विनोबा भावे की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति में विदुषी सुश्री कालिंदी बहन

 9 सितम्बर। भारत की स्वतंत्रता में एकादश व्रतों का महत्वपूर्ण योगदान है। महात्मा गांधी ने आजादी आंदोलन में इन व्रतों का समावेश कर मनुष्य के विकास और देश की स्वतंत्रता दोनों को साधने का पराक्रम किया। क्रांति और अध्यात्म अलग नहीं हैं। आध्यात्मिक दृष्टि न होने पर क्रांति की प्रक्रिया विफल होगी। समाज में स्थायी परिवर्तन अहिंसा से होता है। अहिंसक क्रांति के लिए आध्यात्मिक दृष्टि होना अनिवार्य है।

उक्त विचार ब्रह्मविद्या मंदिर की अंतेवासी सुश्री कालिंदी बहन ने सत्य सत्र में विनोबा जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही।

सुश्री कालिंदी बहन ने कहा कि भारत में योगी और संन्यासियों के लिए पांच व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय और असंग्रह माने गए थे। इनका सामजिक जीवन में प्रवेश नहीं था। इसकी थोड़े से लोगों के पास पूंजी बनी। इसलिए ये गुण पूंजीवाद में बदल गए। महात्मा गांधी ने इसे पहचाना और इनमें छः व्रत और जोड़कर अपने आश्रम के नियमों में शामिल कर लिया। गांधीजी ने इन व्रतों को सामाजिक जीवन में शामिल कर देश को व्रतनिष्ठ कर दिया।

सुश्री कालिंदी बहन ने कहा कि विनोबा जी को गांधीजी के इन्हीं एकादश व्रतों ने आकर्षित किया। गांधीजी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने एकादश व्रतों को आध्यात्मिक साधना और देश की स्वतंत्रता के लिए जरूरी बताया। इस पर लिखी गांधीजी की मंगल प्रभात उनकी शिरोमणी पुस्तक है। सुश्री कालिंदी बहन ने कहा कि इस पुस्तक का विनोबा जी ने अभंग व्रतें नाम से अनुवाद कर सरल भाषा में प्रस्तुत किया। महात्मा गांधी ने 1940 में विनोबा जी को एकादश व्रत के आधार पर प्रथम सत्याग्रही चुना। गांधी-विनोबा को एकरस बनाने में एकादश व्रतों की महत्वपूर्ण भूमिका है। गांधीजी का राजनीतिक पहलू अधिक उजागर होने से एकादश व्रत की गहराई को आमजन नहीं समझ पाए।

मंगल प्रभात और अभंग व्रतें

सुश्री कालिंदी बहन ने मंगल प्रभात और अभंग व्रतें के बारें में बताया कि विनोबा जी ने गांधीजी की मंगल प्रभात को अभंग व्रतें में अनुदित किया। गांधीजी जब यरवदा जेल में थे। वहां से हर मंगलवार को आश्रमवासियों को पत्र में एक-एक व्रत समझाते थे। इसके कारण के बारे में उन्होंने लिखा है कि हमारे आश्रम का नाम सत्याग्रह आश्रम है। हमारे आश्रम का मूल सत्य है। विनोबा जी ने इस सत्य का खुलासा अभंग व्रतें में किया है। सत्य विश्व का मूलाधार है। सत्य धर्म का बल है। सत्य सत्याग्रह का तत्व है। सत्य परम आधार है।

अहिंसा और सत्य निष्ठा

सुश्री कालिंदी बहन ने कहा कि नदी का प्रवाह होता है। उसकी एक दिशा होती है, उसका लक्ष्य होता है और दो किनारों के बीच वह नदी बहती है। अहिंसा और सत्य जीवन का प्रवाह और दिशा है। व्रतों से मनुष्य जीवन में मर्यादा आती है। इससे प्रचंड शक्ति निर्मित होती है। उन्होंने अध्यात्म को व्यवहार में लाने के सरल उपाय बताए। इसके समन्वय व्यक्ति और समाज जीवन में द्वंद्व उपस्थित नहीं होते हैं। अध्यात्म और व्यवहार को जोड़ने वाले एकादश व्रत जीवन शैली है। आध्यात्मिक वृत्ति और वैज्ञानिक दृष्टि से जीवन सरल बनता है। अस्वाद व्रत हमें यही शिक्षा देता है। आहार नियंत्रण में दोनों का समावेश हो जाता है। आमतौर पर अहिंसा व्रत कठिन लगता है। विनोबा ने इसे सरल बनाते हुए लिखा है दूसरे को आदर पूर्वक सहन करना, स्वयं का प्रखर आत्मपरीक्षण करना और धैर्य को धारण करने से यह सध सकता है। इनका सतत अभ्यास मनुष्य को सुख पहुंचाता है।

असंग्रह व्रत

सुश्री कालिंदी बहन ने कहा कि इस व्रत का पालन सरल है। वस्तु का संग्रह नहीं करना है, साथ में विचारों का संग्रह भी नहीं होना चाहिए। आज चारों ओर से ज्ञान मिल रहा है। लेकिन विवेक रखकर इस ज्ञान से बचा जा सकता है। जिस ज्ञान की जरूरत नहीं है उसे छोड़ देना चाहिए। अनावश्यक विचार संग्रह से मनुष्य की बुद्धि भ्रमित हो रही है। सद्वृत्तियों को बढ़ाने वाला ज्ञान ही श्रेष्ठ है। अहिंसा के पथ पर चलने में नौ व्रत सहायक हैं। अध्यात्म को हटाकर क्रांति की कल्पना नहीं की जा सकती।

प्रेम सत्र के वक्ता नागपुर के श्री पराग चोलकर ने विनोबा जी के भूदान आंदोलन की पृष्ठभूमि और ग्रामदान विचार पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जमीन की समस्या को हल किए बिना समाज में स्थायी परिवर्तन नहीं आ सकता। विनोबा जी ने अनेक कार्य करते हुए हमेशा इस बात पर बल दिया कि भूमि का छोर मत छोड़ो। देश के छह लाख लोगों ने भूदान दिया और हजारों गांवों  में ग्रामदान हुआ। श्री चोलकर ने कहा कि आज हमारे पास इनका कोई रिकार्ड नहीं है। इस कारण भूदान आंदोलन की शानदार उपलब्धियों आमजन तक नहीं पहुंची। आज इसका व्यापक सर्वेक्षण करने की जरूरत है। गांव का ग्रामीणकरण होना चाहिए।

करुणा सत्र में गुजरात के श्री प्रवीण दुलेरा ने गुजरात के विभिन्न गांवों में काम करने वाले ग्रामशिल्पियों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गुजरात विद्यापीठ से उच्च शिक्षा प्राप्त 15 युवा गावों में पिछले तेरह साल से विभिन्न प्रकार से गांवों को स्वावलंबी बनाने में जुटे हैं। सुरेश भाई ने प्रेम परिवार बनाया है। अशोक भाई तापी गांव में 190 बच्चों को नयी तालीम दे रहे हैं। नीलम भाई ने सागवान के वृक्षों की कटाई रोकने में योगदान दिया। आज उनके साथ दो सौ युवा गांव को आत्मनिर्भर बनाने में लगे हुए हैं। महराष्ट्र के श्री नाथू भाई ने विनोबा जी के गीता प्रवचन पर अपने विचार व्यक्त किए। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना। (प्रस्‍तुति : डा.पुष्पेंद्र दुबे)

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