिपुर, गोआ, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़, असम आदि राज्यों में एकल और सामूहिक रूप से तीस से अधिक सत्याग्रही बैठ चुके हैं।

‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ का कहना है कि इस पहल का मकसद देश की मौजूदा राजनीति में अंतिम जन को केंद्र में लाना और गांधीजी के डेढ़ सौवीं जयंती वर्ष पर उन्‍हें श्रद्धांजलि देते हुए देश और दुनिया में फैले गांधी-प्रेमियों को एक मंच प्रदान करना है। उल्लेखनीय है कि इस राष्ट्रव्यापी उपवास श्रृंखला में शिक्षक, समाजकर्मी, कलाकार, लेखक, पत्रकार, वैज्ञानिक, पर्यावरणवादी और छात्र व युवा पूरे उत्साह से भाग ले रहे हैं। इनमें महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल हैं।

‘गांधीयन कलेक्टिव, इंडिया’ समूह की ओर से गांधी जयंती तक चलने वाले इस सत्याग्रह में कुल 119 सत्याग्रही शामिल होंगे। गांधी जयंती के दिन कुछ खास कार्यक्रम करने की योजना पर विचार किया जा रहा है। इस बीच वेबीनार के जरिए कोरोना वायरस सहित गांधी, गांव और गरीब के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण के बारे में संवाद प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी चल रही है। उपवास के दौरान हाथ से लिखे बैनर का इस्तेमाल किया जा रहा है और पेड़-पौधे भी लगाए जा रहे हैं। (सप्रेस)

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